International Nurses Day 2022: फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन पर मनाया जाता है 'नर्स दिवस', जानिए 'लेडी विद द लैंप' की कहानी

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इस दिन को फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन के तौर पर याद किया जाता है। ये वो नाम है, जिसने नर्सिंग को एक सम्मानजनक पेशे का औदा दिलाया है। उन्हें मॉडर्न नर्सिंग का संस्थापक माना जाता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में नर्सों का योगदान और उनका सहयोग बहुत जरूरी है। इसीलिए यह दिन नर्सों को समर्पित है।

दुनियाभर में 12 मई को 'इंटरनेशनल नर्सेज डे' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्मदिन के तौर पर याद किया जाता है। ये वो नाम है, जिसने नर्सिंग को एक सम्मानजनक पेशे का औदा दिलाया है। उन्हें मॉडर्न नर्सिंग का संस्थापक माना जाता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में नर्सों का योगदान और उनका सहयोग बहुत जरूरी है। इसीलिए यह दिन नर्सों को समर्पित है।

इंटरनेशनल नर्सेज डे 2022 की थीम

इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज द्वारा इंटरनेशनल नर्सेज डे 2022 की थीम 'नर्सेज: ए वॉइस टू लीड इन्वेस्ट इन नर्सिंग एंड रिस्पेक्ट राइट्स टू सिक्योर ग्लोबल हेल्थ रखी गई है।' इसका मतलब है- 'नर्सेज: नेतृत्व के लिए एक आवाज - नर्सिंग में निवेश करें और ग्लोबल हेल्थ को सुरक्षित रखने के अधिकारों का सम्मान करें।' इस दिन इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स की तरफ से नर्सों को किट बांटी जाती है। इसमें उनके काम से संबंधित सामान होता है।

फ्लोरेंस नाइटिंगेल की कहानी 

फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म 12 मई 1820 को इटली में हुआ था। वे एक गीत परिवार से ताल्लुक रखती थीं। इसके कारण उनके परिवार को इस बात के खिलाफ थे कि उनकी बेटी नर्स बने। क्योंकि उस समय नर्सिंग को एक सम्मानजनक पेशा नहीं माना जाता था। लेकिन फ्लोरेंस नाइटिंगेल के अंदर हमेशा से ही यह भावना थी जिसके कारण उनके घर वालों को भी उनके फैसले के सामने झुकना पड़ा। इसके बाद नाइटिंगेल को नर्सिंग की ट्रेनिंग करने के लिए जर्मनी जाने की इजाजत मिल गई। यही वह समय था जब उनकी जिंदगी में एक मोड़ आया और उन्होंने इतिहास रच दिया। साल 1851 में वह जर्मनी गईं और 1853 में उन्होंने लंदन में महिलाओं के लिए अस्पताल खोला। साल 1853 में क्रीमिया में युद्ध शुरू हो गया। तब नाइटिंगेल ने 38 नर्सों के साथ तुर्की के एक मिलिट्री अस्पताल में सैनिकों की सेवा की। जब वे मिलिट्री अस्पताल पहुंचे तो उन्होंने वहां फैली गंदगी देखी। उनसे यह सब देखा न गया और उन्होंने अस्पताल को साफ करने की ठान ली। 

फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने घायल सैनिकों को ठीक करने के लिए दिन रात मेहनत की। विराट निधि सैनिकों की देखभाल करने में लगी रहती थीं। जब वे घायल सैनिकों की देखभाल के लिए रात में निकलती तो उनके हाथ में एक लालटेन होता था। इस कारण सैनिक उन्हें 'लेडी विद द लैंप' कहने लगे। जब क्रीमिया में युद्ध खत्म हुआ और नाइटिंगेल वापस लौटीं तो लोग उन्हें इसी नाम से पहचानने लगे। आज पूरी दुनिया फ्लोरेंस नाइटिंगेल को इसी नाम से जानती है। नाइटिंगेल को सम्मान देने के लिए उनके जन्मदिन इंटरनेशनल नर्सेज डे के नाम से मनाया जाने लगा।

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