World Population Day 2024: जनसंख्या नियंत्रण के लिये क्रांति का शंखनाद हो

World Population Day 2024
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ललित गर्ग । Jul 11 2024 11:16AM

पूरी दुनिया की आबादी में अकेले एशिया की 61 फीसदी हिस्सेदारी है। यह रिपोर्ट साफ इशारा करती है कि जहां कम आबादी है, वहां ज्यादा संपन्नता है। भारत में दिन-प्रतिदिन जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, इसी से बेरोजगारी बढ़ रही है, महंगाई भी बढ़ने का कारण यही है, संसाधनों की किल्लत भी इसी से बनी हुई है।

प्रतिवर्ष विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई को मनाया जाता है, यह दिवस 11 जुलाई, 1987 से मनाया जाता है, जब दुनिया की आबादी 5 अरब हो गयी थी। यह दिवस जनसंख्या वृद्धि, इसके विकास एवं स्थिरता पर प्रभाव के जटिल मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समूची दुनिया को एकजुट करता है और आयोजनात्मकता से आगे बढ़कर वैश्विक जनसंख्या वृद्धि की चुनौतियों और अवसरों पर वैश्विक संवाद और कार्रवाई को उत्प्रेरित करता है। यह सतत और संतुलित भविष्य प्राप्त करने एवं शिक्षा, चिकित्सा, पर्यावरण के वैश्विक प्रयासों में योगदान देता है। वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व की जनसंख्या आठ अरब 11 करोड़ 88 लाख के लगभग है जो वर्ष 2023 से 0.91 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ी है। इसी अवधि में भारत की जनसंख्या एक अरब 44 करोड 17 लाख है जो वर्ष 2023 से 0.92 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ी है। भारत जनसंख्या के हिसाब से चीन को पीछे छोड़ कर विश्व में पहले नंबर पर आ गया है। चीन की वर्तमान जनसंख्या 1 अरब 42 करोड़ 51 लाख है। जनसंख्या में वृद्धि संसाधनों और सेवाओं पर दबाब डालती है। जनसंख्या जिस तीव्र गति से बढ़ रही है, उस गति से आर्थिक विकास एवं अन्य विकास नहीं हो रहा है, जो एक गंभीर समस्या के रूप में बड़ी चुनौती है।

बात जब जनसंख्या वृद्धि की हो रही है तो दुनिया में भारत की बढ़ती जनसंख्या न केवल चौंका रही है, बल्कि एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रही है। भारत अब दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला मुल्क हो गया है, परेशानी में डालने वाली इस खबर के प्रति सचेत एवं सावधान होने के साथ सख्त जनसंख्या नियंत्रण नीति लागू करने की अपेक्षा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत साल 2023 में ही चीन से ज्यादा आबादी वाला देश हो गया था। जबकि पहले यह अनुमान लगाया जा रहा था कि साल 2027 में भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होगा। बढ़ती जनसंख्या की चिन्ता में डूबे भारत के लिये चार साल पहले ही दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होना कोई गर्व की बात नहीं है। भारत के लिये बढ़ती आबादी एवं सिकुड़ते संसाधन एक त्रासदी है, एक विडम्बना है, एक अभिशाप है। क्योंकि जनसंख्या के अनुपात में संसाधनों की वृद्धि सीमित है। जनसंख्या वृद्धि ने कई चुनौतियों को जन्म दिया है किंतु इसके नियंत्रण के लिये कोरे कानूनी तरीके को एक उपयुक्त कदम नहीं माना जा सकता। इसके लिये सरकार को जनसंख्या पर तुरंत पारदर्शी एवं सख्त नियंत्रण के कदम उठाने के साथ, भारत के लिये प्रभावी जनसंख्या नीति को लागू करना, आम जनता की सोच एवं संस्कृति में बदलाव लाना होगा, लेकिन दुर्भाग्य से अभी कुछ हो ही नहीं रहा है।

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पूरी दुनिया की आबादी में अकेले एशिया की 61 फीसदी हिस्सेदारी है। यह रिपोर्ट साफ इशारा करती है कि जहां कम आबादी है, वहां ज्यादा संपन्नता है। भारत में दिन-प्रतिदिन जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, इसी से बेरोजगारी बढ़ रही है, महंगाई भी बढ़ने का कारण यही है, संसाधनों की किल्लत भी इसी से बनी हुई है। यही एक कारण भारत को दुनिया की महाशक्ति बनाने की सबसे बड़ी बाधा है। ऐसे में सबको नौकरी मिलना इतना आसान नहीं। इसलिए सरकार शीघ्र सुसंगत जनसंख्या नीति लागू करे। जिसको दिक्कत हो और ज्यादा बच्चे पैदा करके मनमानी करनी हो, उनके खिलाफ कानूनी सजा के प्रावधान किये जाये। यह एक अराष्ट्रीय सोच है कि अधिक बच्चे पैदा करके उनकी जिंदगी कष्ट में झोंकना। जब बच्चे को सुखी जिंदगी नहीं दे सकते, तो दूसरों के भरोसे उन्हें पैदा करने की प्रवृत्ति शर्मनाक है। यह देखने में आ रहा है कि आज के वैज्ञानिक युग में भी कुछ समुदाय बच्चे पैदा करने को लेकर रूढ़िवादी नजरिया अपनाए हुए हैं और उनकी प्रतिक्रिया में अन्य समुदायों के नेता भी ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की वकालत करने लगे हैं। यह बेहद खतरनाक स्थिति है। इस तरह जनसंख्या बढ़ोतरी की पैरोकारी करने वालों की निंदा की जानी चाहिए, चाहे वे किसी मजहब के हों। क्योंकि देश की तरक्की की सबसे बड़ी बाधा बढ़ती जनसंख्या ही है। 

भारत में बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने में राजनीति एवं तथाकथित स्वार्थी राजनीतिक सोच बड़ी बाधा है। अधिकांश कट्टरवादी मुस्लिम समाज लोकतांत्रिक चुनावी व्यवस्था का अनुचित लाभ लेने के लिए अपने संख्या बल को बढ़ाने के लिये सर्वाधिक इच्छुक रहते हैं और इसके लिये कुछ राजनीतिक दल उन्हें प्रेरित भी करते हैं। ऐसे दलों ने ही उद्घोष दिया है कि “जिसकी जितनी संख्या भारी सियासत में उसकी उतनी हिस्सेदारी।’’ जनसंख्या के सरकारी आकड़ों से भी यह स्पष्ट होता रहा हैं कि हमारे देश में इस्लाम सबसे अधिक गति से बढ़ने वाला संप्रदाय-धर्म बना हुआ हैं। इसलिए यह अत्यधिक चिंता का विषय है कि ये कट्टरपंथी अपनी जनसंख्या को बढ़ा कर देश के लिये बड़ी समस्या खड़ी कर रहे हैं। सीमावर्ती प्रांतों जैसे पश्चिम बंगाल, आसाम, कश्मीर आदि में वाकायदा पडौसी देशों से मुस्लिमों की घुसपैठ कराई जाती है और उन्हें देश का नागरिक बना दिया जाता है, यह एक तरह का “जनसंख्या जिहाद” है क्योंकि इसके पीछे इनका छिपा हुआ मुख्य ध्येय हैं कि धर्मनिरपेक्ष भारत का इस्लामीकरण किया जाये।

हमारी जनसंख्या नियंत्रण संबंधी नीतियां बहुत उदार रही हैं, जिसकी वजह से हम आबादी बढ़ने की रफ्तार को जरूरत के हिसाब से थाम नहीं पाए। चीन ने साल 1979 में ही एक संतान नीति को पूरी कड़ाई से लागू कर दिया था, इसका नतीजा हुआ कि उसे आबादी की रफ्तार रोकने में कामयाबी मिली। ध्यान देने की जरूरत है कि साल 1800 में भारत की जनसंख्या लगभग 16.90 करोड़ थी। चीन आबादी के मामले में कभी भारत से लगभग दोगुना था। 1950 के बाद दोनों देशों की आबादी तेजी से बढ़ने लगी। साल 1980 में चीन एक अरब जनसंख्या तक पहुंच गया। इसके ठीक एक वर्ष पहले वहां एक संतान की नीति लागू हुई थी। भारत साल 2000 में एक अरब के आंकडे़ के पार पहुंचा और अब चीन से आगे निकल गया है। चीन एक संतान की नीति को 2016 में वापस ले चुका है, लेकिन इसके बावजूद वहां आबादी पर नियंत्रण है, क्योंकि वहां की राष्ट्रीय भावना, संस्कृति और सोच, दोनों में बदलाव आ चुका है। लेकिन भारत में ऐसा न होने का कारण राजनीति एवं उसके द्वारा पोषित मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति है। इसके वितरीत विभिन्न मुस्लिम देश टर्की, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मिस्र, सीरिया, ईरान, यूएई, सऊदी अरब व बांग्लादेश आदि ने भी कुरान, हदीस, शरीयत आदि के कठोर रुढ़ीवादी नियमों के उपरांत भी अपने-अपने देशों में जनसंख्या वृद्धि दर नियंत्रित करने के कठोर उपक्रम किये हैं।

भारत की स्थिति चीन से पृथक है तथा चीन के विपरीत भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ हर किसी को अपने व्यक्तिगत जीवन के विषय में निर्णय लेने का अधिकार है। भारत में कानून का सहारा लेने के बजाय जागरूकता अभियान, शिक्षा के स्तर को बढ़ाकर तथा गरीबी को समाप्त करने जैसे उपाय करके जनसंख्या नियंत्रण के लिये प्रयास होने चाहिये। परिवार नियोजन से जुड़े परिवारों को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये तथा ऐसे परिवार जिन्होंने परिवार नियोजन को नहीं अपनाया है उन्हें विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से परिवार नियोजन हेतु प्रेरित करना चाहिये। बेहतर तो यह होगा कि शादी की उम्र बढ़ाई जाए, स्त्री-शिक्षा को अधिक आकर्षक बनाया जाए, परिवार-नियंत्रण के साधनों को मुफ्त में वितरित किया जाए, संयम को महिमा-मंडित किया जाए और छोटे परिवारों के लाभों को प्रचारित किया जाए। शारीरिक और बौद्धिक श्रम के फासलों को कम किया जाए। जनसंख्या दिवस पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बिल्कुल सही कहा है कि जनसंख्या स्थिरीकरण के प्रयासों से सभी मत, मजहब, वर्ग को समान रूप से जोड़ा जाना चाहिए। अनियंत्रित जनसंख्या भी अघोषित आतंकवाद एवं जिहादी मानसिकता ही है, यह राष्ट्र की प्रगति एवं संसाधनों को जड़ करने एवं बांधने का जरिया है। क्योंकि लोगों के आवास के लिए कृषि योग्य भूमि और जंगलों को उजाड़ा जा रहा है। यदि जनसंख्या विस्फोट यूं ही होता रहा तो लोगों के समक्ष रोटी, कपड़ा, मकान और पर्यावरण की विकराल स्थिति उग्रत्तर होती जायेगी। इससे बचने का एक मात्र उपाय यही है की हम येन केन प्रकारेण बढ़ती आबादी को रोकें। इसके लिये चीन के द्वारा अपनायी गयी जनसंख्या नियंत्रण नीति पर भी ध्यान देना चाहिए। अन्यथा विकास का स्थान विनाश को लेते अधिक देर नहीं लगेगी। 

-ललित गर्ग

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)

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