बुड्ढा अमरनाथ मंदिर के दर्शनों के बिना अधूरी है अमरनाथ यात्रा

सुरेश डुग्गर । Aug 10 2016 1:08PM

बुड्ढा अमरनाथ मंदिर को उतना ही पवित्र तथा धार्मिक माना जाता है जितना अमरनाथ गुफा को तथा इस धार्मिक स्थल की यात्रा के बिना अमरनाथ की यात्रा को अधूरा माना जाता है।

कितनी आश्चर्य की बात है कि हिन्दुओं का धार्मिक स्थल होने के बावजूद भी इसके आसपास कोई हिन्दू घर नहीं है और इस मंदिर की देखभाल आसपास रहने वाले मुस्लिम परिवार तथा सीमा सुरक्षा बल के जवान ही करते हैं। पाकिस्तानी क्षेत्र से तीन ओर से घिरी सीमावर्ती पुंछ घाटी के उत्तरी भाग में पुंछ कस्बे से 23 किमी की दूरी पर स्थित बुड्ढा अमरनाथ का मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द की कथा भी सुनाता है जो इस क्षेत्र में है। वैसे यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव ने कश्मीर में स्थित अमरनाथ की गुफा में माता पार्वती को जो कथा सुनाई थी अमरता की उसकी शुरूआत बुड्ढा अमरनाथ के स्थान से ही हुई थी और अब यह मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शनों के बिना अमरनाथ की कथा ही नहीं बल्कि अमरनाथ यात्रा भी अधूरी है।

मंदिरों की नगरी जम्मू से 246 किमी की दूरी पर स्थित पुंछ घाटी के राजपुरा मंडी क्षेत्र जहां तक पहुंचने के लिए किसी प्रकार की पैदल यात्रा नहीं करनी पड़ती है, और जिसके साथ ही कश्मीर का क्षेत्र तथा बहुत ही खूबसूरत लोरन घाटी लगती है, में स्थित बुड्ढा अमरनाथ का मंदिर चकमक पत्थर से बना हुआ है जबकि इस मंदिर में भगवान शिव एक लिंग के रूप में विद्यमान हैं जो आप भी चकमक पत्थर से बना हुआ है। सभी अन्य शिव मंदिरों से यह पूरी तरह से भिन्न है। मंदिर की चारदीवारी पर लकड़ी के काम की नक्काशी की गई है जो सदियों पुरानी बताई जाती है। कहा जाता है कि भगवान शिव द्वारा सुनाई जाने वाली अमरता की कथा की शुरूआत भी यहीं से हुई थी।

पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला के कदमों में ही स्थित मंदिर के आसपास के पहाड़ साल भर बर्फ की सफेद चादर से ढंके रहते हैं जो हमेशा ही एक अद्भुत नजारा प्रस्तुत करते हैं। मंदिर के एक ओर लोरन दरिया भी बहता है जिसे ‘पुलस्तया’ दरिया भी कहा जाता है जिसका पानी बर्फ से भी अधिक ठंडक लिए रहता है। सनद रहे कि पुंछ कस्बे का पहला नाम पुलस्तय ही था। बर्फ से ढंके पहाड़, किनारे पर बहता शुद्ध जल का दरिया तथा चारों ओर से घिरे ऊंचे ऊंचे पर्वतों के कारण यह रमणीक स्थल हिल स्टेशन से कम नहीं माना जाता है।

राजपुरा मंडी तक जाने के लिए चंडक से रास्ता जाता है जो जम्मू से 235 किमी की दूरी पर है तथा जम्मू-पुंछ राजमार्ग पर पुंछ कस्बे से 11 किमी पहले ही चंडक आता है। बुड्ढा अमरनाथ के दर्शनार्थ आने वाले किसी धर्म, मजहब, जाति या रंग का भेदभाव नहीं करते हैं। इसकी पुष्टि इससे भी होती है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र में स्थित इस मंदिर की रखवाली मुस्लिम ही करते हैं। सिर्फ राजौरी-पुंछ से ही नहीं बल्कि देश भर से लोग चकमक पत्थर के लिंग के रूप में विद्यमान भगवान शिव के दर्शनार्थ इस मंदिर में आते हैं जबकि विभाजन से पहले पाकिस्तान तथा पाक अधिकृत कश्मीर से आने वालों का तांता भी लगा रहता था जो पुंछ कस्बे से मात्र तीन किमी की दूरी पर ही है।

जिस प्रकार कश्मीर में स्थित अमरनाथ गुफा में श्रावण पूर्णिमा के दिन जब रक्षा बंधन का त्यौहार होता है प्रत्येक वर्ष मेला लगता है ठीक उसी प्रकार इस पवित्र स्थल पर भी उसी दिन उसी प्रकार का एक विशाल मेला लगता है और अमरनाथ यात्रा की ही भांति यहां भी यात्रा की शुरूआत होती है और उसी प्रकार ‘छड़ी मुबारक’ रवाना की जाती है। त्रयोदशी के दिन पुंछ कस्बे के दशनामी अखाड़े से इस धर्मस्थल के लिए छड़ी मुबारक की यात्रा आरंभ होती है। पुलिस की टुकड़ियां इस चांदी की पवित्र छड़ी को, उसकी पूजा के उपरांत, गार्ड आफ आनर देकर इसका आदर सम्मान करती है और फिर अखाड़े के महंत द्वारा पुंछ से मंडी की ओर जुलूस के रूप में ले जाई जाती है। इस यात्रा में हजारों साधु तथा श्रद्धालू भी शामिल होते हैं जो भगवान शिव के लिंग के दर्शन करने की इच्छा लिए होते हैं। हालांकि हजारों लोग पूर्णिमा से पहले भी सालभर लिंग के दर्शन करते रहते हैं।

भगवान के लिंग के रूप में दर्शन करने से पहले श्रद्धालु लोरन दरिया में स्नान करके अपने आप को शुद्ध करते हैं और फिर भगवान के दर्शन करके अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतू वरदान मांगते हैं। मंदिर के भीतर भगवान शिव पार्वती की मनमोहक मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं। बताया जाता है कि जिस चकमक पत्थर से शिवलिंग बना हुआ है उसकी ऊंचाई करीब साढ़े पांच फुट है मगर उसका कुछ ही भाग ऊपर दिखाई देता है। यह भी कहा जाता है कि मुहम्मद गजनबी ने अपने लूटपाट अभियान के दौरान इस मंदिर को आग लगा दी थी लेकिन यह लिंग उसी प्रकार बना रहा था और यह भी कथा प्रचलित है कि बुड्ढा अमरनाथ के दर्शनों के बिना कश्मीर के अमरनाथ के दर्शन अधूरे माने जाते हैं।

इस मंदिर तथा वार्षिक उत्सव के साथ कई कथाएं जुड़ी हुई हैं। जिनमें से एक यह भी है कि सदियों पहले जब कश्मीर में बहुत ही अशांति फैली हुई थी तो लोरन चंद्रिका की महारानी अमरनाथ की गुफा के दर्शनार्थ नहीं जा पाईं। इस पर वह उदास रहने लगीं तो वह बार-बार यही सोचतीं की भगवान शिव की परम भक्त होने के बावजूद भी वे भगवान के दर्शनों के लिए न जा सकीं। उन्होंने खाना-पीना छोड़ कर भगवान शिव की तपस्या में मग्न होना आरंभ कर दिया।

खाना-पीना छोड़ दिए जाने के कारण उनकी बिगड़ती हालत देख, जैसा कि बताया जाता है, भगवान शिव ने बुढ़े साधु का रूप धारण किया और हाथों में चांदी की छड़ी ले महारानी के पास जा पहुंचे। महारानी के पास पहुंच उन्होंने उनसे कहा कि वे मंडी के पास एक खूबसूरत दरिया के किनारे भगवान शिव के दर्शन भी कर सकती हैं और अमरनाथ की गुफा तक जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। फिर क्या था, रक्षाबंधन वाले दिन उस बूढ़े साधु के नेतृत्व में महारानी ने मंडी तक की यात्रा की तो उन्हें चकमक पत्थर के रूप में भगवान शिव का लिंग नजर आएा लेकिन वह बूढ़ा साधु नजर नहीं आया। इतने में आकाशवाणी ने उन्हें यही बताया कि वे बूढ़े साधु तो भगवान शिव ही थे और उसी दिन से फिर मंडी स्थित इस लिंग का नाम बुड्ढा अमरनाथ हो गया।

एक अन्य पुरानी कथा के अनुसार रावण के दादा श्री पुलस्तया जिन्होंने पुंछ शहर को बसाया था, उन्होंने लोरन दरिया के किनारे भगवन शिव को पा लिया था अतः तभी से यह स्थान बुड्ढा अमरनाथ तथा लोरन दरिया पुलस्तया दरिया के नाम से जाना जाता है। कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव अमरनाथ की पवित्र गुफा की ओर माता पार्वती के साथ बढ़ रहे थे तो थोड़ी देर के लिए वे मंडी के उस स्थान पर रूके थे जहां आज बुड्ढा अमरनाथ जी का मंदिर है। कथा के अनुसार सर्दी के कारण उन्होंने चकमक पत्थर का निर्माण कर आग जलाई थी तथा जो कथा माता पार्वती को अमरनाथ की गुफा में अमरता के बारे में बताई थी उसकी शुरूआत इसी स्थान से की गई थी। इसलिए कहा जाता है कि इस स्थान को उतना ही पवित्र तथा धार्मिक माना जाता है जितना अमरनाथ गुफा को तथा इस धार्मिक स्थल की यात्रा के बिना अमरनाथ की यात्रा को अधूरा माना जाता है।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़