Gyan Ganga: गीता में भगवान ने विस्तार से समझाया- क्यों अजर-अमर है आत्मा

Bhagwad Gita
आरएन तिवारी । Dec 25 2020 8:14AM

भगवान ने कहा- हे अर्जुन! ऐसा धर्म-युद्ध जिनको प्राप्त हुआ है, वे क्षत्रिय बड़े सुखी हैं। यहाँ सुखी कहने का तात्पर्य है कि अपने कर्तव्य का पालन करने में जो सुख है वह सुख संसार के भोग-विलास में नहीं है। सांसरिक सुखों का भोग तो पशु-पक्षी भी करते हैं।

आज गीता जयंती भी है। आप सभी भगवत प्रेमी और प्रभा साक्षी के पाठकों को गीता जयंती की हार्दिक शुभ कामनाएँ। श्रीमद्भगवत गीता एक प्रामाणिक धर्म ग्रंथ है, इसीलिए भारत सरकार द्वारा प्रति वर्ष गीता जयंती मनाई जाती है। किसी अन्य ग्रंथ को यह सम्मान प्राप्त नहीं है।... 

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: गीता में लिखा है- जिंदगी मुसकुराते हुए कर्म करने के लिए मिली है

ब्रह्मपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को ही द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया था। इसीलिए यह तिथि गीता जयंती के नाम से भी प्रसिद्ध है। आइए! गीता प्रसंग में चलते हैं। पिछले अंक में हमने पढ़ा कि पारिवारिक मोह के कारण अर्जुन युद्ध से विमुख होना चाहते हैं, वे युद्ध से निवृत्त होने को धर्म और युद्ध में प्रवृत्त होने को अधर्म मान रहे हैं। भगवान ने अर्जुन को समझाते हुए कहा- आत्मा अजर-अमर है इसके लिए शोक करना व्यर्थ है। देखिए! भगवान ने अर्जुन से युद्ध नहीं कराया है, बल्कि उनको अपने कर्तव्य का बोध कराया है। कर्तव्य पालन ही भगवद् गीता का प्रतिपाद्य विषय है। 

अब भगवान अर्जुन का भय और शोक दूर करने के लिए क्षत्रिय धर्म का उपदेश देते हैं।  

  

श्री भगवानुवाच

स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि ।

धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते ॥ 

भगवान कहते हैं... हे अर्जुन! तुम क्षत्रिय हो। क्षत्रिय होने के कारण अपने धर्म का विचार करके तुम्हें युद्ध के लिए तैयार होना चाहिए, क्योंकि क्षत्रिय के लिए धर्म युद्ध करने के अलावा अन्य कोई श्रेष्ठ कार्य नहीं है। ऐसे ही भगवान ने अठारहवें अध्याय में ब्राह्मण, वैश्य और शूद्रों की तरफ भी इशारा किया है कि उनके लिए भी अपने-अपने कर्तव्य का पालन करने के सिवाय दूसरा कोई कल्याण प्रद कार्य नहीं है। 

सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्। 

भगवान ने कहा- हे अर्जुन! ऐसा धर्म-युद्ध जिनको प्राप्त हुआ है, वे क्षत्रिय बड़े सुखी हैं। यहाँ सुखी कहने का तात्पर्य है कि अपने कर्तव्य का पालन करने में जो सुख है वह सुख संसार के भोग-विलास में नहीं है। सांसरिक सुखों का भोग तो पशु-पक्षी भी करते हैं। अत: जिनको कर्तव्य पालन का अवसर प्राप्त हुआ है, उनको बड़ा भाग्य शाली मानना चाहिए। यहाँ भगवान श्री राम का चरित्र भी दस्तखत दे रहा है। उन्होंने माँ कैकई की आज्ञा का पालन करना अपना परम कर्तव्य समझा और अयोध्या का राज्य छोड़कर जंगल का राज्य स्वीकार किया था।

  

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्‌ ।

तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥ 

हे कुन्तीपुत्र! यदि तू युद्ध में मारा गया तो स्वर्ग को प्राप्त करेगा और यदि तू युद्ध जीत गया तो पृथ्वी का साम्राज्य भोगेगा। इस तरह तुम्हारे दोनों हाथों में लड्डू है। यहाँ भगवान द्वारा कौन्तेय संबोधन देने का यह तात्पर्य है कि जब मैं संधि का प्रस्ताव लेकर कौरवों के पास गया था, तब माता कुंती ने तुम्हारे लिए यही संदेश भेजा था कि तुम युद्ध करो। इसीलिए तुम्हें भी माता कुंती की आज्ञा का पालन करते हुए युद्ध से निवृत्त नहीं बल्कि युद्ध में प्रवृत्त होना चाहिए।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: क्यों स्वजनों को मार कर राज्य भोगने की इच्छा नहीं रखते थे अर्जुन ?

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।

ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥ 

भगवान अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि सुख या दुख, हानि या लाभ और विजय या पराजय की चिंता करना तुम्हारा उद्देश्य नहीं है, तुम्हारा उद्देश्य तो इन तीनों में सम होकर अपने कर्तव्य का पालन करना है। 

देखिए! सुख आता हुआ अच्छा लगता है और जाता हुआ बुरा लगता है तथा दुख आता हुआ बुरा लगता है और जाता हुआ अच्छा लगता है। इसलिए इनमें कौन अच्छा है और कौन बुरा? दोनों ही बराबर हैं। इस प्रकार सुख-दुख में समान भाव रखते हुए हमें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। 

गीता का सुप्रसिद्ध संदेश है– हमारा जीवन कर्म प्रधान होना चाहिए। 

कर्म ही पूजा है। आलस्य और पलायनवाद का मानव जीवन में कोई स्थान नहीं। शास्त्रों और ग्रन्थों का यही निचोड़ है...

ऐ मालिक तेरे बंदे हम

ऐसे हो हमारे करम

नेकी पर चलें

और बदी से टलें

ताकि हंसते हुए निकले दम...

श्री वर्चस्व आयुस्व आरोग्य कल्याणमस्तु...

जय श्रीकृष्ण...

-आरएन तिवारी

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़