Krishna Draupadi Katha: भगवान शिव ने दिया था द्रौपदी को पांच पतियों का वरदान, जानिए क्यों श्रीकृष्ण ने चुकाया कर्ज

Krishna Draupadi Katha
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संपूर्ण भारतवर्ष में आदर्श माने जाने वाले महाभारत और रामायण की गाथा से स्त्रियों की शक्तियों का बोध होता है। भगवान शिव ने तपस्या से प्रसन्न होकर द्रौपदी को पांच पतियों का आशीर्वाद दिया था।

महाभारत काल की द्रौपदी पूर्वजन्म में एक ऋषि कन्या थी। उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। जब भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया तो द्रौपदी ने पांच बार कहा कि सर्वगुणसंपन्न पति चाहती हैं। इसलिए भगवान शिव ने उनकी इच्छा पूरी कर दी। भगवान शिव ने कहा कि अगले जन्म में द्रौपदी को पांच भारतवंशी पति प्राप्त होंगे। क्योंकि उसने पांच बार पति को पाने की कामना दोहरायी थी। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको द्रौपदी के बारे में कुछ अनकहे रहस्यों के बारे में बताने जा रहे हैं।

संपूर्ण भारतवर्ष में आदर्श माने जाने वाले महाभारत और रामायण की गाथा से स्त्रियों की शक्तियों का बोध होता है। इन ग्रंथों में सीता और द्रौपदी जैसी दिव्य स्त्रियों का चरित्र अन्य महिलाओं को साहसी, धैर्यवान और आत्मविश्वासी बनने की प्रेरणा देता है। रामायण व महाभारत का युद्ध स्त्रियों के सम्मान के लिए किया गया था। जिसमें बुराई का अंत और सत्य की विजय हुई।

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कौन थी द्रौपदी

पूर्वजन्म में द्रौपदी ऋषि कन्या थी। जिसके पति पाने के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। उन्होंने भगवान शिव से पांच बार कहा कि वह सर्वगुणसंपन्न पति चाहती हैं। इसलिए भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उसकी मनोकामना को पूरा करने का वरदान दिया। भगवान शिव ने कहा कि उनको अगले जन्म में पांच भारतवंशी पति प्राप्त होंगे। क्योंकि उसने पांच बार पति पाने की कामना दोहराई थी।

श्रीकृष्ण ने चुकाया कर्ज

आपको बता दें कि द्रौपदी के पुण्यफलों के कारण भगवान श्रीकृष्ण ने भरी सभा में उनकी लाज बताई। इससे बता चलता है कि जीवन का पुण्य कर्म मुसीबत के समय काम आता है। बताया जाता है कि एक बार द्रौपदी गंगा में स्नान कर रही थीं, तभी एक महात्मा भी वहां स्नान के लिए आए। इस दौरान महात्मा का लंगोट पानी में बह गया। जिसके कारण वह पाऩी से बाहर निकलने में असक्षण थे। तब द्रौपदी ने महात्मा की सहायता के लिए अपनी साड़ी से लंगोट भर का कपड़ा फाड़कर दे दिया। जिसके बाद महात्मा ने द्रौपदी को आशीर्वाद दिया था।

वहीं एक अन्य कथा के मुताबिक जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शऩ चक्र से शिशुपाल का वध किया था, तो उस दौरान श्रीकृष्ण की उंगली कट गई थी। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर भगवान श्रीकृष्ण की उंगली पर बांधा था। इस कर्म के बदले भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को आशीर्वाद देते हुए कहा था कि वह एक दिन इस साड़ी की कीमत अदा करेंगे। द्रौपदी के इन्हीं पुण्यकर्मों को श्रीकृष्ण ने चीरहरण के दौरान उसे ब्याज सहित लौटा दिया। जिससे द्रौपदी की लाज बच गई।

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