महालक्ष्मी मंदिर में भक्तों को प्रसाद के रूप में दिए जाते हैं सोने-चांदी के आभूषण

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कमल सिंघी । Oct 24 2019 4:58PM

धनतेरस के पहले महालक्ष्मी मंदिर की सजावट शुरू हो जाती है। इस दौरान रतलाम सहित आसपास क्षेत्र के लोग अपने सोने-चांदी के आभूषण तथा नोटों की गडि्डयां यहां लेकर पहुंचते है। जिनकी मंदिर ट्रस्ट द्वारा एंट्री कर टोकन भी दिया जाता है।

दीपावली व धनतेरस पर हम सभी अपने-अपने घरों में धन की देवी लक्ष्मी और कुबेर महाराज की पूजा कर उनसे धन में वृद्धि की कामना करते हैं। लेकिन भारत की मध्य में स्थित मध्यप्रदेश के रतलाम शहर में महालक्ष्मी का एक ऐसा मंदिर है जहां पर लोग अपनी पूरी श्रद्धा के साथ नोटों की गडि्डयां और आभूषण लेकर जाते हैं और दीपावली बाद उन्हें वापस लेकर आते है। मान्यता यह है कि इस मंदिर की सजावट में रखने वाले नोटो की संख्या और आभूषण में साल भर बाद वृद्धि हो जाती है। रतलाम के माणक चौक रोड़ स्थित लक्ष्मणपुरा में महालक्ष्मी मंदिर है। जहां प्रसाद के रूप लोगो को सोने-चांदी के आभूषण और सिक्के बांटे जाते है। इस मंदिर के पट केवल धनतेरस के दिन खुलते है और दीपावली बाद भाई दूज को वापस बंद हो जाते है।

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धन तेरस को खुलते है मंदिर के कपाट, मनाया जाता है पांच दिवसीय पर्व-

मध्य प्रदेश के रतलाम के इस महालक्ष्मी मंदिर को लेकर कई रौचक तथ्य जुड़े हुए है। महालक्ष्मी मंदिर के कपाट (द्वार) वर्ष में केवल धनतेरस के दिन ब्रह्म मुहूर्त में खोल जाते है। जिसके बाद यहा पर पांच दिवसीय महोत्सव मनाया जाता है और दीपावली बाद भाई दूज को कपाट पूरी तरह बंद कर दिए जाते है। इस दौरान यहां महालक्ष्मी की विभिन्न रूप से पूजा की जाती है। रतलाम शहर सहित आसपास के लोगों  की मान्यता है कि महालक्ष्मी मंदिर में श्रृंगार के लिए लाए गए आभूषण और धन से घर में सुख समृद्धि बनी रहती है और वर्ष भर में धन दोगुना हो जाता है। महालक्ष्मी मंदिर की सजावट धनतेरस के आठ रोज पहले से ही प्रारंभ कर दी जाती है। इस दौरान लोग यहां सोने एवं चांदी के सिक्के भी भारी मात्रा में लेकर पहुंचते है।

मंदिर की सजावट मे लगते है 100 करोड़ से अधिक के आभूषण- 

धनतेरस के पहले महालक्ष्मी मंदिर की सजावट शुरू हो जाती है। इस दौरान रतलाम सहित आसपास क्षेत्र के लोग अपने सोने-चांदी के आभूषण तथा नोटों की गडि्डयां यहां लेकर पहुंचते है। जिनकी मंदिर ट्रस्ट द्वारा एंट्री कर टोकन भी दिया जाता है। नोटों की गडि्डयां से मंदिर को पूरी तरह सजाया जाता है एवं आभूषण मंदिर में विराजित महालक्ष्मी देवी को समर्पित किए जाते हैं। धनतेरस के पहले मंदिर को पूरी तरह सोने तथा चांदी के आभूषण और नोटो की गडि्डयां से सजाया जाता है। धनतेरस से लेकर भाई दूज तक इस मंदिर में धूमधाम से महोत्सव मनाया जाता है। जिसके बाद जो भी व्यक्ति अपने आभूषण और रुपये सजावट के लिए लाता है उन्हें टोकन के माध्यम से वापस दे दिए जाते है। भाई दूज के दीन पुनः महालक्ष्मी मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते है। इस दौरान भक्तों को यहां पर श्रीयंत्र, सिक्का, कौडि़यां, अक्षत कुमकुम लगा कुबेर पोटली प्रसाद के रूप में दी जाती है। एक अनुमान के मुताबिक यहां पर 100 करोड़ से अधिक का धन एकत्रित होता है। 

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यह है मान्यता-

रतलाम के महालक्ष्मी मंदिर को लेकर काफी मान्यताएं है। लोगो द्वारा मंदिर की सजावट करने से ऐसा प्रतित होता है कि मानों यहां पर यह सारा धन दान में दिया गया हो। लोगों की मान्यता है कि वे अपना धन यहां सजावट के लिए रखते है तो महालक्ष्मी के आशीर्वाद से धन वर्ष भर में दोगुना हो जाता है। इसलिए हर वर्ष धनतेरस से पहले बड़ी संख्या में लोग पहुंचकर सजावट हेतु अपना धन यहां देते है। मंदिर के इतिहास को लेकर काफी मान्यताएं और इतिहास भी है। बताया जाता है कि रतलाम शहर पर राज्य करने वाले तात्कालीन राजा को महालक्ष्मी माता द्वारा स्वप्न दिया था जिसके बाद से उन्होंने यह परम्परा प्रारंभ की थी जो आज तक चल रही है। इस मंदिर की अनुठी पंरपरा के चलते यह देश का संभवतः पहला एवं एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां पर धन की देवी लक्ष्मी प्रसाद के रूप में गहने व पैसे प्रदान करती है।

कमल सिंघी

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