पाक के तीन हजार बम भी तनोटराय मंदिर का बाल बांका नहीं कर सके

Paks three thousand bombs could not destroy the temple of Tanotrai temple

भारत वर्ष में यूं तो माता के अनेक ऐतिहासिक, धार्मिक एवं कलात्मक मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रबल केन्द्र है परन्तु राजस्थान में भारत और पाकिस्तान की सीमा पर जैसलमेर जिले में 120 किलोमीटर दूर भारतीय सीमा में स्थित तनोटराय मातेश्वरी के मंदिर की बात ही निराली है।

भारत वर्ष में यूं तो माता के अनेक ऐतिहासिक, धार्मिक एवं कलात्मक मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रबल केन्द्र है परन्तु राजस्थान में भारत और पाकिस्तान की सीमा पर जैसलमेर जिले में 120 किलोमीटर दूर भारतीय सीमा में स्थित तनोटराय मातेश्वरी के मंदिर की बात ही निराली है। कहा जाता है कि 1965 के भारत−पाक युद्ध में पाकिस्तानी सेना द्वारा इस मंदिर पर भारी बमबारी की गई परन्तु मंदिर को जरा भी क्षति नहीं हुई।

बताया जाता है कि बहुत पहले मामडिया नामक चारण के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की। एक बार माता ने स्वप्न में आकर उसकी इच्छा पूछी तो चारण ने कहा कि आप मेरे यहां जन्म लेवें। माता की कृपा से चारण के यहां सात पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहां जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू कर दिया। इसके बाद जन्मी छह बहनों के नाम आशी, सेसी, गेहली, होलरूप एवं लांग थे। सातों पुत्रियां देवीय चमत्कारों से युक्त थीं। उन्होंने हूणों के आक्रमण से माण्ड प्रदेश की रक्षा की। अपने जन्म के बाद भगवती आवड जी ने बहुत सारे चमत्कार दिखाये तथा नगनेची, डूंगरराय, भोजसरी, देगराय, तेभडेराय व तनोटराय नाम से प्रसिद्ध हुई। तनोट के अंतिम राजा भाटी तनुराव ने तनोट गढ़ की विक्रम संवत् 447 में नींव रखी एवं विक्रम संवत् 888 में तनोट दुर्ग एवं मंदिर की प्रतिष्ठा कराई। तनोट माता का मंदिर देश−विदेश में अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है। तनोट माता को आवड माता भी कहा जाता है। यहां आश्विन और चैत्र के नवरात्रा में विशाल मेले आयोजित होते हैं।

इस प्राचीन मंदिर की ख्याति 1965 की भारत−पाकिस्तान लड़ाई के दौरान न केवल पूरे देश में वरन विश्व में फैल गई, जब पाकिस्तानी सेना की तरफ से गिराए गए करीब तीन हजार बम भी इस मंदिर का बाल बांका नहीं कर सके थे। करीब 450 बम से ऐसे निकले, जो फटे ही नहीं। ये बम भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर के साथ बने एक संग्रहालय में रख दिए गए हैं। यहीं से यह मंदिर भारतीय सैनिकों एवं सीमा सुरक्षा बल की श्रद्धा का केन्द्र बन गया। इस युद्ध के बाद मंदिर की सुरक्षा का जिम्मा सीमा सुरक्षा बल ने ले लिया है और उन्होंने यहां अपनी एक चौकी भी बना ली है। लौंगेवाला की विजय के बाद मंदिर में एक विजय स्तम्भ निर्माण किया गया, जहां प्रतिवर्ष 16 दिसम्बर को शहीद सैनिकों की याद में उत्सव मनाया जाता है।

तनोट माताजी के गर्भगृह में स्थापित प्रतिमा के पीछे चांदी की पतरी से सजावट की गई है। प्रतिमा के ऊपर चांदी का गुम्बद छतरीनुमा बनाया गया है। मंदिर के प्रार्थना हॉल में दीवारों पर मंदिर व पाकिस्तान द्वारा बम बरसाने की घटनाएं लिखी गई हैं तथा यहां दर्शन करने के लिए आने वाले अतिविशिष्ट व्यक्तियों के फोटो भी दर्शाये गये हैं। सभा कक्ष कई स्तंभों पर टिका है। मंदिर के बाहर एक धुनी बनाई गयी है। इस मंदिर के पास ही श्री वीरेश्वर महादेव का एक मंदिर भी बना है। गर्भगृह में श्यामवर्ण के शिवलिंग के साथ पीछे के भाग में शंकर पार्वती एवं परिवार की प्रतिमाएं बनाई गई हैं। मंदिर के बाहर एक नन्दी प्रतिमा बनी है तथा इस मंदिर के सभा कक्ष के प्रवेश द्वार के दोनों तरफ पीतवर्ण की सिंह प्रतिमाएं बनाई गई हैं। मंदिर परिसर एक अहाते से घिरा है। मंदिर में ठंडे जल के लिए एक प्याऊ, श्रद्धालुओं के लिए भोजनशाला एवं ठहरने के लिए स्थान बनाये गये हैं। मंदिर के आहते की दीवार के साथ एक बड़ा सिंह द्वार बनाया गया है। यहां जैसलमेर से सरकारी बस शाम को आती है और रात्रि को यहीं पर ठहर कर अगले दिन प्रातः सुबह वापस रवाना होती है।

मंदिर का पूरा प्रबंध सीमा सुरक्षा बल द्वारा किया जाता है। मंदिर की साफ−सफाई विशेष रूप से दर्शनीय है। आरती के लिए इलेक्ट्रॉनिक वाद्य यंत्र लगाये गये हैं। प्रतिदिन प्रातः एवं सायं आरती की जाती है। रेगिस्तान की धोहरों के बीच भारत−पाक सीमा पर तनोट माता के दर्शन करना अपने आप में रोमांच उत्पन्न करता है। 

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल 

लेखक एवं पत्रकार

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