काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-20

Lord Rama
विजय कुमार । Sep 15 2021 2:43PM

श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित अयोध्या कांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।

कथा श्रवण के वास्ते, जिनके प्यासे कान

हरि दर्शन कैसे मिले, इसी ओर हो ध्यान।

इसी ओर हो ध्यान, जीभ प्रभु के गुण गाए

हरि प्रसाद से गंधित, वह नासिका सुहाए।

कह ‘प्रशांत’ हों व्याकुल चरण तीर्थ जाने को 

हो विनम्र अति शीश, सदा वंदन करने को।।61।।

-

दान यज्ञ-तर्पण करें, जिसके दोनों हाथ

काम क्रोध मद-लोभ या, मोह नहीं हो साथ।

मोह नहीं हो साथ, कपट-दंभ और माया

राग-द्रोह से मुक्त प्रेम तव चरण समाया।

कह ‘प्रशांत’ दूजों के सुख-दुख में सहभागी

सदा आपकी शरणागति चाहे बड़भागी।।62।।

-

गुणग्राही होते सदा, जो अवगुण को छोड़

और प्रशंसा मार्ग पर, करते कभी न होड़।

करते कभी न होड़, धर्म-धन घर-परिवारा

जात-पात सबसे ऊपर है नाम तुम्हारा।

कह ‘प्रशांत’ तुम उनके दिल में करो निवासा

स्वर्ग-नरक या मोक्ष की नहीं जिन्हें पिपासा।।63।।

-

इतना कह बोले मुनी, चित्रकूट है नाम

वन-पर्वत सुंदर सकल, वहीं बसो श्रीराम।

वहीं बसो श्रीराम, पुण्य मंदा की धारा

गंगा ने ही वहां रूप नूतन अवतारा।

कह ‘प्रशांत’ ऋषियों-मुनियों से सत्संग कीजे

निज निवास से चित्रकूट को गौरव दीजे।।64।।

-

मुनिवर से आशीष ले, हुए अग्रसर राम

पहुंच गये वे शीघ्र ही, चित्रकूट वन धाम।

चित्रकूट वन धाम, किया मंदा में स्नाना

कुटिया हित लक्ष्मण ने देखी जगह समाना।

कह ‘प्रशांत’ तीनों ने मिल दो कुटी बनायी

वेश बदल देवों ने भी श्रम साध लगायी।।65।।

-

रघुवर खुद आये यहां, समाचार यह जान

मुनिगण सब हर्षित हुए, पहुंचे उनके स्थान।

पहुंचे उनके स्थान, राम ने आदर दीन्हा

आशिष पाए उनसे और विदा फिर कीन्हा।

कह ‘प्रशांत’ वनवासी नर-नारी भी आये

कर प्रणाम तीनों को, भेंट किया जो लाए।।66।।

-

तीनों प्राणी बस गए, चित्रकूट प्रिय धाम

जंगल में मंगल हुआ, जबसे आये राम।

जबसे आये राम, मधुर भौंरें थे गाते

वृक्ष नदी-तालाब हर्ष से थे उमगाते।

कह ‘प्रशांत’ जब शीतल मंद हवा थी बहती

पा उनकी सुगंध फूल फल-कलियां खिलतीं।।67।।

-

पक्षीगण गाते मधुर, कर्णप्रिय नित गीत

बैर छोड़ सारे पशु, करें परस्पर प्रीत।

करें परस्पर प्रीत, बसे श्रीराम किनारे

सब नदियां कहतीं, मंदा बड़भाग तुम्हारे।

कह ‘प्रशांत’ सब पर्वत भी हैं गौरव गाते

चित्रकूट को आकर सारे शीश नवाते।।68।।

-

सीताजी हर्षित बड़ी, पा प्रियतम का साथ

लखनलाल के वास्ते, राम जगत के नाथ।

राम जगत के नाथ, अवध की याद न आती

प्रीत राम के चरणों में नित बढ़ती जाती।

कह ‘प्रशांत’ पर राघव नेत्र भीग जाते हैं

माता-पिता बंधु जब याद उन्हें आते हैं।।69।।

-

राम-लखन को छोड़कर, वापस गये निषाद

थे सुमंत्र बैठे वहां, करते सबको याद।

करते सबको याद, कलेजा मुंह को आया

तब निषाद राजा ने धीरज धर समझाया।

कह ‘प्रशांत’ हे मंत्रीवर विषाद को छोड़ो

राजा को सब बतलाओ, निज रथ को मोड़ो।।70।।

- विजय कुमार

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़