काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-26
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श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित अरण्य कांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।
रामचंद्रजी का बना, था वन में आवास
बीत रहे थे दिन सुखद, रातें भरी उजास।
रातें भरी उजास, रूप कौए का लेकर
आया वहां जयंत अहंकार में भरकर।
कह ‘प्रशांत’ था इन्द्रपुत्र पर घोर अभागा
सीता के चरणों में चोंच मारकर भागा।।1।।
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बहता देखा खून जब, क्रोधित होकर घोर
रघुनंदन ने बाण इक, छोड़ा उसकी ओर।
छोड़ उसकी ओर, जहां भी वह जाता था
अभिमंत्रित वह ब्रह्मबाण पीछे आता था।
कह ‘प्रशांत’ वह कई लोक में भागा-दौड़ा
मगर बाण ने उसका पीछा कहीं न छोड़ा।।2।।
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शरण नहीं पाई कहीं, होकर बहुत निराश
आकर बैठा राम के, चरणों के ही पास।
चरणों के ही पास, राम का द्रोही जो है
उसके लिए जगत में कोई स्थान नहीं है।
कह ‘प्रशांत’ कर एक आंख से उसको काना
छोड़ दिया राघव ने वे हैं कृपानिधाना।।3।।
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उन सबसे मिलने वहां, आते लोग अपार
सो अब चलना चाहिए, मन में किया विचार।
मन में किया विचार, अत्रि के आश्रम आये
देख उन्हें मुनिवर मानो सुध-बुध बिसराये।
कह ‘प्रशांत’ फिर सादर स्तुति राम की गायी
तव चरणों में रहे बुद्धि हर दम रघुराई।।4।।
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ऋषिपत्नी को देखकर, बैठी सीता पास
चरण छुए आशिष मिले, हुआ सुखद अहसास।
हुआ सुखद अहसास, रहे जो निर्मल-नूतन
दीन्हे सदा सुहावन दिव्य वस्त्र-आभूषण।
कह ‘प्रशांत’ फिर नारी के कुछ धर्म बताए
दाम्पत्य जीवन के सफल सूत्र समझाए।।5।।
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पति की सेवा में बसे, जिस पत्नी के प्राण
सर्वश्रेष्ठ इस जगत में, उसको नारी जान।
उसको नारी जान, मोक्ष का है वह दाता
हितकारी हैं यद्यपि बन्धु-पिता और माता।
कह ‘प्रशांत’ मन वचन-कर्म से पतिव्रत धारी
सदा जगत में पूजित होती है वह नारी।।6।।
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सुनो जानकी पतिव्रता, चार तरह की होय
पहली जिसके स्वप्न में, पति के सिवा न कोय।
पति के सिवा न कोय, दूसरी कुल मर्यादा
की रक्षा हित नहीं सोचती है कुछ ज्यादा।
कह ‘प्रशांत’ तीजी भय के कारण चुप रहती
अधम-अपावन है वह, वेद ऋचाएं कहती।।7।।
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चैथी की कलुषित कथा, सुनकर झुकता माथ
अपने पति को छोड़कर, करे और का साथ।
करे और का साथ, उसे जो धोखा देती
सौ कल्पों तक दारुण कष्ट नरक के सहती।
कह ‘प्रशांत’ वह अगला जन्म जहां पाएगी
भरी जवानी में ही विधवा हो जाएगी।।8।।
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सीता तुमने भाग्य से, पाए हैं श्रीराम
युगों-युगों तक नारियां, गाएंगी तव नाम।
गाएंगी तव नाम, जन्म निज सफल करेंगी
लेकर नाम तुम्हारा पतिव्रत को पालेंगी।
कह ‘प्रशांत’ वृत्तांत जगत हित तुम्हें सुनाया
सीता ने हर्षित हो सादर शीश नवाया।।9।।
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आज्ञा ले मुनिराज की, कीन्हा फिर प्रस्थान
नदियां पर्वत-घाटियां, दुर्गम सुंदर स्थान।
दुर्गम सुंदर स्थान, पार थे करते जाते
अपने स्वामी को पाकर सब थे हर्षाते।
कह ‘प्रशांत’ सबसे आगे चलते रघुराई
पीछे लक्ष्मण और मध्य जानकी सुहाई।।10।।
- विजय कुमार
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