काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-56
श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित लंकाकांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।
विनती सुनकर इन्द्र की, हुए मुदित श्रीराम
लेकिन पहले कीजिए, ये छोटा सा काम।
ये छोटा सा काम, रीछ-भालू या वानर
प्राण तजे जिन वीरों ने मेरी आज्ञा पर।
कह ‘प्रशांत’ इनके प्राणों को वापस लाओ
देवराज, सबसे पहले तुम इन्हें जिलाओ।।111।।
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अमृत की वर्षा हुई, जागे सारे वीर
निद्रा से जैसे उठे, हों सैनिक रणधीर।
हों सैनिक रणधीर, तभी आये शिव भोले
हाथ जोड़कर विनय भाव से वे यह बोले।
कह ‘प्रशांत’ हे निर्गुण सगुण-दिव्य गुणधामा
मेरे मन में स्थायी वास करो श्रीरामा।।112।।
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काम क्रोध-मद हैं प्रबल, जैसे हाथी मस्त
सिंह रूप तुम राम हो, करते इनको ध्वस्त।
करते इनको ध्वस्त, विषय कामना मिटाते
हो उदार मन से आगे, हम समझ न पाते।
कह ‘प्रशांत’ भवसागर को मथने हो आये
मंदर पर्वत बन सारे कर्तव्य निभाए।।113।।
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तभी विभीषण आ गये, कीन्हा नम्र प्रणाम
मेरा घर पावन करें, चलें वहां श्रीमान।
चलें वहां श्रीमान, स्नान-विश्राम करीजे
भरा खजाना बांट वानरों को सब दीजे।
कह ‘प्रशांत’ मैं संग आपके अवध चलूंगा
चरणों की सेवा में हरदम लगा रहूंगा।।114।।
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राघव बोले प्रेम से, सुनो विभीषण राज
याद भरत की आ रही, मुझे बहुत ही आज।
मुझे बहुत ही आज, समय से मुझको जाना
वरना होगा कठिन भरत को जीवित पाना।
कह ‘प्रशांत’ तुम हमको अवधपुरी भिजवाओ
जितना जल्दी हो, इसका प्रबंध करवाओ।।115।।
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लंका में मौजूद था, पुष्पक महाविमान
राघव के सम्मुख रखा, भक्त विभीषण आन।
भक्त विभीषण आन, भरा कपड़ों-मणियों से
आज्ञा पाकर बरखा दिये सभी अंबर से।
कह ‘प्रशांत’ ले लिया, जिसे जो भी मन भाया
रघुनंदन ने सबसे ऐसा खेल रचाया।।116।।
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राघव को दिखला रहे, वानर निज शृंगार
मणियों को फल समझते, पर वे थीं बेकार।
पर वे थीं बेकार, राम बोले घर जाओ
याद मुझे रखना, भय नहीं किसी से खाओ।
कह ‘प्रशांत’ तुम सबके बल पर रावण मारा
भूल नहीं सकता मैं यह उपकार तुम्हारा।।117।।
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वानर बोले आपसे, पाया स्नेह अपार
विरह आपका है कठिन, कृपा करें करतार।
कृपा करें करतार, राम ने फिर समझाया
आज्ञा मान सभी ने घर को कदम बढ़ाया।
कह ‘प्रशांत’ थे जो सेनानायक बलवाना
उनको लेकर संग राम कीन्हे प्रस्थाना।।118।।
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उत्तर दिश में चल दिया, पुष्पक महाविमान
उत्सुकता से जानकी, ने देखे सब स्थान।
ने देखे सब स्थान, हुआ संग्राम भयानक
पड़े हुए थे मृत होकर लाखों बलनायक।
कह ‘प्रशांत’ राघव ने सेतुबंध दिखलाया
रामेश्वर के सम्मुख सबने शीश झुकाया।।119।।
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फिर वे दंडकवन गये, चित्रकूट प्रिय धाम
ऋषि-मुनियों से भेंट कर, सादर किया प्रणाम।
सादर किया प्रणाम, जमुन-गंगा अति पावन
तीर्थ त्रिवेणी स्नान-दान कीन्हे मनभावन।
कह ‘प्रशांत’ हनुमत को अवधपुरी भिजवाए
समाचार जिससे वो पूरे लेकर आएं।।120।।
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भरद्वाज आश्रम गये, सादर किया प्रणाम
कुशलक्षेम सब जानकर, हुए अग्रसर राम।
हुए अग्रसर राम, सिया ने आशिष पाए
गंगाजी की पूजा कीन्हीं, भेंट चढ़ाए।
कह ‘प्रशांत’ राजा निषाद ने स्वागत कीन्हा
परम प्रेम लख राघव ने अंक भर लीन्हा।।121।।
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सुख-दुख की बातें हुईं, दोनों बैठे साथ
चरणकमल दर्शन किये, धन्य हुआ मैं नाथ।
धन्य हुआ मैं नाथ, पूर्णकाम श्रीरामा
नमन आपको बार-बार हे सुख के धामा।
कह ‘प्रशांत’ जो समर-विजय की गाथा सुनते
उनको राम विजय विवेक-विभूति हैं देते।।122।।
- विजय कुमार
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