Gyan Ganga: हनुमानजी ने भगवान श्रीराम को सीता मैय्या की दशा की जानकारी देते हुए क्या बताया था

Hanumanji
Prabhasakshi
सुखी भारती । Jun 23 2022 3:08PM

श्रीहनुमान जी श्रीराम जी को सीधा-सीधा उत्तर भी दे सकते थे। लेकिन उन्होंने जो प्रतिउत्तर में कहा। वह बड़ा अलँकारिक है। उसे केवल श्रीराम जी ही समझ सकते हैं। या फिर वह समझ सकता है, जो उस स्थिति तक पहुँचा हो, जो श्रीराम जी की है।

श्रीहनुमान जी, जब श्रीराम जी से आज्ञा लेकर लंका गए, तो उनका एक ही लक्ष्य था, कि उन्हें माता सीता जी तक प्रभु श्रीराम जी का संदेश इस नाप तोल से देना था, कि जिसे श्रवण कर श्रीसीता जी का दुख आधा रह जाये। निःसंदेह श्रीहनुमान जी ने प्रभु का यह संदेश जितनी कुशलता व निष्ठापूर्वक दिया, वह अविस्मरणीय है। किष्किंधा से लंका की यात्रा तो निःसंदेह श्रेष्ठ रही। लेकिन लंका से किष्किंधा की यात्रा भी वैसी ही अविस्मरणीय रहेगी, यह अभी भविष्य के गर्भ में था। इसी के निमत्त एक चिंतन था, कि क्या श्रीहनुमान जी प्रभु श्रीराम जी के समक्ष भी, माता सीता के दुख, प्रेम व समर्पण का वैसा ही चित्रण प्रस्तुत कर पायेंगे, जैसा कि उन्होंने श्रीसीता जी के समक्ष, प्रभु श्रीराम जी के बारे में चित्रण किया था? निःसंदेह यह चिंतन का विषय हो सकता था। लेकिन जहाँ पर श्रीहनुमान जी की पावन उपस्थिति हो। वहाँ पर यह चिंतन तो होना ही व्यर्थ है, कि श्रीहनुमान जी से अमुक कार्य हो भी सकता है, अथवा नहीं। प्रभु श्रीराम जी जाम्बवान् जी के श्रीमुख से श्रीहनुमान जी की दिव्य लीलायें श्रवण कर इतने प्रसन्न हैं, कि वे श्रीहनुमान जी को बार-बार अपने हृदय से लगा रहे हैं। अबकी बार प्रभु श्रीराम, श्रीहनुमान जी को अपने हृदय से लगाकर पूछते हैं, कि हे हनुमंत लाल! हे तात! तनिक मुझे यह तो बताओ, कि श्रीसीता जी किस प्रकार रहती हैं, और वे अपने प्राणों की रक्षा कैसे करती हैं-

‘सुनत कृपानिधि मन अति भाए।

पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए।।

कहहु तात केहि भाँति जानकी ।

रहति करति रच्छा स्वप्रान की।।’

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श्रीहनुमान जी श्रीराम जी को सीधा-सीधा उत्तर भी दे सकते थे। लेकिन उन्होंने जो प्रतिउत्तर में कहा। वह बड़ा अलँकारिक है। उसे केवल श्रीराम जी ही समझ सकते हैं। या फिर वह समझ सकता है, जो उस स्थिति तक पहुँचा हो, जो श्रीराम जी की है। अर्थात श्रीराम जी का ही रूप बन गया हो। श्रीहनुमान जी कहते हैं, कि प्रभु आपने अब प्रश्न ही ऐसा कर दिया है, कि बात प्राणों पर बनी हुई है। आप पूछ रहे हैं, कि माता सीता जी कैसे अपने प्राणों की रक्षा कर रही हैं, तो यह बताना तो बड़ा कठिन व कष्टदायक-सा है। क्योंकि मछली बिना जल के जैसे जीवित ही नहीं रह सकती। ठीक वैसे ही श्रीसीता जी भी, आपके बिना कैसे जीवित रह सकती हैं? लेकिन आश्चर्य है, कि वे फिर भी जीवित हैं। कारण कि उनके प्राणों को शरीर से निकलने का मार्ग ही नहीं मिल पा रहा है। प्रभु श्रीराम जी बोले कि अरे हनुमंत लाल जी! यह भला क्या बात हुई। प्राणों को तन से निकलना है, तो मार्ग क्यों नहीं मिल पा रहा। तो श्रीहनुमान जी बोले, कि हे प्रभु! यह तो आपको भी ज्ञान है, कि प्राण तो देह से बाहर नहीं, अपितु भीतर ही बसते हैं। तो देह रूपी कक्ष से बाहर निकलने में प्राणों को बड़ी भारी रुकावट है। रुकावट यह, कि पहली बात तो मईया की देह रूपी नगरी से बाहर जाने वाले मार्ग पर कपाट लगा हुआ है, जो ध्यान का बना हुआ है, जो कि बड़ा भारी व ठोस है। कोई सांसारिक ध्यान हो तो टूट भी जाये। लेकिन ध्यान श्रीसीता जी के संर्दभ में हो, ओर वह ध्यान भी श्रीराम जी का हो, तो उसे भला कौन खोल सकता है। आपसे मईया का ध्यान हटे, तो मानें कि उनकी देह के किवाड़ खुल गए हैं। लेकिन माता सीता जी का ध्यान आपसे हटता ही नहीं, और प्राण देह से निकलते ही नहीं। चलो माना कि किवाड़ भी खुल गए। अर्थात आपसे ध्यान भी हट गया। लेकिन श्रीसीता जी के प्राण, फिर भी देह से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। कारण कि किवाड़ के बाहर बहुत ही भारी पहरा लगा हुआ है। ऐसा कठिन पहरा, कि उसे तोड़ पाना मुश्किल ही नहीं, अपितु असंभव भी है। यह सुन प्रभु श्रीराम जी ने पूछा, कि भई, ऐसा कैसा पहरा! कि जिसे श्रीसीता जी भी तोड़ने में असमर्थ हैं?

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तो श्रीहनुमान जी ने कहा, कि हे प्रभु! मईया के जो ध्यान के किवाड़ हैं, उनके बाहर, आपके नाम का पहरा लगा हुआ है। अब आप ही बताईये। क्या प्राणों में इतना बल व साहस है, कि वे प्रभु नाम के पहरे को तोड़ कर बाहर निकल पायें। यह सुन प्रभु श्रीराम जी ओर अधिक जिज्ञासा से भर कर कहते हैं, कि हे हनुमंत लाल! क्या प्राणों ने और कोई प्रयास नहीं किया, कि वे श्रीसीता जी की देह को छोड़ पायें? तो श्रीहनुमान जी कहते हैं, कि हे प्रभु! प्राण अपना प्रयास कहाँ छोड़ते हैं। उन्होंने मईया के नयनों से कई बार निकलने का प्रयास किया। लेकिन फिर भी वे असफल सिद्ध हुए। कारण कि माता सीता जी के नयन तो सदैव बंद ही रहते हैं। नयन कभी खुले हों, तो प्राण सुलभता से ही निकल जायें। लेकिन क्या करें, मईया ने अपने नयन तो आपके श्रीचरणों में लगा रखे हैं। जिस कारण कि नयन खुलते ही नहीं। ओर सच कहुँ तो यह बंद नयन ही बंद ताला हैं। नयन आपके श्रीचरणों से हट कर कहीं और देखने के लिए खुलें, तो समझा भी जाये, कि ताला खुल गया है। और अब बाहर जाया जा सकता है। लेकिन मईया का ध्यान है, कि आपके श्रीचरणों से हटता ही नहीं। अर्थात ताला तो पक्का लगा ही हुआ है। अब ऐसे में आप ही बतायें, कि मईया के प्राण कहाँ ये निकलें?

‘नाम पाहरु दिवस निसि तुम्हार कपाट।

लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट।।

श्रीहनुमान जी, माता सीता जी की जो कथा सुना रहे हैं, उसे सुन श्रीराम जी के कोमल हृदय पर क्या प्रभाव पड़ा, जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।

-सुखी भारती

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