Gyan Ganga: सीता मैय्या से पहले विभीषण से क्यों मिले थे श्रीरामभक्त हनुमान ?

Lord Hanuman
सुखी भारती । Jan 4 2022 5:24PM

श्रीविभीषण जी कहते हैं, कि हे हनुमंत लाल जी! आपको नहीं पता कि मेरा शरीर श्रीराम जी के अनुकूल बना ही नहीं। किसे नहीं पता कि मैं राक्षस कुल में जन्मा हूँ। तामस देह होने के कारण, मैं कहाँ कोई विधिवत साधन से श्रीराम जी को भज पाया हूँ।

वाह! क्या नम्रता व भक्ति के सरल रूप हैं श्रीविभीषण जी। सद्गुणों की तो वे जैसे साक्षात खान हैं, लेकिन तब भी, वे स्वयं को यूँ अपात्र व असमर्थ घोषित कर रहे हैं, मानो वे श्रीराम जी की चरण धूली के भी लायक नहीं हों। श्रीविभीषण जी आर्त भाव से श्रीहनुमान जी के समक्ष यह कहते हुए, मानो रो-से पड़ते हैं-

इसे भी पढ़ें: कुंभ राशि के जातकों का वर्ष 2022 में कैसा रहेगा भविष्यफल, जानिए

‘तामस तनु कछु साधन नहीं।

प्रीत न पद सरोज मन माहीं।।’

श्रीविभीषण जी कहते हैं, कि हे हनुमंत लाल जी! आपको नहीं पता कि मेरा शरीर श्रीराम जी के अनुकूल बना ही नहीं। किसे नहीं पता कि मैं राक्षस कुल में जन्मा हूँ। तामस देह होने के कारण, मैं कहाँ कोई विधिवत साधन से श्रीराम जी को भज पाया हूँ। और ऐसा भी नहीं कि मेरे मन में, श्रीराम जी के प्रति अथाह श्रद्धा व राग हो। जिससे वे मेरे इन अवगुणों को अनदेखा कर मुझे स्वीकार कर लें। श्रीविभीषण जी अपनी अपात्रता की खाई में, इतने धँसते से जा रहे हैं, कि उन्हें रत्ती भर भी यह आशा अथवा विश्वास नहीं, कि मैं श्रीराम जी के चरण कमलों में स्थान पा पाऊँगा। एक के बाद एक, श्रीविभीषण जी मानो इस खाई में पलटियां खाये जा रहे थे। लेकिन तभी प्रभु श्रीराम जी की ही कृपा से, श्रीविभीषण जी के हृदय में यह प्रकाश हुआ, कि अरे पगले विभीषण! तेरे दिमाग को क्या हो गया है रे। भगवान श्रीराम तुझपे इतनी अनुकंपा किए जा रहे हैं, और तू है कि उनकी कृपा व प्रेम को समझ ही नहीं पा रहा है। देख! इतना तो तुझे भी ज्ञान हो गया है, कि श्रीराम जी ने अपने दूत श्रीहनुमान जी को श्रीसीता जी के लिए ही भेजा है। प्रभु तो समर्थ हैं, और श्रीहनुमान जी को वे सीधा श्रीसीता जी के समीप भी तो भेज सकते थे। लेकिन अपनी प्राणप्रिय श्रीसीता जी से भी पहले, उन्होंने श्रीहनुमान जी को आपके पास भेजा। और श्रीहनुमान जी जैसे संत, जब किसी के पास दर्शन देने पहुँचते हैं, तो वे स्वयं नहीं, अपितु प्रभु प्रेरणा से ही वहाँ पहुँचते हैं। आसमाँ सूर्य उदित होने से पूर्व, जैसे आसमाँ में पहले ही लाली का आगमन हो जाता है। ठीक उसी प्रकार, प्रभु ने जहाँ अपने चरण रखने होते हैं, ठीक उससे पूर्व, वहाँ उनके प्रिय संतों की पावन उपस्थिति हो जाती है। और आज श्रीविभीषण जी के समक्ष, श्रीहनुमान जी का प्रत्यक्ष प्रकट होना, इस बात का साक्षात प्रमाण था। श्रीविभीषण जी को जब इस घटना का ज्ञान हुआ, तो वे सहज ही कह उठे-

‘अब मोहि भा भरोस हनुमंता।

बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।।’

श्रीविभीषण जी कहते हैं, कि इससे मेरा विश्वास और दृढ़ हो जाता है, कि आपने मुझे दर्शन देने का हठपूर्वक निर्णय लिया। अन्यथा आप यह सोच कर भी तो आगे बढ़ सकते थे, कि मेरा यह महल रावण का छल भी तो हो सकता है। लेकिन नहीं, आपने तो यह कहा- ‘एहि सन सठि करिहउँ पहिचानी।’ अर्थात आपने तो हठ ही कर ली, कि आप मेरे समीप आयेंगे ही आयेंगे। निश्चित ही श्रीराम जी के विशेष अनुग्रह के बिना यह संभव ही नहीं है। यह देख श्रीहनुमान जी ने कहा, कि हे विभीषण जी निश्चित ही आप उचित कह रहे हैं। क्योंकि श्रीराम जी सदा से ही अपने भक्त व सेवक पर प्रेम किया करते हैं-

इसे भी पढ़ें: मकर राशि के जातकों का वर्ष 2022 में कैसा रहेगा भविष्यफल, जानिए

‘सुनहु बिभीषण प्रभु कै रीती।

करहिं सदा सेवक पर प्रीति।।’

श्रीहनुमान जी यहाँ सहज भाव से ही भक्ति का एक और सूत्र दे गए। श्रीहनुमान जी ने जब देखा, कि श्रीविभीषण जी को, कहीं भूले से भी यह न लगे, कि उनसे मिलने की मेरी कोई व्यक्तिगत योजना थी। अपितु यह सारा घटनाक्रम तो प्रभु प्रेरित था। वे ही अपने भक्तों से मिलने की विधि बनाते हैं। इसमें मेरा तो रत्ती भर भी कोई सामर्थ व प्रयास नहीं है। और कहीं ऐसा न हो, कि श्रीविभीषण जी, प्रभु के साथ-साथ मुझे भी इसका श्रेय देने लग जायें। कहीं उन्हें गलती से भी, यह भ्रम हो गया, कि मैं भी कहीं न कहीं महान हूँ, तो निश्चित ही उनकी श्रद्धा व प्रेम का दो हिस्सों में विखंड़न हो जायेगा। जो कि एक भक्त के भक्तिपथ के लिए, सर्वदा घातक व वर्जित है। क्योंकि श्रद्धा बंटने का अर्थ है, उस भक्त के आध्यात्मिक विकास का बाधित हो जाना। इसीलिए श्रीहनुमान जी ने कह दिया, कि हे विभीषण जी, यह सब तो तभी संभव हो पाया है, जब प्रभु श्रीराम जी ने, आपको अपना परम् प्रिय सेवक जाना है। क्योंकि अपने सेवकों पर प्रभु सदा ही प्रीति रखते आये हैं। इससे पहले कि श्रीविभीषण जी यह कहते, कि नहीं-नहीं हनुमंत लाल जी! प्रभु की कृपा तो है ही, लेकिन आपकी मेरे प्रति अपनत्व व प्रेम की भावना भी तो कोई पहलु था न? भला इसे हम कैसे अपनी आँखों से ओझल कर दें। तो श्रीहनुमान जी, श्रीविभीषण जी को पहले ही यह कहते हुए, उनका ध्यान इस और बँटाने में लग जाते हैं, कि वे इस अवसाद भाव से ग्रसित न हों, कि श्रीराम उन्हें अपनी शरण में लेंगे अथवा नहीं लेंगे। अपितु यह देखें, कि उन्होंने अगर मेरे जैसे अधम व निकृष्ट कुल वाले को अपनी शरणागत कर लिया, तो आपको भला प्रभु अपने पावन चरणों में क्यों नहीं लेंगे।

श्रीहनुमान जी अपने अपने अधम होने के संबंध में क्या घोषणा करते हैं, जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।

-सुखी भारती

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़