श्रीराधा की कृपा के बिना श्रीकृष्ण का प्रेम किसी को नहीं मिल सकता

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शुभा दुबे । Sep 1 2018 2:21PM

ब्रह्मवैवर्तपुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने और श्रीराधा के अभेद का प्रतिपादन करते हुए कहा है कि श्रीराधा के कृपा कटाक्ष के बिना किसी को मेरे प्रेम की उपलब्धि ही नहीं हो सकती।

भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी श्रीराधा वृषभानु नामक गोप की पुत्री थीं। पद्म पुराण में वृषभानु को राजा बताते हुए कहा गया है कि यह राजा जब यज्ञ की भूमि साफ कर रहा था, तब इसे भूमि कन्या के रूप में राधा मिली। राजा ने अपनी कन्या मानकर कन्या का पालन−पोषण किया। श्रीराधा जी के बारे में एक कथा यह भी मिलती है कि भगवान श्रीविष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेते समय अपने परिवार के सभी देवताओं से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा तो भगवान विष्णु की अर्धांगिनी लक्ष्मी राधा बनकर पृथ्वी पर आईं।

ब्रज में श्रीराधा का महत्व सर्वोपरि हैं। राधारानी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित है। यहां की लट्ठमार होली विश्व प्रसिद्ध है। श्रीराधा ने श्रीकृष्ण के प्रेम के लिए सामाजिक बंधनों का उल्लंघन किया। दोनों का पुनर्मिलन कुरुक्षेत्र में बताया जाता है जहां सूर्यग्रहण के अवसर पर द्वारिका से श्रीकृष्ण और वृन्दावन से नंद, राधा आदि गए थे। श्रीराधा भगवान श्रीकृष्ण की शक्ति हैं। श्रीकृष्ण के प्राणों से ही इनका आविर्भाव हुआ। श्रीकृष्ण इनकी नित्य आराधना करते हैं, इसलिए इनका नाम राधा है।

श्रीराधा के बारे में कहा जाता है कि उनके माता पिता वृषभानु गोप एवं कीर्तिदा ने पूर्वजन्म में पति पत्नी के रूप में दिव्य द्वादश वर्षों तक तप करके ब्रह्माजी को संतुष्ट किया था। इसलिए कमलयोनि ब्रह्माजी ने दोनों को यह वर दिया था− 'द्वापर के अंत में श्रीकृष्ण की आदिशक्ति श्रीराधा तुम्हारी पुत्री बनेंगी।' इस प्रकार द्वापर के अंत में योगमाया ने श्रीराधा के लिए उपयुक्त क्षेत्र की रचना कर दी। भाद्र शुक्ल अष्टमी, दिन सोमवार के मध्यान्ह में कीर्तिदा रानी के प्रसूतिगृह में सहसा एक दिव्य ज्योति फैल गयी। उस तीव्र ज्योति से सबके नेत्र बंद हो गये। जब गोप सुंदरियों के नेत्र खुले तो उन्होंने देखा− एक अति सुंदर कीर्तिदा के पास पड़ी है। कीर्तिदा रानी ने अपनी कन्या को देखकर प्रसन्नता के आवेग में मन ही मन एक लाख गोदान का संकल्प कर डाला। बालिका का नाम राधा रखा गया।

एक बार देवर्षि नारद ने ब्रज में श्रीकृष्ण का दर्शन किया। उन्होंने सोचा, जब स्वयं गोलोक विहारी श्रीकृष्ण भूलोक पर अवतरित हो गये हैं तो गोलोकेश्वरी श्रीराधा भी कहीं न कहीं गोपी रूप में अवश्य अवतरित हुई होंगी। घूमते घूमते देवर्षि वृषभानु गोप के विशाल भवन के पास पहुंचे। वृषभानु गोप ने उनका विधिवत सत्कार किया। फिर उन्होंने देवर्षि से निवेदन किया− भगवन! मेरी एक पुत्री है वह सुंदर तो इतनी है मानो सौंदर्य की खान हो, किंतु हमारे विशेष प्रयास के बाद भी वह अपनी आंखें नहीं खोलती है। आश्चर्यचकित देवर्षि नारद वृषभानु के साथ श्रीराधा के कमरे में गये वहां बालिका का अनुपम सौंदर्य देखकर देवर्षि के विस्मय की सीमा न रही। नारदजी के मन में आया, निश्चय ही यही श्रीराधा हैं। वृषभानु को बाहर भेजकर उन्होंने एकांत में श्रीराधा की नाना प्रकार से स्तुति की, किंतु उन्हें श्रीराधा के दिव्य स्वरूप का दर्शन नहीं हुआ। 

जैसे ही देवर्षि नारद ने श्रीकृष्ण वंदना करना शुरू की वैसे ही दृश्य बदल गया और देवर्षि नारद को किशोरी श्रीराधिका का दर्शन हुआ। सखियां भी वहां प्रकट होकर श्रीराधा को घेर कर खड़ी हो गयीं। श्रीराधा देवर्षि को अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन कराने के बाद पुनरू पालने में बालिका रूप में प्रकट हो गयीं। देवर्षि नारद गदगद कण्ठ से श्रीराधा का यशोगान करते हुए वहां से चल दिये।

ब्रह्मवैवर्तपुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने और श्रीराधा के अभेद का प्रतिपादन करते हुए कहा है कि श्रीराधा के कृपा कटाक्ष के बिना किसी को मेरे प्रेम की उपलब्धि ही नहीं हो सकती। वास्तव में श्रीराधा कृष्ण एक ही देह हैं। श्रीकृष्ण की प्राप्ति और मोक्ष दोनों श्रीराधाजी की कृपा दृष्टि पर ही निर्भर हैं।

-शुभा दुबे

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