लता मंगेशकर को बचपन में ही पता चल गया था कि वह बनेंगी भारत की सुर साम्राज्ञी...

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रेनू तिवारी । Nov 13 2019 10:39AM

लता मंगेशकर को लोग प्यार से ''लता दीदी'' भी कहते हैं। भारत रत्न लता मंगेशकर सात दशकों से अपने सुरों और सुरीली आवाज के कारण दुनियाभर में मशहूर है। लता दीदी के चाहने वालों की संख्या चीन, अमेरिका, यूरोप जैसे देशों में भी कम नहीं है।

नाम गुम जायेगा, चेहरा ये बदल जायेगा

मेरी आवाज़ ही, पहचान है

गर याद रहे

वक़्त के सितम, कम हसीं नहीं

आज हैं यहाँ, कल कहीं नहीं

वक़्त से परे अगर, मिल गये कहीं

मेरी आवाज़ ही पहचान है

स्वर कोकिला लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका है। लता मंगेशकर को लोग प्यार से 'लता दीदी' भी कहते हैं। भारत रत्न लता मंगेशकर सात दशकों से अपने सुरों और सुरीली आवाज के कारण दुनियाभर में मशहूर है। लता दीदी के चाहने वालों की संख्या चीन, अमेरिका, यूरोप जैसे देशों में भी कम नहीं है। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की परम आवश्यक और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। लता मंगेशकर ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक (Playback Singer) के रूप में रही है।

सुरो की मलिका लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 में मध्य प्रदेश के इंदौर में एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ। लता के पिता स्वर्गीय दीनानाथ मंगेशकर एक जाने माने कलाकार थे। नाटक हो या संगीत दोनों में ही लता के पिता ने अपना अलग मुकाम बना रखा था। पिता संगीतकार होने के बावजूद भी लता को संगीत की शिक्षा बचपन में नहीं मिल रही थी क्योकिं लता के पिता और बच्चों को शिक्षा देने में व्यस्त थे। एक दिन एक वाक्या ऐसा हुआ कि लता के पिता घर पर नहीं थे, और एक बच्चा गलत सुर में रियाज कर रहा था तब नन्ही लता ने उस बच्चे को कहा आप गलत गा रहे हो बच्चे को सही करते हुए नन्ही लगा ने उसे सही गा कर बताया। इस दौरान लता के पिता पीछे खड़े सारा सीन देख रहे थे उस दिन उन्हें पता चला कि वह दुनिया को संगीत सिखा रहे है लेकिन उनके घर में ही एक जबरदस्त गायक मौजूद है, तब से पिता ने अपनी बेटी के सुरों को और सवारना शुरूकर दिया। लता ने अपने पिता के साथ स्टेज पर कई गाने गाये।

 13 साल की उम्र से सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने फ़िल्म इंडस्ट्री में गाना गाना शुरू कर दिया था। अपने करियर के शुरूआत में लता दीदी ने 1942 में मराठी फ़िल्मों में एक्टिंग भी की थी। उनकी पहली फिल्म का नाम 'किती हासिल' था, इस फिल्म में लता ने एक्टिंग के साथ- साथ गाना भी गाया था लेकिन उस गाने को फिल्म में शामिल नहीं किया गया। फिल्मों में गाने का सफर बस लता जी ने यहीं से शुरू हुआ था।

लता जी की आवाज ने फिल्मी जगत में खूब धूम मचाई लेकिन इस मुकाम को हालिस करने से पहले उनकी जिंदगी में काफी उतार-चढ़ाव रहे। बचपन में ही लता के पिता जो कि एक बड़े पंडित और ज्योतिष थे, ने भविष्यवाणी की थी कि 'बेटी तू आगे चल कर इतना नाम कमाएगी जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी लेकिन इन सब चीज को देखने के लिए मैं जिंदा नहीं रहूंगा। और हां तेरी शादी भी नहीं होगी पूरे परिवार की जिम्मेदारी तुझ पर ही होगी।' नन्ही सी लता उस वक्त समझ नहीं पाई की उनके पिता जल्द ही जाने वाले हैं। कुछ दिन बाद ठीक वैसा ही हुआ दीनानाथ मंगेशकर का स्वर्गवास हो गया और पूरी जिम्मेदारी लता मंगेश्कर के कंधों पर आ गई। 

शुरुआत में लता मंगेशकर को उनकी पतली आवाज के कारण फिल्म इंडस्ट्री में काम नहीं मिल रहा था तब लता के हुनर को जाने-माने संगीतकार मास्टर गुलाम हैदर ने पहचाना और उन्होंने लता दीदी को आज भारत की सुर साम्राज्ञी बनाया। 

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