कोयला घोटाला: गोंडवाना इस्पात लिमिटेड और कंपनी के निदेशक दोषी

Coal scam Gondwana Ispat, director convicted
[email protected] । Apr 28 2018 8:58AM

दिल्ली की एक विशेष अदालत ने गोंडवाना इस्पात लिमिटेड और उसके निदेशक को संप्रग सरकार के शासनकाल में महाराष्ट्र में माजरा कोयला ब्लॉक का आवंटन अपने पक्ष में कराने के लिए धोखाधड़ी करने और आपराधिक साजिश रचने के लिये दोषी करार दिया

नयी दिल्ली। दिल्ली की एक विशेष अदालत ने गोंडवाना इस्पात लिमिटेड और उसके निदेशक को संप्रग सरकार के शासनकाल में महाराष्ट्र में माजरा कोयला ब्लॉक का आवंटन अपने पक्ष में कराने के लिए धोखाधड़ी करने और आपराधिक साजिश रचने के लिये दोषी करार दिया। इस कोयला खदान के आवंटन को उच्चतम न्यायालय ने 2014 में रद्द कर दिया था।

कोयला खदान आवंटन घोटाला मामलों की सुनवाई करने के लिए विशेष रूप से नियुक्त सीबीआई के विशेष न्यायाधीश भरत पाराशर ने कंपनी के निदेशक अशोक डागा को हिरासत में लेने का आदेश दिया। अदालत ने डागा और कंपनी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत दोषी पाया गया। अदालत एक मई को सजा सुनाएगी।

अदालत ने सजा पर सीबीआई और आरोपी की दलील सुनी। एजेंसी ने उनके लिये अधिकतम सजा की मांग की जबकि आरोपी ने नरमी बरते जाने का अनुरोध किया। न्यायाधीश ने कहा, ‘मेरी राय में सीबीआई गोंडवाना इस्पात लिमिटेड और अशोक डागा के खिलाफ आपराधिक साजिश और धोखाधड़ी के अपराध साबित करने में सफल रही है। इसलिये मैं उन्हें उक्त अपराध का दोषी ठहराता हूं।’

अदालत ने कहा, ‘जीआईएल के पक्ष में माजरा कोयला ब्लॉक का आवंटन कराने की मंशा से 2003 में आप दोनों (आरोपियों) ने जो आपराधिक साजिश रची उसके समान उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिये आपने स्क्रीनिंग कमेटी के समक्ष वित्तीय संस्थानों के साथ वित्तीय समझौते और ओडिशा से लौह अयस्क की आपूर्ति के लिये समझौते के बारे में गलत दस्तावेज सौंपे और इसलिये आप दोनों ने भादंसं की धारा 420 के तहत धोखाधड़ी का अपराध किया।’

सीबीआई ने आरोप-पत्र में आरोप लगाया था कि जांच के दौरान पाया गया कि डागा ने लौह अयस्क के संबंध में ओडिशा सरकार के साथ समझौते और वित्तीय तैयारी को लेकर भी अप्रमाणित दावे किए थे। इसमें आरोप लगाया कि उस वक्त कोयला मंत्रालय किसी आवेदक कंपनी द्वारा उपलब्ध कराई गई गलत जानकारी को जांचने के लिए किसी तरह की प्रणाली का पालन नहीं करता था। 

इसी को दे्खते हुए जीआईएल और डागा ने सरकार के विभिन्न अधिकारियों को गलत जानकारी दी और माजरा कोयला ब्लॉक को उनके लिए सुरक्षित रखने या उन्हें आवंटित करने के लिए तैयार कर लिया। सीबीआई के मुताबिक 22 अप्रैल, 2000 को डागा ने महाराष्ट्र के एकार्जुन एक्स्टेंशन कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए कोयला मंत्रालय में आवेदन दिया था ताकि वह 60,000 टन प्रति वर्ष की क्षमता वाला एक वॉशरी सह स्पंज लौह संयंत्र लगा सके लेकिन मंत्रालय ने इस आवेदन को खारिज कर दिया था। 

15 सितंबर 2001 को डागा ने महाराष्ट्र के वरोरा वेस्ट कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए आवेदन दिया था। सीबीआई के मुताबिक अपने पहले आवेदन को ही जारी रखते हुए कंपनी ने वरोरा नॉर्थ कोयला ब्लॉक के विकल्प के तौर पर माजरा बेलगांव कोयला ब्लॉक के आवंटन पर विचार करने का आग्रह किया। मंत्रालय ने पांच मई, 2003 को अपनी 18वीं जांच समिति की बैठक में जीआईएल और चंद्रपुर इस्पात लिमिटेड के आवेदन को स्वीकार कर लिया।

सीबीआई ने बताया कि कंपनी द्वारा जमा कराए गए दस्तावेजों के मुताबिक मंत्रालय ने 29 अक्तूबर, 2003 को माजरा कोयला ब्लॉक को कुछ निश्चित शर्तों के तहत कंपनी के लिए सुरक्षित रख दिया। सीबीआई का आरोप है कि जांच में पता चला कि 2003 में आवंटन मिलने के बाद डागा ने एमओसी को वचन दिया था कि वह कोयला ब्लॉक के विस्तार और कोयला खदान विकसित करने के लिए एक संयंत्र लगाएगा लेकिन खूब लाभ कमा लेने के बाद अक्तूबर, 2005 में कंपनी नंद किशोर शारदा को बेच दी। 

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