सूरजमुखी तेल के भारी आयात से Edible oil-oilseeds कीमतों में गिरावट

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खाद्य तेल कीमतों की इस गिरावट के कारण आगामी सरसों का बाजार में खपना मुश्किल हो चला है। बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि तेल-तिलहन मामले में हम आत्मनिर्भरता के बजाय आयात पर पूरी तरह निर्भर होते जा रहे हैं।

सूरजमुखी तेल के रिकॉर्ड आयात के कारण दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बृहस्पतिवार को सभी देशी तेल-तिलहनों में जोरदार गिरावट देखी गई। खाद्य तेल कीमतों की इस गिरावट के कारण आगामी सरसों का बाजार में खपना मुश्किल हो चला है। बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि तेल-तिलहन मामले में हम आत्मनिर्भरता के बजाय आयात पर पूरी तरह निर्भर होते जा रहे हैं।

जनवरी के महीने में शुल्कमुक्त आयात की कोटा व्यवस्था के तहत सूरजमुखी तेल का सर्वाधिक लगभग 4,72,000 टन का आयात किया गया है जबकि देश में इसकी मासिक औसत खपत डेढ़-पौने दो लाख टन के बीच होती है। यानी जरूरत से कहीं 200 प्रतिशत अधिक मात्रा में सूरजमुखी तेल का आयात हुआ है। इसी प्रकार जनवरी में सोयाबीन तेल का आयात बढ़कर लगभग चार लाख टन हो गया है। इस सस्ते आयात के रहते कौन ऊंचे दाम वाले सरसों को खरीदेगा।

सूत्रों ने आशंका जताई कि कुछ बड़े तेल कारोबारियों के अर्जेंटीना, ब्राजील में तेल संयंत्र लगे हुए हैं और उनके अपने निहित स्वार्थ हो सकते हैं। संभवत: ये देश की आत्मनिर्भरता हासिल करने के प्रयास को सफल नहीं देखना चाहते। मजेदार बात यह है कि तेल कीमतें गिर रही हैं और उपभोक्ताओं को अ भी तेल कीमतों की गिरावट का यथोचित लाभ मिलना बाकी है। खुदरा बाजार में जाकर इस बात की कोई भी जांच कर सकता है कि सूरजमुखी तेल क्या भाव मिल रहा है।

खुदरा बिक्री करने वाली तेल कंपनियां बढ़ाचढ़ा-कर अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) छाप उपभोक्ताओं को तेल कीमतों की गिरावट के लाभ से वंचित किये हुए हैं। सरकार को तेल उत्पादक कंपनियों को अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) के बारे में सरकारी पोर्टल पर नियमित आधार पर जानकारी उपलब्ध कराना अनिवार्य कर देना चाहिये तो समस्या खुद-ब-खुद सुलझने लगेगी। देशी तेल-तिलहनों के नहीं खपने के खतरे को देखते हुए तेल खल और डी-आयल्ड केक (डीओसी) की कमी का सामना करना पड़ सकता है जिनका उपयोग मवेशी आहार और मुर्गीदाने के लिए होता है।

खाद्य तेल कीमतों की गिरावट ऐसी है कि काफी समय से सूरजमुखी बीज न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दाम पर बिक रहा है और अब यह खतरा सरसों के लिए भी हो सकता है। सूत्रों ने कहा कि शुल्कमुक्त आयात की कोटा व्यवस्था से देश में किसी को भी कोई फायदा नहीं मिल रहा और इस व्यवस्था से उत्पन्न हो रही जटिलताओं के बारे में सभी ने चुप्पी साध रखी है। बृहस्पतिवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे: सरसों तिलहन - 6,040-6,090 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली - 6,450-6,510 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 15,425 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली रिफाइंड तेल 2,420-2,685 रुपये प्रति टिन। सरसों तेल दादरी- 12,550 रुपये प्रति क्विंटल। सरसों पक्की घानी- 2,010-2,040 रुपये प्रति टिन। सरसों कच्ची घानी- 1,970-2,095 रुपये प्रति टिन। तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 12,450 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 12,250 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 10,600 रुपये प्रति क्विंटल। सीपीओ एक्स-कांडला- 8,250 रुपये प्रति क्विंटल। बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 10,800 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,900 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन एक्स- कांडला- 9,000 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल। सोयाबीन दाना - 5,420-5,500 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन लूज- 5,160-5,180 रुपये प्रति क्विंटल। मक्का खल (सरिस्का)- 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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