Bengaluru शहर कैसे बना भारत की सिलिकॉन वैली, जाने पूरी कहानी

Silicon Valley of India
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बैंगलुरू के सिलिकॉन सिटी की नींव का इतिहास भारत की आजादी से भी पुराना है। बैंगलुरू मैसूर प्रेसिडेंसी का हिस्सा हुआ करता था तब वहां महाराजा कृष्णा राजा वडीयार चतुर्थ का शासन था। इसके बाद स्वतंत्र भारत के कर्नाटक सरकार ने विकास का काम जारी रखा।

कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरू आज देश और विश्व में भारत के सिलिकॉन वैली के नाम से मशहुर है। बैंगलुरू में देश के सबसे ज्यादा स्टार्टअप हैं। यहां 5500 से अधिक आईटी कंपनियां हैं। यह शहर दुनिया के शीर्ष पांच प्रौद्योगिकी समूहों में से एक है। देश में जहां कुल 28 राज्य हैं और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं, ऐसे में सवाल यह कि बैंगलुरू ही क्यूं देश की सिलिकॉन सिटी बनने में कामयाब रहा। आज हम जानेगें इस सवाल का जवाब। 

बैंगलुरू के सिलिकॉन सिटी की नींव का इतिहास भारत की आजादी से भी पुराना है। बैंगलुरू मैसूर प्रेसिडेंसी का हिस्सा हुआ करता था तब वहां महाराजा कृष्णा राजा वडीयार चतुर्थ का शासन था। महाराजा कृष्णा की शिक्षा और विकास में रुची थी। इसी कारण से महाराजा कृष्णा ने 1913 में ही प्राथमिक शिक्षा के महत्व को समझा और इसे अनिवार्य कर दिया। इस फरमान का असर यह हुआ कि 1951 में जब देश की साक्षरता दर 18.3 प्रतिशत थी तब बैगलुरू में यह दर 43 प्रतिशत थी। 

1984: आईटी कैपिटल बनने की ओर पहला कदम 

1984 में नई कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर नीतियों की घोषणा के साथ, भारत में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के आयात और निर्यात को आसान बनाया गया। न्यू कम्प्यूटर पॉलिसी में हार्डवेयर पर आयात शुल्क 135% और सॉफ्टवेयर पर 100% था लेकिन इस नीति में 60% तक की कमी देखी गई। इसने विप्रो और इंफोसिस जैसे संगठनों के लिए बैंगलोर में शिविर स्थापित करने और भारतीय प्रोग्रामरों को नियुक्त करने की नींव रखी। इस दौरान कर्नाटक सरकार ने सॉफ्टवेयेर टेक्नोलॉजी पार्क का निर्माण कराया। इस तरीके से राज्य सरकार ने दुनिया की सॉफ्टवेयर क्रांति का फायदा उठाया। उसी दौरान 1991 में देश ने उदारीकरण की नीति को स्वीकार किया था। एडवांस टेक्नालॉजी की पेशकश करने वाली अमेरिकी कंपनियों के साथ संबंध बनाए गए थे जिनसे भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों को अत्यधिक लाभ हुआ। बदले में, अमेरिकियों ने भारतीय धरती पर सॉफ्टवेयर सुविधाओं और नवाचार केंद्रों को खड़ा करके बड़े टैलेंट पूल और कम परिचालन लागत को भुनाना शुरू कर दिया, जिससे पूर्व और पश्चिम के बीच एक अपतटीय संबंध के बीज बोए गए। 1985 में, टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स इंक. बंगलौर में एक विकास केंद्र स्थापित करने वाली पहली बहुराष्ट्रीय कंपनी बन गई, जिससे अधिक बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अनुसरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

इस कामायाबी के बाद भी कर्नाटक सरकार पहले की तरह से आईटी कम्पनियों को सारी जरूरी सहुलियत दे रही थी। जैसे के टैक्स में छुट, कम्पूटर और संबधित सामानों के खरीद पर छुट आदि। राज्य सरकार के इस कदम से बैगलुरू बिजनस के लिए सबसे अनुकूल शहर के तौर पर उभरा। इसका नतीजा यह हुआ कि साल 2022 में बैगलुरू का कुल आईटी एक्सपोर्ट 65 बिलीयन डॉलर तक हो गया था। इस तरह से बैंगलुरू आईटी हब के तौर पर सामने आया।

 

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2020: एशिया की सिलिकॉन वैली

आईटी उद्योग पूरे भारत में लगभग 4.1 मिलियन लोगों को रोजगार देता है और हर साल लगभग 137 बिलियन डॉलर का निर्यात करता है - जिसका 40% बैंगलोर में उत्पन्न होता है। तकनीकी विशेषज्ञता और मल्टी स्किलड श्रम शक्ति का निर्माण बैंगलोर में आर एंड डी केंद्रों की भारी एकाग्रता में सहायक रहा है, जो अमेज़ॅन, आईबीएम, माइक्रोसॉफ्ट, टेस्को, नोकिया और सीमेंस जैसे नामों की गिनती करता है।

इस तकनीकी सेंट्रीफ्यूज ने बेंगलुरू की भूमिका को निष्क्रिय सॉफ्टवेयर कार्यों के एक निष्क्रिय प्राप्तकर्ता के बजाय इसे उद्यमिता का केंद्र बना दिया है। यह एक युवा आबादी की मेजबानी करता है, जिनके पास व्यापार कौशल और नवीन शक्ति है जो दुनिया के तकनीकी सक्षमता मौजूद है। और, उद्यमशीलता की उथल-पुथल के इस बवंडर में, AI, मशीन लर्निंग, और IoT बाजार को संतृप्त कर रहे हैं और पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ा रहे हैं। बैंगलोर की केवल 49% आबादी शहर की मूल निवासी है, और परिणामी बहुसंस्कृतिवाद का इसके सामाजिक इंटीरियर पर एक आकर्षक प्रभाव पड़ा है। वास्तव में, शहर को 2015 में दुनिया के दूसरे सबसे तेजी से बढ़ते आईटी पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में चित्रित किया गया था और विश्व आर्थिक मंच ने 2017 और 2019 में बैंगलोर को दुनिया के सबसे गतिशील शहर के रूप में नामित किया था। इन सभी बातों ने बैंगलोर को एक आईटी हब के रूप में पुख्ता किया है और शहर को एशिया की सिलिकॉन वैली के योग्य उपाधि से नवाजा है।

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