सरसों की आवक बढ़ी, पर लिवाली कमजोर रहने से खाद्य Oil- Oilseeds में गिरावट

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बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज में 0.6 प्रतिशत की गिरावट रही जबकि शिकॉगो एक्सचेंज 0.5 प्रतिशत नीचे चल रहा है। सूत्रों ने कहा कि विदेशों में गिरावट के रुख तथा सस्ते आयातित तेलों की भरमार के बीच सरसों की लिवाली कमजोर है।

देश की मंडियों में सरसों फसल की आवक बढ़ने के बीच सस्ते आयातित तेलों की वजह से लिवाली कमजोर है। इससे दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में मंगलवार को सरसों तेल-तिलहन सहित बाकी तेल-तिलहनों के भाव भी गिरावट के साथ बंद हुए। बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज में 0.6 प्रतिशत की गिरावट रही जबकि शिकॉगो एक्सचेंज 0.5 प्रतिशत नीचे चल रहा है। सूत्रों ने कहा कि विदेशों में गिरावट के रुख तथा सस्ते आयातित तेलों की भरमार के बीच सरसों की लिवाली कमजोर है।

मंडियों में आज सरसों की लगभग आठ लाख बोरी की आवक हुई मगर इसके लिवाल कम हैं। धीरे-धीरे सरसों की आवक बढ़ेगी और मार्च में यह बढ़कर लगभग 15 लाख बोरी हो जाने की संभावना है। सोयाबीन और सूरजमुखी जैसे सस्ते आयातित तेल के थोक भाव बंदरगाहों पर 91.50-95 रुपये लीटर बैठ हैं तो कोई क्यों सरसों या सोयाबीन या बिनौला में हाथ डालेगा। इससे देश के तेल उद्योग, देश के तिलहन उत्पादक किसान को भारी नुकसान होगा और किसान की फसल एक बार बाजार में नहीं खपी तो उसे दोबारा तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए मनाना मुश्किल हो जायेगा।

ऐसे में किसान किसी और फसल का रुख कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में खल महंगा होगा और दूध एवं दुग्ध उत्पादों के दाम बढ़ेंगे और अंतत: मुद्रास्फीति बढ़ेगी। समय की मांग है कि देशी तेल-तिलहनों को खपाने के लिए वातावरण बने और इसके लिए सबसे अहम है कि सस्ते आयातित तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाया जाये। सूत्रों ने कहा समाचार पत्रों में खाद्य तेलों के दाम बढ़ने पर काफी लोग चिंता व्यक्त करते हैं। लेकिन जब आयातित तेल के सस्ता होने से देशी तेल-तिलहन किसानों, तेल उद्योग को भारी नुकसान होता है तो कोई सस्ते आयातित खाद्य तेल को काबू में लाने की बात नहीं उठाता।

जमीनी स्थिति काफी अलग है। जैसे कि अगर खाद्य तेल के दाम बढ़ने की चिंता कई साल से सुनी, लिखी और बोली जा रही है। ऐसे में तो किसान अपना तिलहन उत्पादन बढ़ाकर लाभ कमा रहे होते। खाद्य तेलों के दाम बढ़े हैं तो देश में तिलहन उत्पादन भी अब तक काफी बढ़ चुका होता फिर हमारा आयात क्यों बढ़ रहा है? आयात बढ़ने से देशी तिलहन से मिलने वाला खल का उत्पादन भी कम हो रहा है क्योंकि देशी तेल मिलें या तो नुकसान में चल रही हैं या बंद पड़ी हैं क्योंकि सारा का सारा खाद्य तेल आयात हो रहा है। बैंकों द्वारा तेल कारोबारियों और आयातकों को नकारात्मक सूची में डाला जा रहा है।

सूत्रों ने कहा कि देश का तिलहन उद्योग और तिलहन किसान काफी संकट में है और मौजूदा परिस्थिति का दूरगामी असर भविष्य में देखने को मिल सकता है। इसलिए सरकार को अपने किसानों के हित में तत्काल ऐसी परिस्थितियां बनाने पर ध्यान देना होगा ताकि देशी तेल-तिलहन बाजार में खपें और किसान आगे तिलहन उत्पादन बढ़ाने को प्रेरित हों। नहीं तो तेल-तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करना, एक हसरत बन कर ही रह जा सकता है। मंगलवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे: सरसों तिलहन - 5,735-5,785 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली - 6,775-6,835 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 16,550 रुपये प्रति क्विंटल। मूंगफली रिफाइंड तेल 2,540-2,805 रुपये प्रति टिन। सरसों तेल दादरी- 12,025 रुपये प्रति क्विंटल। सरसों पक्की घानी- 1,935-1,965 रुपये प्रति टिन। सरसों कच्ची घानी- 1,895-2,020 रुपये प्रति टिन। तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 12,150 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 11,900 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 10,480 रुपये प्रति क्विंटल। सीपीओ एक्स-कांडला- 8,880 रुपये प्रति क्विंटल। बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 10,550 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,430 रुपये प्रति क्विंटल। पामोलिन एक्स- कांडला- 9,450 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल। सोयाबीन दाना - 5,440-5,570 रुपये प्रति क्विंटल। सोयाबीन लूज- 5,180-5,200 रुपये प्रति क्विंटल। मक्का खल (सरिस्का)- 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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