जितने नोट बंद हुए, उतने छापने की जरूरत नहीं: SBI
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भारतीय रिजर्व बैंक को बंद किए गए नोटों पर उतने ही राशि के नये नोट छापने की जरूरत नहीं है। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट इकोरैप में यह बात कही गयी है।
भारतीय रिजर्व बैंक को बंद किए गए नोटों पर उतने ही राशि के नये नोट छापने की जरूरत नहीं है। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट इकोरैप में कहा गया है कि केंद्रीय बैंक को 24 मार्च के स्तर से सिर्फ 1,150 अरब रुपये और छापने की जरूरत होगी। इससे नोटों की छपाई की लागत घटकर 500 से 1,000 करोड़ रुपये के दायरे में आ जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी से पहले प्रणाली में अधिक नकदी थी। नोटबंदी के बाद अब लोग बड़े पैमाने पर डिजिटल लेनदेन की ओर बढ़े हैं और उन्होंने नकदी का इस्तेमाल कम किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन कारकों को ध्यान में रखते हुये हमारा मानना है कि रिजर्व बैंक को 24 मार्च के स्तर से सिर्फ 1,150 अरब रुपये ही और छापने चाहिए। करीब 1,170 अरब रुपये के नोट छापने की जरूरत नहीं है। इससे नोट छपाई की लागत घटकर 500 से 1,000 करोड़ रुपये के दायरे में आ जायेगी। इसमें कहा गया है कि नोट छपाई औसत के हिसाब से प्रणाली में नई नकदी डालने की प्रक्रिया अप्रैल के पहले पखवाड़े में पूरी हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी से पहली आर्थिक तंत्र में अतिरिक्त नकदी प्रवाह बना हुआ था। सीमित आकलन के मुताबिक भी 8 नवंबर 2016 से पहले कम से कम 2,500 अरब रुपये की अधिक नकदी वित्तीय लेनदेन में चल रही थी। नोटबंदी की प्रक्रिया शुरू होने से देश में डिजिटल चैनल, पीओएस मशीनों, एम-वॉलेट और मोबाइल बैंकिंग के लिये व्यापक अवसर उपलब्ध हुये। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘डिजिटल बैंकिंग का मौजूदा आकार 2.3 लाख करोड़ रुपये तक है। इसका आकार मौजूदा स्तर से बढ़कर कम से कम 3.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचना चाहिये। यह अर्थव्यवस्था में वास्तविक मुद्रा प्रवाह और मुद्रा प्रवाह की जरूरत के बीच का कम से कम आकलन है जो हो सकता है।
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