तेल- तिलहन बाजार पशोपेश में फंसा,विदेशों में भाव ऊंचे जबकि कमी के बावजूद घरेलू बाजार नीचे

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रुपये में यह 8,100 रुपये क्विंटल तक पड़ता है जबकि घरेलू बाजार में पामोलिन का भाव 7,500 रुपये क्विंटल चल रहा है। इस प्रकार आयातकों के लिये कारोबार में बने रहना संकट वाली स्थिति बन गई है। यही हाल सोयाबीन डीगम तेल का है। विदेशों में सोयाबीन डीगम का भाव 795 डालर प्रति टन तक है।

नयी दिल्ली। देश में खाद्य तेल- तिलहन बाजार इन दिनों अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है। खाद्य तेलों की कमी और आयात पर भारी निर्भरता के बावजूद इस समय स्थानीय तेल तिलहन बाजार टूटा हुआ है जबकि कुछ महीने से विदेशों में भाव ऊंचे चल रहे थे।इस स्थिति से आयातक और कारोबारी पशोपेश में हैं। उनका कहना है कि स्थानीय वायदाकारोबार में तेल तिलहन के भाव टूटे हुए हैं। तेल उद्योग का कहना है कि सरकार को तुरंत स्थति का संज्ञान लेना चाहिये क्योंकि यह स्थति घरेलू तिलहन किसानों के हित में भी नहीं है।तेल उद्योग के सूत्रों का कहना है कि तेल का घरेलू उत्पादन जरूरत से 70 प्रतिशत तक रहता है। इस कारण विदेशों से कच्चे पाम आयल और सोयाबीन डीगम तेल का भारी मात्रा में आयात किया जाता है। पॉम तेल के सबसे बड़े उत्पादक देश मलेशिया और इंडोनेशिया में तेल इस समय भाव 650 डालर प्रति टन से ऊंचा बोला जा रहा है। भारत में आरबीडी पॉमोलीन की पहुंच लागत करीब 720 डालर प्रति टन के आसपास पड़ती है।

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रुपये में यह 8,100 रुपये क्विंटल तक पड़ता है जबकि घरेलू बाजार में पामोलिन का भाव 7,500 रुपये क्विंटल चल रहा है। इस प्रकार आयातकों के लिये कारोबार में बने रहना संकट वाली स्थिति बन गई है। यही हाल सोयाबीन डीगम तेल का है। विदेशों में सोयाबीन डीगम का भाव 795 डालर प्रति टन तक है। आयात शुल्क और खर्चे के साथ भारतीय बंदरगाह पर यह 8,150 रुपये क्विंटल तक पड़ता है। जबकि घरेलू हाजिर बाजार में सोयाबीन डीगम 7,700 रुपये क्विंटल बोला जा रहा है। इसमें भी पांच रुपये तक का नुकसान आयातकों को हो रहा है।वहीं घरेलू वायदा बाजार में कच्चे पॉम तेल का फरवरी वायदा भाव 7,050 रुपये और मार्च का भाव 7,000 रुपये क्विंटल पर बोला जा रहा है। जबकि विदेशों से भारतीय बंदरगाह पर कच्चा पॉम तेल आयात 7,420 रुपये क्विंटल तक पड़ता है। आयातकों को यहां भी मौजूदा भाव पर पांच रुपये का नुकसान है। बाजार जानकारों का कहना है कि सरकार ने 11 लाख टन पामोलिन आयात के लिये लाइसेंस जारी किये हैं। हालांकि देश में आयात व्यवहारिक नहीं है उसके बावजूद आयात लाइसेंस जारी किये जा रहे हैं। कारोबारी सवाल करते हैं कि भारी अंतर के बावजूद यह आयात कौन कर रहा है। उनका कहना है कि बैंकों को भी इस स्थिति पर ध्यान देना चाहिये।

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जानकारों का कहना है कि एक तरफ सरकार घरेलू स्तर पर तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिये लगातार प्रयास कर रही है। हर साल सरसों, मूंगफली और सोयाबीन के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की जाती है लेकिन दूसरी तरफ सट्टा बाजार में इन तिलहनों के भाव लगातार टूटते जा रहे हैं। इसमें सरसों की हालत तो सबसे ज्यादा खराब है। एक अप्रैल से शुरू होने वाले रबी मौसम के लिये सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,425 रुपये क्विंटल घोषित किया गया है जबकि सरसों का अप्रैल वायदा भाव 4,025 रुपये क्विंटल और खर्चे सहित हाजिर बाजार में 4,255 रुपये क्विंटल तक बोला जा रहा है।उप्र के तेल व्यापारी रमेश कुमार खुराना ने कहा कि ऐसी स्थिति में तेल आयातक भारी नुकसान की कगार पर हैं। उनके लिये बैंकों के साथ अपने लेनदेन की भरपाई करना मुश्किल हो रहा है। उनसे न तो कारोबार से बाहर निकलते बन रहा है और न ही कारोबार में बने रहने की स्थिति बन रही है।तेल आयातकों की खेप बंदरगाहों पर पड़ी हैं और बाजार टूटने और बेपड़ता (आयात लागत के मुकाबले सस्ती बिक्री)बैठने के कारण वे बाजार में अपने माल को खपाने की स्थिति में नहीं हैं। उन्हें 29 फरवरी को नये आयात शुल्क मूल्य की घोषणा में कच्चे पॉम तेल (सीपीओ) का शुल्क मूल्य, बाजार भाव के अनुसार तय किये जाने की अपेक्षा है।भारत दुनिया में वनस्पति तेलों का सबसे बड़ा आयातक देश है और सालाना लगभग डेढ करोड़ टन का आयात करता है। इसमें पाम तेल का 90 लाख टन जबकि शेष 60 लाख टन सोयाबीन और सूरजमुखी का तेलों का आयात किया जाता है।

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