शहरों में भी स्वरोजगार का बेहतर विकल्प है पशुपालन

अमित भंडारी । Mar 23 2017 3:12PM

पशुपालन को कारोबार के तौर पर विकसित होने से लोगों की जहां कृषि पर निर्भरता घटी है तो ग्रामीण के साथ ही शहरी इलाकों में बेरोजगारों को स्वरोजगार का एक बेहतर विकल्प मिला है।

बेरोजगारी देश की एक बड़ी समस्या है। लेकिन बेरोजगारी के जाल में ग्रामीण युवक कुछ ज्यादा ही उलझे हुए हैं। सीमित संसाधन और रोजगारोन्मुखी शिक्षा के अभाव में उनके पास रोजगार के सीमित विकल्प ही होते हैं। लेकिन ग्रामीण इलाकों में भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जिसे अपनाकर बेरोजगारी के जाल से निकला जा सकता है। पशुपालन ऐसा ही एक क्षेत्र है। जिसे आज शहरों के पढ़े−लिखे बेरोजगार युवक भी अपना कर मोटी कमाई कर रहे हैं।

पशुपालन सभ्यता के विकास के साथ ही शुरू हो गया था। ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह शुरू से ही कृषि का पूरक रहा है। लेकिन आज यह एक अलग व्यवसाय का रूप ले चुका है और इसे न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी बेहतर कारोबार के तौर पर अपनाया जा रहा है। पशुपालन को कारोबार के तौर पर विकसित होने से लोगों की जहां कृषि पर निर्भरता घटी है तो ग्रामीण के साथ ही शहरी इलाकों में भी बेरोजगारों को स्वरोजगार का एक बेहतर विकल्प मिला है।

दरअसल पशुपालन के व्यवसाय के तौर पर उभरने के कई कारण हैं। लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आने से आज सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी दुग्ध उत्पाद की मांगों में बढ़ोत्तरी हुई है। तेजी से आगे बढ़ रहे इस कारोबार को ऊपर उठाने की एक वजह दुग्ध उत्पादों की कीमतों का बढ़ना है। इसके अलावा इस धंधे में तरक्की की काफी संभावनाएं हैं। प्राकृतिक आपदा छोड़कर इस कारोबार को हमेशा फायदा ही मिलता है।

पशुपालन कारोबार को ज्यादा से ज्यादा फायदेमंद बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने भी कई तरीके इजाद किए हैं। आज पारम्परिक पशुओं के बजाय उन्नत प्रजाति के पशु पाले जा रहे हैं। यह पारम्परिक पशुओं के मुकाबले काफी ज्यादा दूध तो देते ही हैं साथ ही बेचने पर उनकी अच्छी खासी कीमत भी मिलती है।

यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में इस व्यवसाय को बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है। लेकिन सही जानकारी के बिना इस पेशे को अपनाने वाले कई लोगों को इस क्षेत्र में भी भारी नुकसान उठाना पड़ा है। हालांकि आजकल पशुओं की प्रजातियों से लेकर उनके लिए रेडीमेड आहार तक सब वैज्ञानिक पद्धति के जरिए तैयार किए जाते हैं। लिहाजा इस क्षेत्र में उतरने से पहले अक्सर होने वाले भारी नुकसान से बचने के लिए प्रशिक्षण लेकर काम की शुरुआत करना ही फायदेमंद होता है।

ज्यादा जानकारी इन संस्थानों से ले सकते हैं-

− केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, फराह, मथुरा, उत्तर प्रदेश।

− भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली।

− राष्ट्रीय पशु आनुवांशिकी संसाधन ब्यूरो, करनाल, हरियाणा।

− केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकनगर, जिला टोंक, राजस्थान।

− राष्ट्रीय पशु पोषण संस्थान, बंगलौर।

− केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान, हिसार, हरियाणा।

- अमित भंडारी

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