भारत का पक्ष रखने की सराहनीय पहल एवं बेतुका विवाद

शशि थरुर विदेश नीति के जानकार है। थरूर पहले संयुक्त राष्ट्रसंघ में काम कर चुके हैं, विदेश राज्यमंत्री रह चुके हैं। उनके अनुभव का फायदा निश्चित रूप से प्रतिनिधिमण्डल को मिलेगा, दुनिया में भारत का पक्ष सही परिप्रेक्ष्य में रखने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
पहलगाम की क्रूर एवं बर्बर आतंकी घटना एवं उसके बाद भारत के सिंदूर ऑपरेशन में पाकिस्तान को करारी मात देने की घटना से निश्चित ही भारत की ताकत को दुनिया ने देखा। लेकिन इसके बाद पाक दुनिया से सहानुभूति बटोरने के लिये जहां विश्व समुदाय में अनेक भ्रम, भ्रांतिया एवं भारत की छवि को छिछालेदार करने में जुटा है, वहीं भारत का डर दिखा-दिखा कर ही पाक अनेक देशों से आर्थिक मदद मांग रहा है। इन्हीं स्थितियों को देखते हुए दुनिया के सामने भारत का पक्ष रखने के लिए केंद्र सरकार ने जिस तरह से सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का गठन किया है, यह फैसला जितना सराहनीय है, उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण एवं विडम्बनापूर्ण है इसका राजनीतिक विवादों में घिर जाना। यह राजनीति से ऊपर, मतभेदों से परे राष्ट्रीय एकता का एक शक्तिशाली प्रतिबिंब बनना चाहिए। देश की सुरक्षा, सैन्य उपक्रम, राष्ट्रीय एकता-अखण्डता एवं विदेश नीति से जुड़े विषय पर राजनीति होना, देश के हित में नहीं है।
पहलगाम हमले के बाद यह अफसोस की बात है कि पाकिस्तान का बचाव करने या उसके साथ मुखरता से खड़े होने वाले देशों या विश्व संगठनों के साथ-साथ भारतीय राजनीतिक दलों में विवाद का बढ़ना चिन्ताजनक है। भारत के राजनीतिक दल प्रारंभ में एकजुट दिखें लेकिन राजनीतिक स्वार्थों के चलते अब उनमें कहीं-कहीं वैचारिक मतभेद उभर रहे हैं। पाकिस्तान दोषी होने के बावजूद पीड़ित होने का स्वांग रचकर सहानुभूति जुटाता रहा है। दुनिया के अनेक देश उसके झांसे में आ भी जाते हैं। ऐसे में, दुनिया के महत्वपूर्ण देशों में भारत का पक्ष रखने का मोदी सरकार का यह प्रयास बहुत जरूरी एवं दूरगामी सोच से जुड़स है। इस प्रयास को एक बड़े अभियान के रूप में लेना चाहिए। आतंकवाद के खिलाफ भारत की शून्य सहिष्णुता और ऑपरेशन सिंदूर का संदेश दुनिया तक पहुंचना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सभी दलों ने सरकार और सेना के प्रति समर्थन जताया था। सरकार ने भी उसी भावना का सम्मान करते हुए सभी दलों के सांसदों को प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया है। कांग्रेस ने थरूर का नाम नहीं भेजा था, सरकार ने उन्हें अपनी तरफ से शामिल कर लिया। जिनके नाम कांग्रेस ने दिए थे, उनमें से सिर्फ आनंद शर्मा चुने गए।
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शशि थरुर विदेश नीति के जानकार है। थरूर पहले संयुक्त राष्ट्रसंघ में काम कर चुके हैं, विदेश राज्यमंत्री रह चुके हैं। उनके अनुभव का फायदा निश्चित रूप से प्रतिनिधिमण्डल को मिलेगा, दुनिया में भारत का पक्ष सही परिप्रेक्ष्य में रखने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। हालांकि कांग्रेस को लगता है कि उसके सांसद को चुनने से पहले उससे पूछा जाना चाहिए था, इस अपेक्षा को गलत भी नहीं कहा जा सकता। मगर वर्तमान संवेदनशील हालातों में इसे विवाद का मुद्दा बनाने से बचा जा सकता था। लेकिन कांग्रेस के सदस्यों, खासकर सांसद शशि थरूर को लेकर हो रहा विवाद बिल्कुल अनचाहा एवं अनुचित है। इससे एक अच्छा एवं प्रासंगिक मकसद नकारात्मक खबरों में घिर गया है। भले ही शशि थरूर और कांग्रेस के रिश्ते पिछले कुछ समय से ठीक नहीं रहे हैं। लेकिन यह एक सांसद और उसकी पार्टी के बीच का मसला है। यहां जो मुद्दा सामने है, वह देश से जुड़ा है। इसमें सभी को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचना चाहिए।
युद्ध एवं आतंक जैसे हालातों में भारत ने अपना पक्ष रखने के लिए पहले भी समय-समय पर विपक्ष के शीर्ष नेताओं को आगे किया है और उसी परिपाटी को मोदी सरकार ने आगे बढ़ाकर देश की राजनीति व राजनय को मजबूती दी है। सात सदस्यीय बैजयंत जय पांडा, रविशंकर प्रसाद, शशि थरूर, संजय झा, श्रीकांत शिंदे, कनिमोझी करुणानिधि और सुप्रिया सुले के नेतृत्व में हमारे देश के नेता 32 देशों का दौरा करेंगे। यह विपक्ष के नेताओं के लिए भी स्वर्णिम अवसर है कि वह अपनी काबिलियत एवं देशहित को देश के सामने साबित करें। क्योंकि राष्ट्र एवं राष्ट्रीय एकता सबसे ऊपर है। बांटने वाली राजनीति से अलग जब हम देशहित के पक्ष में खड़े होंगे, तभी आतंकवाद से लड़ने में सहूलियत एवं सफलता मिलेगी। क्या दुनिया ने भारत के सीमित सैन्य अभियान के महत्व, संयम और समझदारी को ठीक से समझा है? क्या भारत आतंकवाद के खिलाफ संपूर्ण युद्ध नहीं छेड़ सकता था? अगर भारत ने युद्ध को नहीं बढ़ाया, तो इसका अर्थ कतई यह नहीं कि भारत का पक्ष कमजोर है। भारत चाहता तो पाक को हर मोर्चे पर नेस्तनाबूद कर सकता है, लेकिन भारत का लक्ष्य आतंकवाद को समाप्त करना है।
भारत ने पाकिस्तान और पीओके में बसे 9 आतंकी ठिकानों को रात के अंधेरे में तबाह कर दिया। इसके बाद भारत ने ठान लिया कि पूरी दुनिया के सामने आतंकवाद परस्त पाकिस्तान का चेहरा बेनकाब करना है, जिसकी जिम्मेदारी अनुभवी एवं विशेषज्ञ सात सांसदों को सौंप कर सरकार ने सूझबूझ एवं परिपक्व नेतृत्व का परिचय दिया है। सांसदों के सात प्रतिनिधिमंडल दुनियाभर के देशों में जाकर आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का पक्ष रखेंगे। हर एक प्रतिनिधिमंडल में 6-7 सांसद और कई राजनयिक शामिल होंगे। भारत की शांति, अहिंसा, विकास एवं विश्व बंधुत्व का संदेश सात प्रतिनिधिमंडलों के जरिये दुनिया तक पहुंचना इसलिए भी जरूरी है कि भारत को तेज विकास करना है और अब वह पहलगाम जैसे किसी आतंकी हमले को बर्दाश्त नहीं कर सकता। गौर करने की बात है कि सात प्रतिनिधिमंडलों में 59 सदस्य शामिल किए गए हैं, जिनमें सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के 31 नेता और अन्य दलों के 20 नेता शामिल हैं। इस तरह सर्वदलीय सांसदों की टीमों को अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मिशन पर भेजने से भारत का पक्ष मजबूत होगा, दुनिया में आतंक के विरुद्ध सकारात्मक वातावरण बनेगा। ये दौरे न सिर्फ आतंकवाद पर भारत की नीतियों को साफ करेंगे, बल्कि पाक की हरकतों को भी दुनिया के सामने बेनकाब करेंगे।
सात प्रतिनिधिमंडल में जिन नेताओं को नेतृत्व दिया गया है, उसमें भी अन्य दलों को प्राथमिकता देकर एक संतुलन एवं सूझबूझ का परिचय दिया गया है। आइडिया ऑफ इंडिया के साथ सुगठित इस टीम इंडिया के कंधे पर बड़ी एवं महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। दुनिया के निर्णायक नेताओं से मिलकर यह बताना जरूरी है कि आइडिया ऑफ पाकिस्तान और आइडिया ऑफ इंडिया के बीच कितनी चौड़ी खाई है, यह खाई संबंधित देशों ही नहीं, दुनिया को प्रभावित करने वाली है। दूसरे शब्दों में कहें, तो पाकिस्तान आतंकवादी मानसिकता से ग्रस्त है एवं आतंक को पोषित एवं पल्लवित करने वाला देश है। उसके आतंकवाद ने भारत ही नहीं, दुनिया के अनेक देशों को भारी नुकसान पहुंचाया है। एक देश, जो आतंक की बुनियाद पर खड़ा है, न उसे शर्म है, न पछतावा। वहां ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए आतंकियों व उनके परिजन को जैसा राजकीय सम्मान दिया गया है, जैसे पाक फौज आतंकी सरगनाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी देखी गई है, उस तरफ से मुंह मोड़कर अगर दुनिया खड़ी होगी, तो यकीन मानिए, फिर इंसानियत का खून होगा और आतंकवाद को बल मिलेगा।
ऑपरेशन सिन्दूर भारत की बदलती रणनीति का हिस्सा बना है। भारत अब पहले की तरह केवल कूटनीतिक जवाब तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह सैन्य कार्रवाई के जरिए आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश भी देना जानता है। पाक सेना आतंकी संगठनों का इस्तेमाल करती है, लेकिन उसकी यह नीति न केवल भारत के लिए खतरा है, बल्कि पाक के आंतरिक स्थायित्व को भी कमजोर करती है। जब तक पाक सेना अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करती तब तक इस तरह के आतंकी तनाव बार-बार सामने आएंगे। पाक भविष्य में फिर से भारत के खिलाफ आतंकी हमले कर सकता है क्योंकि यह उसकी रणनीति का हिस्सा है। पाक सेना की आतंकवाद समर्थक नीतियां और भारत की आक्रामक जवाबी रणनीति इस क्षेत्र में स्थायी शांति की राह में बड़ी बाधाएं हैं। स्पष्ट होता है कि यह संघर्ष केवल दो देशों के बीच का विवाद नहीं है बल्कि इसमें पूरी दुनिया से जुड़े गहरे ऐतिहासिक, वैचारिक और रणनीतिक आयाम हैं। इसलिये दुनिया के बड़े राष्ट्र पाक की आतंकी सोच से परिचित हो, इसी सोच से दुनिया को परिचित कराना सात सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल का मिशन है।
- ललित गर्ग
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
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