अंबेडकर जी कह चुके हैं शूद्रों का वर्तमान दलितों से कोई लेना देना नहीं है

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शूद्र का कार्य सेवा का था। उसका अधिकार है अपने मालिक के आदेश का पालन करना। वैसे भी डॉ. बीआर अंबेडकर ने अपनी एक पुस्तक शूद्र कौन के प्राक्कथन के पहले पृष्ठ के तीसरे पैराग्राफ में उल्लेख किया है कि वर्तमान दलित प्राचीन या वैदिक कालीन शूद्र नहीं हैं।

तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस को अधिकांशतः भावार्थ में समझने का प्रयास किया जाता है। भावार्थ में सुधिजन अपने अपने दृष्टिकोण, मानसिक अभ्यास और अनुभव के आधार पर चिंतन करते हैं। यहां हम भावार्थ को त्यागकर शाब्दिक अर्थ का उल्लेख करना चाहता हूँ।

'अधिकारी' शब्द का क्या अर्थ होता है..?"

ऐसा व्यक्ति या ऐसा वर्ग अथवा ऐसी संस्था जिसे समाज ने या सरकार ने कुछ अधिकार या शक्ति दिया हो। जैसे एक न्यायाधीश को फाँसी देने का अधिकार होता है तो वह खुद अपने को फाँसी नहीं देता। सामने वाले अपराधी को फाँसी देता है। जिलाधिकारी को जो अधिकार होता है, वह जिले के सभी नागरिकों पर लागू करता है।

ऐसे में यह देखा जाये कि तुलसीदास द्वारा वर्णित इन पांच वर्गों को किसने अधिकार दिया है..? आजकल की तरह लिखित संवैधानिक सरकार तो था नहीं, इसलिए स्वाभाविक है कि सरकार ने नहीं अपितु समाज ने ही अधिकार दिया होगा। सामाजिक नियम सारभौमिक होते हुए स्थान-कालादि से परे सभी के लिए होता है। अब चौपाई पर दृष्टि डाला जाये। ढ़ोल, गवार, शूद्र, पशु और नारी को क्या अधिकार समाज ने दिया है..? तो इस प्रश्न का उत्तर है कि हां.. यह अधिकार समाज द्वारा ही उक्त पांचों वर्गों को दिया गया है।

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इसी प्रकार यहां इनके अधिकार की बात कही गई हैं। नारी को यह अधिकार है कि यदि उसके साथ मिसबहैव यानी छेड़छाड़ हो तो वह उस व्यक्ति को दस चप्पल मार सकती है..। वह दंड दे सकती है..। यह अधिकार उसे समाज ने दिया है। समाज भी उसे उचित मानता है। नारी अपने स्वाभिमान और इज्ज़त की रक्षा के लिए वह दंड अथवा ताड़ना दे सकती है। यह नियम केवल भारत में नहीं अपितु संसार भर में आज से नहीं बल्कि पहले से है।

इसी जगह पुरुषों को यह अधिकार नहीं है। यदि कोई लड़की किसी पुरूष को छेड़ दे तो पुरूष नारी पर हाथ नहीं उठा सकता। पुरुषों को नारी पर हाथ उठाने का अधिकार ही नहीं है। ऐसे केस में उसे न्यायालय या पुलिस में जाना होगा।

इसी प्रकार पशु के लिए है। यदि गाय सींग मार दे, तो आप उसे नहीं पीट सकते। यदि ऐसा कोई करता भी है तो लोग कहते हैं कि वह तो जानवर है, आप क्यों जानवर बन गये..? यहां अधिकार उसके स्वभाव से है। शेर के पास जायेंगे तो वह मार कर खा ही जायेगा।

इसी प्रकार गंवार यानी पागल या मूर्ख के लिए यह सीख दी गयी है। जैसे वह आपके साथ कोई आपत्तिजनक घटना करे तो आप उसे प्रताड़ित नहीं कर सकते। लोग यही कहेंगे कि वह तो पागल है, आप क्यों पागल हो रहे हैं..? यहां उसका अधिकार उसकी मानसिक स्थिति से है।

ढ़ोल का काम है बजना, यदि प्रशंसनीय कार्य किया गया तो पक्ष में, अन्यथा विरोध में बजेगा।

शूद्र का कार्य सेवा का था। उसका अधिकार है अपने मालिक के आदेश का पालन करना। वैसे भी डॉ. बीआर अंबेडकर ने अपनी एक पुस्तक शूद्र कौन के प्राक्कथन के पहले पृष्ठ के तीसरे पैराग्राफ में उल्लेख किया है कि वर्तमान दलित प्राचीन या वैदिक कालीन शूद्र नहीं हैं। वहीं पर उन्होंने तो यहां तक लिखा है कि शूद्रों का वर्तमान दलितों से कोई लेना देना नहीं है। आजकल के अंबेडकराइज्ड अंबेडकर जी से बड़े विद्वान तो नहीं हो सकते हैं।

वैसे भी देखा जाये तो तुलसीदास जी के जीवन में क्या था..? जब पत्नी ने धिक्कार दिया कि मुझसे अच्छा होता कि आप प्रभु श्रीराम में अपनी आसक्ति लगाएं। तब तुलसीदास के जीवन में उनके आराध्य भगवान श्रीराम और माता सीता के आलावा कुछ नहीं था। कोई अपनी माता के लिए ऐसी बातें क्यों और कैसे लिख सकता है..?

वेद स्वयंभू हैं किंतु उसके मंत्र द्रस्टा ऋषि थे.. केवल ऋगवेद के लगभग तीन सौ ऋषि थे। उनमें सैंकड़ों महिलाएं ऋषि थीं। लोपामुद्रा, सत्यभामा, मैत्रेयी, गार्गी इत्यादि। शूद्र ऋषि व्यास ने पूरे वेद का संकलन किया था, इसीलिए ही उन्हें वेदव्यास कहा जाता है। 

जब महिलाएं और शूद्र वेद लिख सकते थे तो उन्हें वेदाधिकार क्यों नहीं..? सब सत्ता में उलझे हुए हैं, और पूरे समाज को भी उलझाए हुए हैं। आवश्यकता है कि हम समाज को नकारात्मकता से बचाकर सकारात्मक दिशा में ले चलें।

-डॉ. विजय सोनकर शास्त्री

पूर्व सांसद (लोकसभा)

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