पाक प्रायोजित आतंकवाद पर अमेरिका का ढुलमुल रवैया

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अमेरिका बेशक इन हमलों के लिए सीधा जिम्मेदार नहीं हो, किन्तु पाकिस्तान के साथ उसके सैन्य रिश्ते कहीं न कहीं आतंकवाद को प्रोत्साहित करते नजर आते हैं। यह पहला मौका नहीं है जब किसी अमेरिकी विशिष्ट व्यक्ति के भारत दौरे के दौरान आतंकी वारदात हुई है।

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले 26 से अधिक पर्यटक मारे गए। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों ने यह हमला ऐसे समय में किया जब अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेन्स अपनी भारतीय मूल की पत्नी उषा और बच्चों के साथ भारत की यात्रा पर थे। इस हमले के पीछे पाकिस्तान का निहितार्थ इस यात्रा में विध्न डाल कर कश्मीर के मुद्दे पर विश्व का ध्यान आकर्षित करना था। पाकिस्तान इस तरह के कुत्सित प्रयास पूर्व में भी कर चुका है। बेरोजगारी, भारी भरकम कर्जा और घरेलू आतंकवाद से त्रस्त पाकिस्तान ने इन समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए वेंस की यात्रा के दौरान हमला करवाने के समय का चुनाव किया। अमेरिका सहित विश्व के तकरीबन सभी देशों ने इस हमले की तीखी निंदा की। सवाल यही है कि क्या अमेरिका सिर्फ निंदा तक ही सीमित रहेगा। पूर्व में भी इसी तरह के पाक प्रायोजित हमले के दंश भारत झेलता रहा है। जब कभी भी ऐसे हमले हुए हैं, अमेरिका ने सिर्फ घडियाली आंसू ही बहाएं हैं। सही मायने में तो अमेरिका चाहता ही नहीं है कि पाकिस्तान पर ऐसी आतंकी वारदातों को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई करे। यही वजह है कि अन्य देशों की तरह अमेरिका भी सिर्फ सहानुभूति जता कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेता है।   

अमेरिका बेशक इन हमलों के लिए सीधा जिम्मेदार नहीं हो, किन्तु पाकिस्तान के साथ उसके सैन्य रिश्ते कहीं न कहीं आतंकवाद को प्रोत्साहित करते नजर आते हैं। यह पहला मौका नहीं है जब किसी अमेरिकी विशिष्ट व्यक्ति के भारत दौरे के दौरान आतंकी वारदात हुई है। 20 मार्च, 2000 की रात को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने जम्मू कश्मीर के अनंतनाग जिले के चिट्टीसिंहपोरा गांव में 36 सिख ग्रामीणों का नरसंहार किया था। यह घटना अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की 21-25 मार्च की यात्रा से ठीक पहले हुई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने क्लिंटन के सामने हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ होने का मुद्दा उठाया था। उस समय क्लिंटन जयपुर और आगरा के दौरे पर थे, जबकि विदेश मंत्री मैडलिन अलब्राइट और उप विदेश मंत्री स्ट्रोब टैलबोट भारतीय अधिकारियों से बातचीत करने के लिए दिल्ली में ही थे। वर्ष 2002 में जब दक्षिण एशियाई मामलों को लेकर अमेरिकी असिस्टेंट सेक्रेटरी क्रिस्टीना बी रोका भारत की यात्रा पर थीं, तब 14 मई, 2002 को जम्मू-कश्मीर के कालूचक के पास एक आतंकवादी हमला हुआ। तीन आतंकवादियों ने मनाली से जम्मू जा रही हिमाचल रोडवेज की बस पर हमला किया और सात लोगों की हत्या कर दी। इसके बाद आतंकी आर्मी क्वार्टर्स में घुस गए और अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें 10 बच्चों, आठ महिलाओं और पांच सैन्यकर्मियों सहित 23 लोग मारे गए। मारे गए बच्चों की उम्र चार से 10 साल के बीच थी और इस हमले में कुल 34 लोग घायल हुए थे। इन आतंकी हमलों से जाहिर है कि पाकपरस्त आतंकियों ने हमला करने के लिए ऐसे वक्त का चुनाव किया जबकि कोई न कोई प्रमुख अमेरिकी भारत यात्रा पर आया हो। आश्चर्य की बात यह है कि इन हमलों के बावजूद अमेरिका ने कभी पाकिस्तान के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं की। कहने को अमेरिका भारत को महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार बताता है, किन्तु हकीकत में उसका उद्देश्य सिर्फ व्यवसायिक हित साधना भर रहा है। अमेरिका के व्यवसायिक हित सर्वोपरि हैं। 

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भारत के भारी विरोध के बावजूद अमेरिका ने पाकिस्तान को घातक एफ16 लड़ाकू विमानों की बिक्री की। इतना ही नहीं इनकी मरम्मत के नाम पर लाखों डालर की मदद भी अमेरिका करता रहा है। अमेरिका ने भारत के विरोध को नजरांदाज करते हुए यह सैन्य मदद दी। अमेरिका न सिर्फ भारत से दुश्मनी साधे हुए पाकिस्तान की हरसंभव मदद करता रहा है, बल्कि विदेशी धरती से भारत के खिलाफ साजिश करने वाले लोग और देशों का सहयोग भी करता रहा है। कनाडा में आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में अमेरिका ने कनाडा की पैरवी की। कनाडा फाइव आई का सदस्य है। फाइव आईज में कनाडा का अहम सहयोगी अमेरिका ने पिछले साल निज्जर हत्याकांड में भारतीय एजेंट्स की कथित संलिप्तता के कनाडा के आरोपों पर टिप्पणी की थी। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा था कि हमने साफ कर दिया है कि कनाडा के आरोप बेहद ही गंभीर हैं जिन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए। हम चाहते थे कि भारत कनाडा की जांच में सहयोग करे लकिन भारत सहयोग नहीं कर रहा। इसके बजाए भारत ने एक वैकल्पिक रास्ता चुना है। इतना ही नहीं अमरीकी से भारत को आतंकी कार्रवाई की धमकी देने वाले खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू एयर इंडिया की फ्लाइट को उड़ाने की धमकी दी। इस पर भी अमेरिका ने जानबूझ कर नकेल नहीं कसी। हाल ही में अमेरिका की ओर से जारी किए गए बयानों में भी यह साफ किया जा चुका है कि वह पाकिस्तान को भारत या अफगानिस्तान के नजरिए से नहीं देखता है। अमेरिका की ओर से कहा गया कि वह भारत, चीन, ईरान, अफगानिस्तान से सीमा साझा करने वाले परमाणु सशक्त पाकिस्तान को एक महत्वपूर्ण देश समझता है। 

अमेरिकी विदेश मंत्रालय का कहना है कि अमेरिका पाकिस्तान के साथ कई मुद्दों पर साथ मिलकर काम कर रहा है। इन मुद्दों में ऊर्जा, कारोबार, निवेश, स्वास्थ्य, क्लीन एनर्जी, क्लाइमेट संकट से बचाव, अफगानिस्तान में स्थिरता और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई शामिल है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने आगे कहा कि पाकिस्तान में विदेशी निवेश  का सबसे बड़ा योगदान अमेरिका का है। साथ ही पाकिस्तान का सबसे बड़ा निर्यात बाजार भी है। भारत से दोस्ती का दंभ भरने वाले अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकी पालने पर कभी भी सख्त कार्रवाई नहीं की। इसके विपरीत भारत की तरक्की और परमाणु क्षमता अमेरिका को तब तक खटकती रही, जब तक भारत ने दोनों क्षेत्रों में विश्व में अपना लोहा नहीं मनवा दिया। भारत ने चाबहार पोर्ट को लेकर ईरान के साथ समझौता किया है। इससे भारत को ओमान की खाड़ी में स्थित इस रणनीतिक पोर्ट का संचालन अधिकार 10 साल के लिए मिल गया है। लेकिन इस समझौते को अमेरिका ने नापंसद कर दिया। अमेरिका ने भारत को प्रतिबंधों की चेतावनी जारी की। हालांकि, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका को दो टूक जवाब दे दिया और कहा कि अमेरिका अपनी सोच बड़ी करे, क्योंकि इस योजना से पूरे क्षेत्र को फायदा होगा। वैसे ये पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने भारत को प्रतिबंधों की चेतावनी दी है। बल्कि, 50 साल पहले जब भारत ने पोकरण में पहला परमाणु परीक्षण किया था, तब अमेरिका ने 30 सालों के लिए भारत पर प्रतिबंध लगा दिया था। भारत ने इन प्रतिबंधों की परवाह किए बगैर तरक्की का रास्ता जारी रखा। भारत सैन्य प्रौद्योगिकी सहित अन्य क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हो गया। इसके बाद व्यापारी अमरीका को लगने लगा कि इन प्रतिबंधों से अमेरिका को ही घाटा हो रहा है, तब जाकर इनको हटाया गया।   

सही मायने में अमेरिका भारत को बराबरी का दर्जा देने से गुरेज करता रहा है। अमेरिका का प्रयास यही रहा है कि भारत को पाकिस्तान के समकक्ष रखा जाए। भारत ने हर क्षेत्र में अपनी तरक्की से अमेरिका के ऐसे प्रयासों को हमेशा झटका दिया है। ऐसे में अमेरिका से कभी भी उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह पहलगाम में हुई आतंकी घटना के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान को दंडित करेगा। भारत को अपने बलबूते ही ऐसी वारदातों से निपटने और पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए दूरगामी नीति अपनानी होगी।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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