एक देश, एक झंडा और एक संविधान का सपना मोदी ने पूरा कर दिखाया

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यह फैसला पूर्ण बहुमत वाली सरकार की ताकत को भी प्रदर्शित करता है और यह भी दिखाता है कि गृहमंत्री यदि जबरदस्त राजनीतिक इच्छाशक्ति वाला हो तो वह सही समय का इंतजार करने की बजाय कार्यकाल के पहले दिन से ही देशहित के एजेंडे को आगे बढ़ा सकता है।

अपना एक बड़ा चुनावी वादा पूरा करने की ओर कदम बढ़ाते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने आज एक बड़ा फैसला लिया और जम्मू-कश्मीर से विवादास्पद अनुच्छेद 370 को हटाने का संकल्प संसद में पेश कर दिया। यही नहीं जम्मू-कश्मीर राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया है और अब राज्य का अपना अलग झंडा और अलग संविधान नहीं रहेगा और ना ही जम्मू-कश्मीर में दोहरी नागरिकता की सुविधा किसी को मिलेगी। इसके साथ ही राज्य विधानसभा का कार्यकाल अब छह नहीं पांच साल का रहेगा। यही नहीं जम्मू-कश्मीर के बाहर के लोग भी अब राज्य में जमीन खरीद सकेंगे। वाकई नरेंद्र मोदी ने 'एक देश, एक झंडा और एक संविधान' के बरसों पुराने देश के सपने को साकार कर दिखाया है। मोदी सरकार का यह फैसला पूर्ण बहुमत वाली सरकार की ताकत को भी प्रदर्शित करता है और यह भी दिखाता है कि गृहमंत्री यदि जबरदस्त राजनीतिक इच्छाशक्ति वाला हो तो वह सही समय का इंतजार करने की बजाय कार्यकाल के पहले दिन से ही देशहित के एजेंडे को आगे बढ़ा सकता है। 

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अमित शाह ने जब धारा 370 हटाने का संकल्प पेश किया तो निश्चित ही देश की जनता ने राहत की सांस ली होगी। गृहमंत्री ने एकदम सही कहा है कि जम्मू-कश्मीर की जनता मुश्किलों में जी रही है। धारा 370 ने कश्मीर को देश से जोड़ा नहीं बल्कि अलग करके रखा। धारा 370 की बदौलत ही जम्मू-कश्मीर के कुछ राजनीतिक परिवार राज्य की जनता को लूटते रहे और अपने राजनीतिक हित साधते रहे। उन्हें अब अपने राजनीतिक जमीन खिसकती दिख रही है तो वह संसद के अंदर और बाहर हंगामे पर उतारू हो गये हैं। विपक्षी पार्टियां भले सरकार पर लोकतंत्र की हत्या करने के आरोप लगा रही हैं लेकिन अमित शाह ने साफ कर दिया है कि हम वोट बैंक की राजनीति नहीं करते।

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गृहमंत्री के राज्यसभा में दिये गये संबोधन को देखें तो उन्होंने साफ कर दिया है कि राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद अनुच्छेद 370 के सभी खंड लागू नहीं होंगे। इसके साथ ही मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन का फैसला करते हुए जो जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पेश किया है वह भी ऐतिहासिक कदम कहा जायेगा। जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर दिया गया है और लद्दाख को बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर भी केंद्र शासित प्रदेश रहेगा लेकिन उसके पास सीमित अधिकारों वाली विधानसभा होगी। गृहमंत्री अमित शाह की ओर से राज्यसभा में साफ कहा गया है कि लद्दाख के लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि लद्दाख को केंद्र शासित राज्य का दर्ज दिया जाए, ताकि यहां रहने वाले लोग अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकें।

जम्मू-कश्मीर के बारे में लिये गये फैसलों को लेकर विपक्षी दल जिस तरह की हायतौबा मचा रहे हैं उसके बारे में इन्हीं दलों से पूछा जाना चाहिए कि जिन धाराओं को बचाने के पक्ष में वह दलीलें दे रहे हैं, अपने कपड़े फाड़ रहे हैं और संसद में धरने पर बैठ रहे हैं, उन धाराओं के रहते क्यों जम्मू-कश्मीर में हालात बेकाबू रहे? क्यों वहां निष्पक्ष चुनावों में बाधाएं पैदा की जाती रहीं? क्यों वहां भ्रष्टाचार मुक्त शासन नहीं मिल पाया? क्यों वहां के युवाओं को रोजगार और सही दिशा नहीं दिखायी जा सकी? इन विपक्षी दलों से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या सभी राज्यों के पास समान अधिकार और समान सुविधाएं नहीं होनी चाहिए?


क्या है अनुच्छेद 370 ? कितना हो रहा था इससे नुकसान?

यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देता है। इसके मुताबिक, भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों-रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिए कानून बना सकती है। इसके अलावा किसी कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती है। 370 लगे होने के कारण जम्मू-कश्मीर में बाहर के लोग कोई जमीन नहीं खरीद सकते थे, यहां की महिलाओं पर शरियत का कानून लागू होता था, यदि राज्य की कोई महिला किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उसकी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता समाप्त हो जाती थी। यही नहीं कोई कश्मीरी महिला यदि पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी कर ले तो उसके पति को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता स्वतः मिल जाती थी। किसी भी राज्य का विकास तभी हो सकता है जब वहां की पंचायतें मजबूत हों लेकिन देखिये कि अनुच्छेद 370 के चलते जम्मू-कश्मीर में पंचायतों के पास कोई अधिकार ही नहीं था। जम्मू-कश्मीर भारत का मस्तक है लेकिन इस राज्य का झंडा अलग था, यही नहीं यहां भारतीय राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध की श्रेणी में नहीं आता था और सुप्रीम कोर्ट तक के आदेश यहां मान्य नहीं होते थे। इसके अलावा सूचना का अधिकार हो, शिक्षा का अधिकार हो या सीएजी यहां पर यह सब उपलब्ध नहीं थे। जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक की श्रेणी में आने वाले हिंदुओं और सिखों को 16 फीसदी आरक्षण भी नहीं मिलता था।

- नीरज कुमार दुबे

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