ऐसे ही पवार परिवार का गढ़ नहीं बन गया है बारामती, समझिये क्यों जीतते हैं हर चुनाव

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महाराष्ट्र के बड़े शहरों में आपने अकसर राजधानी मुंबई के अलावा पुणे, नासिक, ठाणे, नागपुर, नवी मुंबई या अन्य शहरों का नाम सुना होगा। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि ढांचागत सुविधाओं के हिसाब से बारामती इन सब शहरों से काफी आगे है।

चुनाव चाहे विधानसभा के हों या लोकसभा के, हर उम्मीदवार का यही प्रयास रहता है कि वह ज्यादा से ज्यादा समय अपने क्षेत्र के मतदाताओं से संपर्क करने में लगाये और अपनी बात उन तक पहुँचाये ताकि उसकी जीत की संभावनाएं बढ़ सकें। लेकिन महाराष्ट्र के बारामती विधानसभा क्षेत्र में अजब ही नजारा है। यहाँ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार और पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार अपना नामांकन दाखिल करने के बाद अन्य क्षेत्रों में पार्टी के प्रचार के लिए चले गये हैं अब वह 19 अक्तूबर को ही यहाँ लौटेंगे और कार्यकर्ताओं तथा जनता से चुनाव प्रचार के अंतिम दिन संवाद करेंगे। ऐसा नहीं है कि अजित पवार ने ऐसा पहली बार किया हो, दरअसल पवार परिवार के सदस्य बारामती में नामांकन दाखिल करने के बाद प्रचार करते ही नहीं और प्रचार का सारा जिम्मा कार्यकर्ता ही संभालते हैं। कार्यकर्ता और स्थानीय जनता भी नहीं चाहती कि पवार परिवार का उम्मीदवार क्षेत्र में चुनाव प्रचार में अपना समय खराब करे। इसलिए चुनाव चाहे शरद पवार लड़ रहे हों, या फिर सुप्रिया सुले या फिर अजित पवार, उनका काम सिर्फ नामांकन भरने का रहता है बाकी काम जनता खुद कर देती है। जनता भी कौन ? सिर्फ आम जनता नहीं, विद्वान लोग भी जिनमें प्रोफेसर, कंपनियों के मुख्य कार्यकारी, डॉक्टर, इंजीनियर आदि भी शामिल हैं।

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अब जनता खुद राकांपा उम्मीदवार की राह आसान कर रही है तो इसके पीछे कारण भी होंगे। तो आइए डालते हैं उन कारणों पर एक नजर। महाराष्ट्र के बड़े शहरों में आपने अकसर राजधानी मुंबई के अलावा पुणे, नासिक, ठाणे, नागपुर, नवी मुंबई या अन्य शहरों का नाम सुना होगा। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि ढांचागत सुविधाओं के हिसाब से बारामती इन सब शहरों से काफी आगे है। साफ-सुथरा और हरा-भरा ऐसा शहर आपने शायद ही देखा हो जिसके पेड़ों की पत्तियां भी नीचे गिरने जैसी गंदगी कहीं दिखाई नहीं देती। सूखे की मार झेलते इस शहर ने बरसों पहले वर्षा जल संरक्षण के उपाय अपना लिये थे और यही कारण है कि सड़कों के दोनों ओर जबरदस्त हरियाली देखने को मिलती है। यह हरियाली कहीं से आभास भी नहीं होने देती कि इस वर्ष भी यह क्षेत्र सूखे की मार झेल रहा है। यह हरियाली जहां पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाये हुए है वहीं इसके चलते यहां के वातावरण में भी ठंडक का अहसास रहता है।

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वैसे तो महाराष्ट्र में पुणे शहर की पहचान एजुकेशन हब के रूप में है लेकिन बारामती के स्कूल और कॉलेजों को देखकर आप हैरान रह जाएंगे। बड़ी-बड़ी शानदार बिलडिंगे, चमचमाते और सभी सुविधाओं से युक्त हॉस्टल और समय की माँग के अनुसार हर महत्वपूर्ण कोर्स कराने वाले यह कॉलेज निश्चित रूप से बारामती को शरद पवार की एक बड़ी देन हैं। शरद पवार अपने क्षेत्र में औद्योगिक इकाइयों को भी बड़ी संख्या में लाने में सफल रहे हैं जिससे लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार के भरपूर अवसर उपलब्ध हुए हैं और अन्य शहरों के लोगों को भी यहाँ आकर काम करने का मौका मिल रहा है। खास बात यह है कि औद्योगिक इकाइयों से किसी तरह का प्रदूषण न हो, इसके भी पुख्ता प्रबंध किये गये हैं। इन औद्योगिक इकाइयों में 15 से 20 किलोमीटर के दायरे में काम करने वाली अनेकों महिलाओं को रोजगार भी मिला हुआ है जिससे वह आत्मनिर्भर हुई हैं और उनकी सामाजिक स्थिति में भी सुधार आया है। 

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ग्राम स्तर पर सहकारी संस्थाओं की स्थापना ने किसानों को आर्थिक मजबूती देने का काम किया है। राष्ट्रीयकृत बैंकों से ऋण लेने में भले परेशानी हो लेकिन किसानों को छोटे-मोटे कामों के लिए इन सहकारी बैंकों से ऋण आसानी से मिल जाता है। पानी की कमी वाला इलाका होने के बावजूद भूमि को उपजाउ बनाने के लिए मेहनत की गयी है यही कारण है कि क्षेत्र में गन्ना बहुतायत में होता है और इसके अलावा अंगूर और अनार की खेती भी यहाँ की जाती है। किसान अपनी उपज आसानी से बेच सकें इसके लिए ग्राम स्तर पर ही मंडियों की व्यवस्था है जहां वह उचित मूल्य पर अपना सामान बेच सकते हैं। बारामती नाम सुन कर आपको भले इसके छोटे शहर जैसा होने का आभास हो लेकिन यहां की चौड़ी और पक्की सड़कें, चमचमाती बड़ी-बड़ी गाड़ियां, शॉपिंग मॉल्स इस शहर की रौनक में जहां चार चांद लगाते हैं वहीं शहर की कानून व्यवस्था अच्छी होने के कारण 110 किलोमीटर दूर पुणे में काम करने वाले लोग भी यहाँ बड़ी संख्या में रहते हैं और रोजाना अप-डॉउन करते हैं। रेल नेटवर्क और सड़क मार्ग से भी बारामती अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है इसलिए यहां तक आने में भी किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं होती है। बारामती के बारे में एक वाक्य में कहीं तो यही कहा जा सकता है कि यह एक आदर्श शहर है।

राजनीतिक समीकरण

बात यहां के राजनीतिक समीकरणों की करें तो बारामती में छह विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें बारामती वीआईपी सीट है क्योंकि इस पर पहली बार जब शरद पवार 1967 में चुनाव जीते थे तब से यह सीट पवार परिवार के पास ही बनी हुई है। शरद पवार के भतीजे अजित पवार इस सीट पर 1991 से लगातार विधायक हैं। इस बार भाजपा ने उनके खिलाफ गोपीचंद पडलकर को अपना उम्मीदवार बनाया है। विधानसभा चुनावों के समय ही गोपीचंद पडलकर प्रकाश अंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन अगाड़ी छोड़कर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की उपस्थिति में भाजपा में शामिल हुए और आते ही उन्हें टिकट थमा दिया गया। पडलकर की खासियतों की बात करें तो वह शक्तिशाली मराठी नेता संभाजी भिड़े के शिष्य रहे हैं, ओजस्वी भाषण देते हैं और हालिया संपन्न लोकसभा चुनावों में बतौर वंचित बहुजन अगाड़ी उम्मीदवार के रूप में तीन लाख से ज्यादा वोट हासिल करने में सफल रहे थे। गोपीचंद पडलकर धनगर समुदाय से आते हैं जिसकी बारामती में बहुतायत है। लेकिन गोपीचंद पडलकर के खिलाफ जो बात जाती है वह यह है कि वह बाहरी उम्मीदवार के रूप में देखे जा रहे हैं जिसका उन्हें नुकसान संभव है। पडलकर सांगली से आते हैं इसलिए उनका यहां विरोध भी हो रहा है। भाजपा ने जिस धनगर समुदाय की राजनीतिक ताकत को देखते हुए गोपीचंद को अपना उम्मीदवार बनाया है उस समाज का संगठन 'धनगर समाज संघ' अपना समर्थन अजित पवार को दे चुका है और उसका कहना है कि साढ़े तीन लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार को 25 हजार से ज्यादा मत नहीं मिल पाएंगे।

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बारामती संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले अन्य विधानसभा क्षेत्रों की बात करें तो यहां कुल मिलाकर छह विधानसभा सीटें हैं जिनमें बारामती विधानसभा क्षेत्र में इस बार भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। इसके अलावा एनसीपी इंदापुर में भी मजबूत नजर आ रही है। भाजपा-शिवसेना गठबंधन दौंड, पुरंदर और खड़कवासला में भारी नजर आ रहा है। इसके अलावा भोर विधानसभा सीट एक बार फिर कांग्रेस के खाते में जाती दिख रही है।

-नीरज कुमार दुबे

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