बाबा बालकनाथ को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाकर कई संदेश देना चाहती है भाजपा

Mahant Balaknath
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राजस्थान के वर्तमान राजनीतिक हालात की बात करें तो नवनिर्वाचित विधायकों का पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मिलना जारी है, जिसे शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा है। वसुंधरा राजे खेमे के नेताओं ने दावा किया है कि अब तक लगभग 68 विधायक उनके आवास पर उनसे मिल चुके हैं।

राजस्थान में विधानसभा चुनावों से पहले सबसे बड़ा सवाल था कि रिवाज बदलेगा या राज? जनता ने राज बदल कर रिवाज कायम रखा और इस बार सत्ता की बागडोर भाजपा को सौंप दी। भाजपा के हाथ में सत्ता की कमान आने के बाद अब पार्टी को फैसला करना है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? देखा जाये तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदार हैं लेकिन आलाकमान के रुख को देख कर लगता नहीं कि उन्हें इस बार सरकार का नेतृत्व करने का अवसर मिलेगा। वसुंधरा राजे जिस तरह पांच साल विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए घर से नहीं निकलीं और अंतिम समय में कुर्सी की चाहत रख रही हैं वह जनता को भी नहीं भा रहा है। इस बीच, राजस्थान में नए मुख्यमंत्री को लेकर जारी कयासों के बीच भाजपा के राज्य प्रभारी अरुण सिंह ने कहा है कि मुख्यमंत्री के संबंध में पार्टी के संसदीय बोर्ड का फैसला सभी को मान्य होगा।

दूसरी ओर, नवनिर्वाचित विधायकों का पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मिलना जारी है, जिसे शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा है। वसुंधरा राजे खेमे के नेताओं ने दावा किया है कि अब तक लगभग 68 विधायक उनके आवास पर उनसे मिल चुके हैं। हम आपको बता दें कि राज्य में विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 199 सीटों में से 115 पर जीत हासिल की है। राजस्थान में अटकलें तो ऐसी भी हैं कि वसुंधरा राजे से अपने अच्छे राजनीतिक रिश्ते स्वीकार कर चुके निवर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जरूरत पड़ने पर कांग्रेस विधायकों का समर्थन वसुंधरा राजे को दिलवा सकते हैं। लेकिन वसुंधरा भाजपा से बगावत करेंगी, ऐसी संभावनाएं बेहद कम हैं। हम आपको यह भी बता दें कि भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे 2003 से 2008 और 2013 से 2018 तक दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। 2018 में भाजपा की हार और पार्टी के भीतर बदले हालात के बाद ऐसा माना जाने लगा था कि वसुंधरा राजे को किनारे कर दिया गया है। पहले के चुनावों में वह मुख्यमंत्री का चेहरा थीं लेकिन इस विधानसभा चुनाव में पार्टी ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की तथा पार्टी के चुनाव चिन्ह 'कमल' और प्रधानमंत्री मोदी के नाम को आगे कर चुनाव लड़ा।

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हम आपको बता दें कि फिलहाल मुख्यमंत्री पद की दौड़ में अलवर के सांसद और तिजारा से विधानसभा चुनाव जीते बाबा बालकनाथ सबसे आगे चल रहे हैं। बाबा बालकनाथ के व्यक्तित्व का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी हाल में उनके एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। यही नहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बाबा बालकनाथ के नामांकन के समय आये थे और उनके समर्थन में जनसभा को भी संबोधित किया था। यही नहीं, योग गुरु बाबा रामदेव तथा देश के कई प्रमुख संतों ने राजस्थान विधानसभा चुनावों के दौरान जनता से बालकनाथ को चुनाव जिताने की अपील की थी। देखा जाये तो सांसद बालकनाथ को उतार कर तिजारा विधानसभा सीट जीतने की जो रणनीति भाजपा ने बनाई थी वह सफल रही। अब माना जा रहा है कि भाजपा बालकनाथ को राजस्थान की कमान सौंप कर विपक्ष को कई संदेश भी देना चाहती है।

देखा जाये तो अशोक गहलोत की सरकार के दौरान राजस्थान में तुष्टिकरण की राजनीति को जिस तरह बढ़ावा दिया गया उसके चलते रामनवमी और अन्य हिंदू त्योहारों पर दंगे और उदयपुर के कन्हैयालाल हत्याकांड जैसी घटनाएं देखने को मिलीं। धार्मिक प्रवृत्ति वाले इस शांत प्रदेश से लगातार अशांति की जो खबरें आईं वह देश के लिए भी चिंता का विषय बनीं इसीलिए भाजपा एक संत को कमान सौंपने पर विचार कर रही है। दूसरा, जिस तरह विपक्षी गठबंधन के नेताओं ने सनातन धर्म पर लगातार हमले किये उसकी काट के लिए एक संत को कमान सौंप कर भाजपा देश भर के हिंदुओं को भी संदेश देना चाहती है कि एक तरफ कुछ लोग सनातन धर्म पर हमला कर रहे हैं तो दूसरी ओर भाजपा सत्ता की कमान संतों को दे रही है। इसके अलावा जिस तरह भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे की काट के लिए अन्य पार्टियों के नेता भी चुनावों के दौरान मंदिर मंदिर जाते हैं उसको देखते हुए भी भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि हिंदुत्व की राह पर चलने वाली असली और मूल पार्टी वही है। भगवा पर हो रहे राजनीतिक हमलों को देखते हुए भाजपा भगवा को ही राजस्थान की राजनीति की कमान सौंपने पर गंभीरता से विचार कर रही है। इसके अलावा बालकनाथ मूल रूप से यादव समाज से आते हैं जोकि ओबीसी श्रेणी में आता है। विपक्ष के नेता जाति जनगणना और ओबीसी का मुद्दा आजकल खूब उठा रहे हैं इसीलिए बालकनाथ का नाम आगे बढ़ाकर भाजपा विपक्ष के सारे अभियान की हवा निकाल देना चाहती है।

इन सब वजहों से महंत बालकनाथ इस समय मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे चल रहे हैं। जहां तक उनके व्यक्तिगत परिचय की बात है तो आपको बता दें कि उनका जन्म 16 अप्रैल 1984 को कोहरणा गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने साढ़े छह साल की उम्र में संन्यास अपना लिया था और घर छोड़ कर आश्रम चले गये थे। बाल्यकाल में बाबा खेतानाथ ने उनका नाम गुरुमुख रखा था। वह 1985-1991 तक मत्स्येंद्र महाराज आश्रम में रहे थे उसके बाद वह महंत चांदनाथ के साथ हनुमानगढ़ जिले के नाथावली थेरी गांव में एक मठ में चले गए थे। बालकनाथ नाथ सम्प्रदाय के आठवें मुख्य महंत भी हैं। उल्लेखनीय है कि नाथ संप्रदाय में गोरख पीठ को इस संप्रदाय का अध्यक्ष माना जाता है और रोहतक की पीठ को उपाध्यक्ष। इस नाते बालकनाथ नाथ संप्रदाय के आठवें महंत माने जाते हैं। वह एक तरह से योगी आदित्यनाथ के गुरु भाई भी हैं। हम आपको बता दें कि महंत चांदनाथ ने 29 जुलाई 2016 को बालकनाथ को अपने उत्तराधिकारी के रूप में घोषित किया था। उस समारोह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और योग गुरु बाबा रामदेव ने भी भाग लिया था। महंत बालकनाथ सांसद और विधायक होने के अलावा समाज सुधारक, वक्ता व आध्यात्मिक गुरु भी हैं। वह बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय के चांसलर भी हैं।

हमेशा भगवा वस्त्र पहनने वाले और आध्यात्मिक छवि वाले बाबा बालकनाथ की गिनती भाजपा के फायर ब्रांड नेताओं में होती है। वह खुलकर हिंदुत्व की बात करते हैं और जब वह विधानसभा चुनावों के लिए नामांकन भरने आये थे और चुनावों के लिए प्रचार कर रहे थे तब कई बार वह बुलडोजर से गये थे और अपराधियों को तीन दिसंबर तक प्रदेश छोड़ने की चेतावनी दे दी थी। हम आपको बता दें कि राजस्थान विधानसभा चुनावों के दौरान विभिन्न सर्वेक्षणों में भी बाबा बालकनाथ मुख्यमंत्री पद के लोकप्रिय दावेदार बनकर उभरे थे।

बहरहाल, बाबा बालकनाथ के राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने की बढ़ती हुई संभावनाओं को देखते हुए संत समाज में खुशी की लहर है। आल इंडिया अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी महाराज और निरंजनी अखाड़ा के महामंडलेश्वर ललितानंद गिरी महाराज ने कहा है कि बाबा बालकनाथ की छवि सिर्फ राजस्थान में ही नहीं बल्कि पूरे देश में बहुत अच्छी है। यदि वह मुख्यमंत्री बनते हैं तो इससे समाज में एक अच्छा संदेश जायेगा। लगभग ऐसी ही प्रतिक्रियाएं देश के अन्य प्रमुख संतों की ओर से भी आ रही हैं।

-नीरज कुमार दुबे

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