कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए नेताओं ने पर्चा तो भर दिया, मगर सबकुछ 'फिक्स मैच' जैसा दिख रहा है

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जहां तक मल्लिकार्जुन खड्गे की बात है तो वह पुराने कांग्रेसी हैं। खड्गे के बारे में कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि गांधी परिवार की ओर से उन्हें एक दिन पहले ही नामांकन दाखिल करने का निर्देश मिला क्योंकि अशोक गहलोत को चुनाव लड़ाने की योजना रद्द कर दी गयी थी।

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव से गांधी परिवार के सदस्यों ने दूरी बनाये रखी लेकिन उम्मीदवारों के नामों को लेकर हुई उठापटक कुछ और ही संकेत देती है। नामांकन दाखिल करने का अवसर भले समान रूप से सबको मिला हो लेकिन मल्लिकार्जुन खड्गे को पर्चा दाखिल करने के समय मिला समर्थन गांधी परिवार के प्रभाव को दर्शाता है। शशि थरूर और अन्य लोग मैदान में जरूर हैं लेकिन साफ दिख रहा है कि 'फिक्स' मैच लड़ा जा रहा है। जिस तरह से मतदान होने और चुनाव परिणाम आने से पहले ही गांधी परिवार से जुड़े कांग्रेस नेताओं ने ऐलान करना शुरू कर दिया है कि खड्गे के अनुभव का लाभ पार्टी को मिलेगा, वह दर्शाता है कि जो दिख रहा है वही सबकुछ नहीं है। पर्दे के पीछे से बड़ा खेल भी हुआ है। बहरहाल, अभी देखना होगा कि क्या कोई उम्मीदवार पर्चा वापस लेता है।

जहां तक उम्मीदवारों की बात है तो पूर्व केंद्रीय मंत्रियों शशि थरूर और मल्लिकार्जुन खड्गे मुख्य मुकाबले में हैं जबकि झारखंड के कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी ने भी नामांकन दाखिल कर दिया है। शशि थरूर कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र और सुधारों की लंबे समय से मांग करने वाले समूह जी-23 के सदस्य हैं। वह मनमोहन सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रह चुके हैं। केरल की तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट से तीसरी बार के सांसद शशि थरूर संयुक्त राष्ट्र में सचिव रहे हैं और वह केंद्र में एनडीए सरकार के दौरान भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र महासचिव पद का चुनाव भी लड़ चुके हैं। 2009 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस में शामिल हुए शशि थरूर प्रख्यात लेखक भी हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वह जानी मानी हस्ती हैं। लेकिन शशि थरूर के जनाधार की परख केरल से बाहर होनी बाकी है। फिलहाल तो शशि थरूर ने परम्परा से हटकर जिस तरह अध्यक्ष पद के लिए नामांकन के बाद पार्टी में सुधारों को लेकर अपना घोषणापत्र जारी किया है वह दर्शाता है कि वह कांग्रेस को अलग छवि देने की इच्छा और शक्ति दोनों ही रखते हैं।

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जहां तक मल्लिकार्जुन खड्गे की बात है तो वह पुराने कांग्रेसी हैं। खड्गे के बारे में कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि गांधी परिवार की ओर से उन्हें एक दिन पहले ही नामांकन दाखिल करने का निर्देश मिला क्योंकि अशोक गहलोत को चुनाव लड़ाने की योजना रद्द कर दी गयी थी। खड्गे चुनाव नहीं लड़ने वाले थे इस बात की पुष्टि खुद दिग्विजय सिंह ने यह कह कर की है कि वह अपने लिये नामांकन पत्र लेने के बाद जब खड्गे से मिले थे और कहा था कि आप चुनाव लड़ रहे हैं तो मैं नहीं लड़ूंगा। इस पर खड्गे ने कहा था कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन शुक्रवार सुबह तक बाजी पलट चुकी थी।

जहां तक खड्गे के परिचय की बात है तो आपको बता दें कि एसएम कृष्णा जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे तब खड्गे कर्नाटक के गृह मंत्री रहे हैं। उन्होंने कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष पद भी संभाला है। वह मनमोहन सरकार में रेल और श्रम मामलों के कैबिनेट मंत्री रहे हैं। खड्गे गांधी परिवार के इतने विश्वस्त हैं कि गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा से कार्यकाल समाप्त होने के बाद तमाम वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर खड्गे को विपक्ष का नेता बनाया गया था। यही नहीं नेशनल हेराल्ड की जिम्मेदारी भी उन्हें दी गयी। इसके अलावा जिस भी राज्य में पार्टी पर संकट मंडराता है वहां पार्टी उन्हें ही मामला सुलझाने के लिए भेजती है। साथ ही 2019 का लोकसभा चुनाव हारने वाले खड्गे को पार्टी ने राज्यसभा का सदस्य बनाने में भी देरी नहीं की थी जबकि कई और हारे हुए नेता अब तक कहीं समायोजित किये जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। खड्गे के बेटे भी कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के दौरान मंत्री रहे हैं। खड्गे ने विश्वास जताया है कि वह यदि निर्वाचित होते हैं तो पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या वह पार्टी को गांधी परिवार की छाया से बाहर निकाल पाएंगे?

बहरहाल, वहीं जहां तक अशोक गहलोत की बात है तो वह राजस्थान के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी बचाने के चक्कर में एक झटके में राजा से रंक हो गये हैं। उन्होंने सोनिया गांधी के समक्ष सर झुका कर माफी मांग ली है लेकिन पार्टी आलाकमान उन्हें बख्शने के मूड़ में नहीं है। उनकी जगह राजस्थान को नया मुख्यमंत्री मिलने जा रहा है यह एकदम तय है। गहलोत यदि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहते तो पायलट भी गहलोत को अब मुख्यमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते हैं। ऐसे में किसी तीसरे व्यक्ति की लॉटरी लगना तय है।

-नीरज कुमार दुबे

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