उप्र पुलिस की नाकामियों के लिए सरकारें भी जिम्मेदार
जब सरकारें खाकी वर्दी को अपनी जागीर की तरह इस्तेमाल करेंगी, उनकी अच्छाई−बुराई, भ्रष्टाचार, कर्तव्यहीनता की तरफ से आंखें मूंदी रहेंगी, उनसे (पुलिस) सही−गलत काम करायेंगी तो पुलिस वाले तो अपनी जिम्मेदारियों से विमुख होंगे ही।
अगर उत्तर प्रदेश पुलिस दशकों से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन नहीं कर पा रही है तो उसके लिये तमाम सरकारें भी जिम्मेदार हैं। जब सरकारें खाकी वर्दी को अपनी जागीर की तरह इस्तेमाल करेंगी, उनकी अच्छाई−बुराई, भ्रष्टाचार, कर्तव्यहीनता की तरफ से आंखें मूंदी रहेंगी, उनसे (पुलिस) सही−गलत काम करायेंगी तो पुलिस वाले तो अपनी जिम्मेदारियों से विमुख होंगे ही। उत्तर प्रदेश की जनता का यह दुर्भाग्य है कि यहां का पुलिस महकमा जनता नहीं, नेताओं के इशारे पर और अक्सर उनके ही लिये कदमताल करता है। चौराहों पर कानून को ठेंगा दिखाकर दौड़ने वाले वाहनों और सड़क पर अतिक्रमण करने वालों से दस−बीस रूपये की वसूली से शुरू होने वाला पुलिसिया भ्रष्टाचार आगे पुलिस चौकी−थानों, सी0ओ0 से होता हुआ ज्यों ज्यों आगे बढ़ता है, उसकी विकरालता भी बढ़ती जाती है। जहां लाखों रूपये खर्च करके थानेदार को मनपंसद थाना, वरिष्ठ अधिकारियों को जिले में पोस्टिंग मिलती हो, वहां अपराध कैसे नियंत्रण होंगे। यह यक्ष प्रश्न है। ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री या उनके मातहत काम करने वाले लोगों को हकीकत पता नहीं है, लेकिन जब कोई दुस्साहिक घटना होती है तभी सरकार की नींद खुलती है। जैसा की बुलंदशहर में हाईवे पर माँ−बेटी के साथ सामूहिक दरिंदगी की घटना के बाद देखने में आ रहा है।
सीएम ट्वीट से लेकर अधिकारियों की क्लास तक ले रहे हैं। लोकसभा और राज्यसभा में भी बड़ी-बड़ी तकरीरें हो रही हैं, लेकिन तमाम दलों के नेताओं को हमेशा की तरह पीड़ित माँ−बेटी के दर्द से अधिक चिंता अपनी सियासत चमकाने की है। आला अधिकारी सफाई देने में लगे हैं। हर तरफ हड़कम्प मचा हुआ है। एसएसपी समेत सात पुलिस वालों को निलंबित कर दिया गया है, लेकिन सब सामयिक है। कुछ दिनों बाद न मीडिया को याद रहेगा न सरकार और हुक्मरानों को। निलंबित पुलिस वाले कब बहाल हो जायेंगे किसी को पता भी नहीं चलेगा। रह जायेगी तो बस परिवार की बेबसी, जिसने तीन माह के भीतर न्याय नहीं मिलने पर सामूहिक आत्महत्या की चेतावनी दी है लेकिन पुलिस ढीला−ढाला रवैया अख्तियार किये हुए है जिससे लगता है कि जांच सही दिशा की ओर नहीं बढ़ रही है। पुलिस के हाकिम ने जिन तीन लोगों की पहचान आरोपियों के तौर पर की थी, उसमें से दो आरोपियों को उनके मातहत काम करने वाली पुलिस ने आरोपी ही नहीं माना, जब मीडिया ने इस पर सवाल खड़ा किया तो पूरे अमले ने चुप्पी साध ली।
लापरवाही की बात में दम है, क्योंकि सीएम के ट्वीट से पहले यही सब तो हो रहा था। पीड़ित पक्ष को पुलिस गंदे−गंदे, उलटे−सीधे सवालों से टार्चर कर रही थी। यह दुखद है कि उत्तर प्रदेश में अपराध का ग्राफ काफी ऊंचा है लेकिन इससे भी ज्यादा दुख की बात यह है कि महिलाओं की इज्जत यहां काफी सस्ती हो गई है। शायद ही कोई ऐसा दिन जाता होगा जब नाबालिग लड़की से लेकर 60 साल की वृद्धा तक के साथ बलात्कार की खबर अखबारों में सुर्खिंया न बनती हों। उस पर सीएम अखिलेश यादव को मलाल इस बात का है कि यूपी की कोई भी घटना पूरे देश में हेडलाइन बन जाती है। अखिलेश नहीं सोचते हैं कि प्रदेश में बलात्कार, हत्या, लूट, सांप्रदायिक दंगे और दलितों के साथ होती अपराधिक वारदातों की बढ़ती घटनाओं के चलते उत्तर प्रदेश का एक दहशत से भर देना वाला चेहरा देश−दुनिया के सामने जा रहा है। सबसे दुखद यह है कि नागरिकों के खिलाफ हो रहे अपराधों में पुलिस, नेता, मंत्री और खुद सरकार भी शामिल हो रही है।
हाईवे पर गैंग रेप की शिकार महिलाओं के परिवार ने किसी तरह की सरकारी आर्थिक सहायता लेने से इंकार कर दिया है। वह सिर्फ इंसाफ चाहते हैं। सरकार को समझना होगा कि बलात्कार सिर्फ कानून में दर्ज एक अपराध भर नहीं है, बल्कि इसका संबंध मानसिकता से भी है जिसे चंद नोटों से खरीदा−बेचा नहीं जा सकता है। हाईवे की घटना बताती है कि अपराधियों में न तो पुलिस का खौफ है, न कानून का। आखिर ऐसा कैसे संभव है कि बदमाशों का एक गिरोह राष्ट्रीय राजमार्ग से एक परिवार को बंदूक की नोक पर बंधक बना ले और अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देता रहे और पुलिस को कई घंटे तक खबर न लगे? प्रदेश के एक पूर्व प्रमुख सचिव ने सही ही कहा है कि पुलिस जब तक सिर्फ कागजों पर मुस्तैद या गश्त करती रहेगी, तो ऐसी वारादातों से इन्कार नहीं किया जा सकता है। दरअसल अब समय आ गया है कि जब ऐसी घटनाओं की जांच हो तो उसके साथ−साथ पुलिस अधिकारियों के रवैये को लेकर भी जांच होनी चाहिए। ऐसा करके ही गैर−जिम्मेदार एवं लापरवाह अधिकारियों को सख्त संदेश दिया जा सकता है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी 'क्राइम इन इंडिया' के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में अपराध मामलों में पिछले छह सालों में बेहद तेजी आई है लेकिन साल 2013 में तो अपराधों के पंख ही लग गये। एक तरह से देश के सबसे बड़े राज्य के लिए यूपी के लिए साल 2013 काला साल ही रहा क्योंकि इस साल 2.26 लाख आपराधिक मामले दर्ज किए गए, जिसमें हत्या, बलात्कार, किडनैप जैसे संगीन अपराध शामिल हैं।
यदि प्रदेश में अपराध की स्थिति पर एक नजर डालें तो प्रदेश में सबसे ज्यादा महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक यूपी में रेप के मामलों में 55 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है। यही नहीं महिलाओं के खिलाफ सामाजिक अपराधों में भी खासी बढ़ोतरी दर्ज की गई है, इसमें दहेज, शारीरिक शोषण जैसे मामले तेजी से बढ़े हैं। अखिलेश सरकार प्रदेश में सामाजिक तानेबाने और सांप्रदायिक सौहार्द को भी बनाए रखने में पूरी तरह से नाकाम रही है। मुरादाबाद और सहारनपुर कांड की सांप्रदायिक वारदातों का असर आज भी प्रदेश में दिखाई देता है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक अखिलेश राज में सांप्रदायिक दंगों में बढ़ोत्तरी हुई है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक साल 2012 में 5,676 दंगों के मामले दर्ज किए गए, तो वहीं साल 2013 में यह आंकड़ा बढ़कर 6089 हो गया जबकि प्रदेश में भ्रष्टाचार भी कम नहीं है।
हाईवे पर कार से खींचकर माँ−बेटी के साथ सामूहिक दुष्कर्म की दुस्साहसिक वारदात रोंगटे खड़े कर देने वाली है। बदमाश इतने बेखौफ थे कि उन्होंने वारदात करने के बाद मौके पर ही आराम से शराब पी। प्रातः साढ़े तीन बजे तक अन्य परिवारजनों को बंधक बनाये रखा। बदमाशों के जाने के बाद पीड़ितों ने किसी तरह वारादत की जानकारी पुलिस को दी। पहले तो पुलिस आदतन मामले के दबाने की कोशिश में जुटी रही और फिर मेडिकल कराने के बाद पीड़ित परिवार को जबरन शाहंजहांपुर रवाना कर दिया गया। थाने में दी गई तहरीर में क्या लिखा है, पुलिस यह भी बताने को तैयार नहीं है। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता है कि प्रदेश में अपराध बेतहाशा बढ़ रहे हैं। अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। लूटपाट तो आम हो गई है। बदमाशों के हौसले इतने बढ़े हुए हैं कि पुलिस वालों को भी वह निशाना बना रहे हैं। व्यापारी भी असुरक्षित हैं। उनको तंग किया और उनका पैसा लूटा जा रहा है। जहां कहीं भी उत्तर प्रदेश की चर्चा होती है। कानून व्यवस्था की बदहाली और अपराध नियंत्रण पर पुलिस की नाकामी का मुद्दा प्रमुख होता है। अखिलेश सरकार ने चार वर्ष से अधिक का समय पूरा कर लिया है। अगले वर्ष के शुरूआती महीनों में चुनाव होने हैं। चुनावी मौसम में इस तरह की वारदातें खासकर महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं प्रदेश की आधी आबादी को सपा से विमुख कर सकती हैं।
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