अगर अन्याय हो रहा था तो पहलवान अब तक चुपचाप सब कुछ सह क्यों रहे थे?
दिल्ली के जंतर मंतर पर इकट्ठा हुए हरियाणा के पहलवानों ने भाजपा सांसद और कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप लगाये हैं। लेकिन क्या ये आरोप किसी खास मकसद से लगाये गये हैं? क्या इसके मूल में हरियाणा बनाम यूपी और कांग्रेस बनाम भाजपा की जंग है?
दिल्ली के जंतर मंतर पर हरियाणा के पहलवानों का आंदोलन खत्म हो गया है और भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह पर आरोपों की जांच के लिए खेल मंत्रालय ने समिति भी बना दी है। इसे चार हफ्ते में अपनी जांच रिपोर्ट देनी है। तब तक के लिए देश की सुर्खियां बना यह विवाद सतह पर भले ही थमा दिखे, लेकिन अंदरखाने में शह और मात के खेल चलते रहेंगे। खिलाड़ियों से उम्मीद की जाती है कि वे अखाड़े या मैदान में ही शह और मात देंगे, लेकिन इस समय कुश्ती महासंघ में शह और मात का खेल अखाड़े से ज्यादा अंदरखाने में चल रहा है। कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ दिल्ली के मशहूर जंतर-मंतर पर चले धरने में महिला और स्टार पहलवानों की उपस्थिति ने एक बारगी तो कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है।
हम जिस दौर में रह रहे हैं, उस दौर में सबसे आसान शिकार राजनीति और राजनेता होता है। इसलिए जब भी विवाद होता है, अनायास ही उस घटना और दुर्घटना से जुड़े राजनेता को आरोपी ही नहीं, एक तरह से दोषी मान लिया जाता है। चूंकि मीडिया अपने तकनीकी दबाव और हालात के चलते तात्कालिकता पर ही केंद्रति रहता है, इसलिए विशेषकर टेलीविजन मीडिया आरोपी को दोषी की तरह ना सिर्फ पेश करता है, बल्कि उसे दोषी ठहरा भी देता है। भारतीय कुश्ती महासंघ और पहलवानों के विवाद में भी ऐसा होता नजर आ रहा है।
लेकिन यह विवाद सिर्फ कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और पहलवानों के बीच का ही नहीं है। इसमें बरसों से चले आ रही उस मानसिकता का भी असर है, जिसकी मार देश के गरीब इलाकों विशेषकर पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग झेलते रहे हैं। कुछ साल पहले तक दिल्ली में जब भी किसी को नीचा दिखाया जाना होता था, उसे बिहारी बोल दिया जाता था। बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को आसानी से निशाना बनाया जाता था। उन्हें हीन भाव से देखा जाता था। दिल्ली की प्रादेशिक राजनीति पर अब भी इस मानसिकता का असर तारी है।
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भारतीय कुश्ती महासंघ की मौजूदा विवाद के पीछे भी यही मानस काम कर रहा है। चूंकि शारीरिक ताकत वाले खेलों पर परंपरा से पंजाब और हरियाणा का वर्चस्व रहा है, इसलिए कुश्ती पर अब भी इन्हीं इलाकों के पहलवानों का दबदबा है। पहले भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष हरियाणा के खानदानी कांग्रेसी सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा हुआ करते थे। उत्तर प्रदेश के गोंडा निवासी और भाजपाई ब्रजभूषण शरण सिंह ने उन्हें आमने-सामने की टक्कर में हराया था। इसलिए जैसे ही पहलवानों ने ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला, दीपेंद्र हुड्डा मोर्चा संभालते हुए पहलवानों के पक्ष में उतर गए। वैसे उन्हें इसमें दो-दो राजनीतिक मामले दिख रहे थे। वे कांग्रेसी हैं और भाजपा सांसद पर हमले का मौका उन्हें मिल गया, फिर चुनाव मैदान में मिली शिकस्त का बदला भी चुकाने का भी अवसर हाथ लग गया।
दीपेंद्र हुड्डा ने धरने पर बैठे पहलवानों के समर्थन में जो कहा, उसे देखना समीचीन होगा। उन्होंने कहा, ''ये कोई साधारण घटना नहीं है। खेल जगत के लिए यह एक भयंकर दुर्घटना है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई इंक्वायरी हो। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा था। आज वो नारा खोखला दिखाई दे रहा है। देश की बेटियों की भलाई के लिए सरकार तुरंत कार्रवाई करे। इस प्रकार के कांड के बाद भी सरकार अगर नहीं जागी तो कौन माता-पिता अपनी बेटियों को प्रोत्साहित करेगा।''
ऐसे में ब्रजभूषण शरण सिंह ने खुला जवाब तो नहीं दिया, लेकिन उनके सहयोगी संजीव सिंह ने ट्वीट करके जता दिया कि इस पूरे मामले के पीछे उत्तर प्रदेश बनाम हरियाणा की लड़ाई है। संजीव ने लिखा, ''धरने पर सिर्फ हरियाणा के चंद पहलवान ही बैठे हैं, क्योंकि ये पहलवान एक ही घराने और अखाड़े के हैं, जिनका संबंध कांग्रेस के सांसद दीपेंद्र हुड़्डा से है। दीपेंद्र हुड्डा हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लड़के हैं, जो बृजभूषण सिंह से कुश्ती संघ का चुनाव हार गए थे। हरियाणा में विधानसभा का चुनाव होने वाला है। मार्च में कुश्ती संघ का चुनाव होगा, इसलिए कांग्रेस पार्टी और उसके सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने बीजेपी को घेरने और दुष्प्रचार करने के लिए सांसद जी को निशाना बनाया है। अपने मंसूबे को सफल बनाने के लिए हरियाणा के कुछ पहलवानों को मोहरा बनाया है जो लगातार झूठ पर झूठ बोलकर देश की मीडिया और जनता को कांग्रेस के इशारे पर गुमराह कर रहे हैं।''
भारतीय कुश्ती संघ के सूत्र बताते हैं कि दरअसल हरियाणा के पहलवान और प्रकारांतर से कुश्ती महासंघ में सक्रिय हरियाणा लॉबी यह पचा नहीं पा रही है कि उसका नेतृत्व उत्तर प्रदेश के नेता के पास है। चूंकि ब्रजभूषण दबंग हैं और वे किसी के सामने जल्दी झुक नहीं सकते। इसलिए हरियाणा लॉबी ने उन्हें शिकस्त देने के लिए दूसरा मोर्चा खोला। महासंघ के सूत्रों का यह भी कहना है कि चूंकि ब्रजभूषण किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए हरियाणा के पहलवानों को उनके पिछले रिकॉर्ड के आधार पर वरीयता देने के हिमायती नहीं हैं और इस मुद्दे पर झुक भी नहीं रहे हैं, इसलिए हरियाणा लॉबी को अपनी सत्ता और पकड़ हाथ से निकलती दिख रही है। संभवत: इसलिए भी ब्रजभूषण के खिलाफ अभियान चलाया गया।
अक्सर खिलाड़ियों से जुड़े मामले में कोच और दूसरे खेल अधिकारियों पर यौन शोषण के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन ऐसे आरोपों की लोक स्वीकार्यता आरोपी की व्यक्तिगत पृष्ठभूमि पर भी निर्भर करती है। ब्रजभूषण पर ऐसा आरोप लगाकर खिलाड़ियों ने लगता है कि गलती कर दी है। क्योंकि दिव्या कामरान नामक पहलवान ने ही खुलकर इस आरोप का विरोध कर दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया संदेशों में कहा है कि दस वर्षों से वे शिविरों में हैं, लेकिन ऐसा मामला कभी नहीं सुना गया। ब्रजभूषण के विरोधी भी कह रहे हैं कि वे दबंगई दिखा सकते हैं, किसी को थप्पड़ मार सकते हैं, लेकिन वे यौन दुर्व्यवहार नहीं कर सकते। यहां एक सवाल यह भी उठता है कि अगर यौन शोषण हो रहा था तो ये स्टार पहलवान अब तक चुप क्यों रहे?
-उमेश चतुर्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)
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