अगस्ता मामले में रिश्वत का पैसा आखिर किसी को तो मिला होगा

कांग्रेस का कहना है कि रिश्वत नहीं ली, भाजपा आरोप लगा रही है कि कांग्रेस नेताओं ने रिश्वत ली जबकि इटली की अदालत में साबित हुआ है कि 4.4 करोड़ यूरो यानि 330 करोड़ रुपए की रिश्वत दी गई।

अगस्ता वेस्टलैंड मामले को लेकर देश का राजनीतिक माहौल एक बार फिर से गरम है। कहा जा रहा है कि यह कांग्रेस के लिए दूसरा बोफोर्स साबित हो सकता है। भाजपा इस मामले में इटली की एक अदालत के फैसले के आधार पर सीधे सोनिया गांधी पर हमलावर है और आरोप लगा रही है कि घूस का पैसा सोनिया और कांग्रेस के कई नेताओं तक पहुँचा है। जबकि सोनिया गांधी ने रिश्वत लेने के आरोपों से उन्हें और उनकी पार्टी को जोड़ने के प्रयासों को पूरी तरह से ‘आधारहीन’ करार देते हुए कहा है कि इस मुद्दे पर ‘घेरे जाने’ को लेकर वह ‘भयभीत’ नहीं हैं। सोनिया ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि वह चरित्र हनन की रणनीति के तहत काम कर रही है और असल मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहती है।

मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि इटली के उच्च न्यायालय में एक पत्र के माध्यम से, इस सौदे के बिचौलिये क्रिश्चियन मिशेल ने बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष इस सौदे की ‘‘मुख्य लाभार्थी’’ हैं। हालांकि मीडिया से बातचीत में मिशेल ने कहा है कि वह कभी किसी गांधी से नहीं मिला। इतालवी अदालत में अगस्ता वेस्टलैंड मामले में जो फैसला आया है उसमें कांग्रेस के पांच शीर्ष राजनीतिज्ञों और पूर्व वायुसेना अध्यक्ष एस.पी. त्यागी का नाम बताया जा रहा है। कथित रूप से फैसले में चार बार सिग्नोरा गांधी का नाम आया है। इतालवी भाषा में सिग्नोरा का अर्थ श्रीमती होता है। हालाँकि फैसले में किसी भी कांग्रेस नेता के रिश्वत लेने की बात नहीं कही गयी है लेकिन दस्तावेजों में यह बात जरूर कही गयी कि इस करार को पूरा करवाने के लिए सोनिया गांधी, अहमद पटेल, आस्कर फर्नांडिस जैसे बड़े नेता माहौल बना सकते थे। इस करार पर बातचीत वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई थी जिसे 2010 में तब मंजूरी प्रदान की गयी जब वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी देश के रक्षा मंत्री थे।

कांग्रेस का कहना है कि उसके नेताओं ने रिश्वत नहीं ली, भाजपा आरोप लगा रही है कि कांग्रेस नेताओं ने रिश्वत ली जबकि इटली की अदालत में साबित हुआ है कि मिशेल को इस काम के लिए 4.4 करोड़ यूरो यानि 330 करोड़ रुपए की रिश्वत दी गई। अब सवाल उठता है कि जब रिश्वत का पैसा कंपनी ने दिया है तो वह किसी को तो गया होगा। माना जा रहा है कि रिश्वत की रकम मिशेल द्वारा कराये गये काम की अपेक्षा बहुत ज्यादा थी। आरोप है कि मिशेल ने जिन भारतीय अधिकारियों के साथ मिलकर काम किया उनको रिश्वत की रकम में से हिस्सा दिया। इंटरपोल ने 2015 में भारत के आग्रह पर मिशेल के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया था। मिशेल के खिलाफ इटली में भी गिरफ्तारी वारंट निकला हुआ है। बताया जा रहा है कि वह दुबई में है। जहाँ से उसने एक साक्षात्कार में कहा है कि उसने भारतीय प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर मामले की पूरी जानकारी दी है। उसने प्रस्ताव दिया है कि यदि उसे भारत में गिरफ्तारी नहीं होने का आश्वासन मिले तो वह पूछताछ के लिए उपलब्ध हो सकता है।

इस मामले में विवाद तब सामने आया था जब 2011-12 के दौरान इटली की अदालत में भारतीय नेताओं, नौकरशाहों और वायुसेना अधिकारियों को दलालों द्वारा 360 करोड़ रुपये की रिश्वत देने के आरोप लगे। इस मामले में फरवरी 2013 में फिनमेकानिका के सीईओ ओरसी और अगस्ता वेस्टलैंड के मुख्य कार्यकारी ब्रूनो स्पैग्नोलिनी इटली में गिरफ्तार कर लिये गये। इसके बाद भारतीय रक्षा मंत्रालय ने अगस्ता वेस्टलैंड को सभी भुगतान रोक दिये। इसके कुछ ही दिन बाद सीबीआई ने पूर्व भारतीय वायुसेना प्रमुख एस.पी. त्यागी और उनके तीन भतीजों, ओरसी तथा स्पैग्नोलिनी समेत नौ लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया। जनवरी 2014 में रक्षा मंत्रालय ने अगस्ता से किया गया सौदा रद्द कर दिया और उसकी एडवांस बैंक गारंटी को भुना लिया। कुछ समय बाद इटली की अदालत ने ओरसी तथा स्पैग्नोलिनी को हेराफेरी के लिए दो साल की सजा सुनाई लेकिन भ्रष्टाचार के आरोप हटा दिये। इस मामले ने इस साल अप्रैल में तब नई करवट ली जब मिलान की अपीलीय कोर्ट ने फैसला बदलते हुए ओरसी तथा स्पैग्नोलिनी को चार-चार साल की सजा सुनाई। अदालत ने कथित रूप से यह भी कहा कि तत्कालीन संप्रग सरकार ने अभियोजनकर्ताओं को महत्वपूर्ण दस्तावेज नहीं मुहैया कराये।

इधर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने कहा है कि मिशेल के पत्र का अंग्रेजी में अनुवाद कराया जा रहा है और चूँकि इस मामले में कई वीआईपी लोगों का नाम शामिल है इसलिए वह इस बारे में संसद में ही कुछ बता सकते हैं। पर्रीकर ने कांग्रेस के उस दावे को भी गलत बताया है जिसमें कहा जा रहा है कि संप्रग सरकार ने अगस्ता वेस्टलैंड को काली सूची में डाल दिया था। पर्रीकर ने कांग्रेस को उस आदेश की प्रति दिखाकर अपना दावा सही साबित करने की चुनौती दी है।

दूसरी ओर कांग्रेस का आरोप है कि प्रधानमंत्री और इतालवी प्रधानमंत्री की मुलाकात में बनी सहमति के बाद सरकार ने दो इतालवी मरीनों को छोड़ने के लिए इटली की सरकार से 'समझौता' किया है और इस मामले में जानबूझकर कांग्रेस को फंसाया जा रहा है। कांग्रेस के आरोप के बाद विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश दौरे पर इतालवी प्रधानमंत्री से कोई मुलाकात नहीं हुई।

वैसे सच क्या है यह शायद ही कभी सामने आ पाए क्योंकि इससे पहले भी हाईप्रोफाइल मामलों या बड़े बड़े घोटालों की जांच के लिए बने आयोगों की या तो रिपोर्टें आई ही नहीं या फिर आईं भी तो उन पर राजनीति से प्रेरित होने का आरोप लगा दिया गया। फिलहाल तो इस मामले में कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। भाजपा तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी से पूछ रही है कि वह बताएँ कि किस किस ने रिश्वत ली तो कांग्रेस का आरोप है कि वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में कंपनी को लाभ पहुँचाने के लिए नियम बदले गये।

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