आर्थिक मोर्चे पर भारत का सुनहरा भविष्य

Indian Economy
Prabhasakshi

आखिर भारत में यह बदलाव क्यों हो रहा है और भारतीय अर्थव्यस्था इस तरह अग्रसर क्यों है? इसकी मोटी वजह यहां तेजी से विकसित हो रहा बुनियादी ढांचा है। बुनियादी ढांचे में भारत में निवेश लगातार बढ़ रहा है। इसके साथ ही भारत में निर्माण गतिविधियां भी तेज हैं।

इसे संयोग ही कहेंगे कि जिस समय भारतीय चुनाव अभियान के दौरान विपक्षी दल महंगाई को बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे थे, ठीक उसी समय संयुक्त राष्ट्र संघ साल 2024 में भारत में मुद्रास्फीति साढ़े चार फीसद रहने का अनुमान जता रहा था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह अनुमान भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट में जताया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के इस अनुमान रिपोर्ट में भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 6.9 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है।

भारत के लिए निश्चित तौर पर यह अनुमान सुखद और उत्साहित करने वाला है। इसकी वजह यह है कि दुनिया की विकसित कही जाने वाली ज्यादातर पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में लगातार गिरावट जारी है। पश्चिमी मुल्कों की अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि दर कमजोर होती जा रही है। पिछले कुछ वर्षों में पड़ोसी चीन की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही थी। लेकिन वह अब गिरने लगी है। विश्व बैंक ने मौजूदा साल में उसकी अर्थव्यवस्था में महज साढ़े चार प्रतिशत की बढ़ोत्तरी का अनुमान लगाया था, हालांकि अब उसमें उसने थोड़ा सुधार करके उसे 5.2 प्रतिशत की बढ़त का अनुमान लगाया गया है।

इसे भी पढ़ें: भारत सहित एशियाई देश वर्ष 2024 में विश्व की अर्थव्यवस्था में देंगे 60 प्रतिशत का योगदान

आखिर भारत में यह बदलाव क्यों हो रहा है और भारतीय अर्थव्यस्था इस तरह अग्रसर क्यों है? इसकी मोटी वजह यहां तेजी से विकसित हो रहा बुनियादी ढांचा है। बुनियादी ढांचे में भारत में निवेश लगातार बढ़ रहा है। इसके साथ ही भारत में निर्माण गतिविधियां भी तेज हैं। यह भी सच है कि भारत के लिए यहां की बेतहाशा बढ़ी जनसंख्या भी चुनौती बन रही है। लेकिन इसके साथ ही कटु सत्य यह है कि बढ़ती जनसंख्या के चलते उपभोक्ता बाजार तेजी से बढ़ता है। उसमें खपत के लिए निर्माण और उत्पाद का दायरा बढ़ता है। यह पूरी प्रक्रिया आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाती है और इस तरह जीडीपी में बढ़ोत्तरी होती है। 140 करोड़ से अधिक की आबादी के साथ भारत दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बन गया है। इसकी वजह से भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार तैयार है। इस बाजार में खपत के लिए तमाम तरह के उत्पादों की जरूरत बढ़ी है। जनसंख्या, उत्पादन, खपत और बाजार की कड़ियां इस तरह भारत में तेजी से बढ़ रही हैं। इसलिए भारतीय जीडीपी में तेजी आ रही है। 

बाजार लाख बड़ा हो, अगर सरकारी नीतियां उपभोक्ता, उत्पादक, खरीददार और विक्रेता के बीच संतुलन के साथ ही नवोन्मेष को बढ़ावा देने वाली नहीं होती तो आर्थिक गतिविधियां तेज नहीं होती। इस संदर्भ में मोदी सरकार को भी श्रेय दिया जाना चाहिए, जिसने भारतीयता की सोच के साथ देसी दुनिया को वैश्विक आधारों से जोड़ने के साथ ही भारत को उत्पादन का हब बनाने वाली नीतियों को बढ़ावा दिया है। नीतियों का ही असर है कि भारत में साल 2014 की 350 की तुलना में इन दिनों एक लाख तीस हजार स्टार्ट अप हैं। जिनमें यूनिकॉर्न यानी एक अरब की पूंजी वाले स्टार्टअप की संख्या सौ से ज्यादा है। इसके साथ ही सात में पहली बार जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवा कर से वसूली 2 लाख करोड़ रुपये के पार हो गई है। मौजूदा साल के अप्रैल में कुल जीएसटी वसूली 2.1 लाख करोड़ रुपये रही, जो साल 2023 के अप्रैल के मुकाबले 12.4 फीसद ज्‍यादा है। इसमें सबसे ज्‍यादा योगदान घरेलू लेन-देन का रहा, जिसमें पिछले साल के मुकाबले 13.4 फीसद बढ़ गया। पिछले साल अप्रैल में सरकार को 1.87 लाख करोड़ रुपये की जीएसटी वसूली हुई थी।

वित्‍त मंत्रालय के एक मई को बताया कि रिफंड के बाद अप्रैल महीने की शुद्ध जीएसटी वसूली 1.92 लाख करोड़ रुपये रही है। जो इसी पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 17.1 प्रतिशत ज्‍यादा है। साल 2017 में जबसे जीएसटी कानून लागू हुआ है, हर साल इसमें बढ़ोत्तरी होती जा रही है। जीएसटी लागू होने के फौरन बाद 2017-18 में जहां औसत जीएसटी एक लाख करोड़ रुपये से कम रही, वहीं, कोरोनाकाल के बाद 2020-21 से यह लगातार बढ़ रही है। साल 2022-23 में जीएसटी वसूली औसतन 1.51 लाख करोड़ रुपये हर महीने रही है। यह बढ़ोत्तरी ही बताने के लिए काफी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था किस कदर बढ़ रही है।

चार जून को आने वाले चुनाव नतीजों के बाद उम्मीद की जा रही है कि एक बार फिर मोदी सरकार ही आएगी। विपक्षी दलों ने अपनी नीतियों में आर्थिक मोर्चे पर कुछ समाजवादी और वाम वैचारिकी प्रेरित योजनाएं लाने का वादा जरूर किया है। लेकिन यह भी सच है कि भारतीय अर्थव्यवस्था जिस तरह आगे बढ़ चुकी है, उसमें उनके लिए भी कुछ ज्यादा करने की गुंजाइश नहीं रहेगी। उन्हें भी मौजूदा आर्थिक चलन के ही मुताबिक आगे बढ़ना होगा। भले ही वे जीएसटी को कम करने या उसका ढांचा सुधारने का वादा करते रहे हों, लेकिन उनके लिए भी आमूलचूल बदलाव ला पाना आसान नहीं होगा। क्योंकि इस दिशा में भारतीय अर्थव्यवस्था बेहद आगे बढ़ चुकी है।

भारत सदियों से कृषि संस्कृति वाला देश है। भारत की दो तिहाई आबादी सीधे खेती-किसानी से जुड़ी है। भारतीय खेती मानसून की बेहतरी पर ज्यादा निर्भर है। मौसम विभाग ने अनुमान जताया है कि आने वाले साल में मानसून सामान्य रहेगा। इसका मतलब यह है कि अगले साल भी खेती - किसानी में बेहतर स्थिति रहेगी। उत्पादन बढ़ेगा और इसकी वजह से भारत के अन्न भंडार भरे रहेंगे। इसकी वजह से ग्रामीण इलाकों में खरीद में तेजी आएगी। मानसून बेहतर रहता है तो भारत के दूर- दराज के बाजारों में भी आर्थिक गतिविधियां तेज रहती हैं। इसकी वजह से भी भारतीय आर्थिकी तेजी से आगे बढ़ती रहेगी।

भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा, संस्कृति और सभ्यता भी दुनिया की नजरों में और आकर्षक हो सकती है। इसकी वजह से नए तरह की उत्पादकता भी भारत में दिख सकती है। सभ्यता, संस्कृति, तीर्थाटन और पर्यटन के साथ ही भारतीय पारंपरिक चिकित्सा व्यवस्था और योग भारत की अनुपम संपत्ति हो सकते हैं। इसे देखते हुए भारत की मौजूदा सरकार ने देश के स्वास्थ्य ढांचा को पहले की तुलना में बेहतर करना शुरू किया है। कोरोना काल के हालात की वजह से पारंपरिक भारतीय चिकित्सा व्यवस्था, भारतीय ज्ञान परंपरा, योग आदि की भी दुनिया में मांग बढ़ी है। दुनिया इनकी ओर उम्मीदभरी नजरों से देख रही है। इनकी वजह से भारत में विदेशों से धन भी आ रहा है। भारतीय तीर्थाटन की परंपरा को राम मंदिर, महाकाल मंदिर और विश्वनाथ कारीडोर जैसे नए मंदिरों और धार्मिक केंद्रों की ओर दुनियाभर से आ रहे श्रद्धालुओं की वजह से बुनियादी ढांचे और पर्यटन गतिविधियां बढ़ रही हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था को इनके जरिए भी तेजी मिलने का अनुमान जताया जा रहा है। भारतीय पर्यटन केंद्रों की अभी तक पूरी तरह से वैश्विक पहचान और ध्यान नहीं मिल पाया है। इस क्षेत्र में अभी काम किया जाना बाकी है। नए भारत में इस दिशा में भी सोचा जाना होगा। जब इनकी ओर ध्यान जाएगा, तो वैश्विक यात्रियों और सैलानियों की आवक तेज होगी और भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में इसकी भी बड़ी भूमिका होगी। 

इतिहास में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता रहा। इकबाल ने सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा गीत लिखकर भारत की इस समृद्ध परंपरा की महत्ता को ही दिखाने की कोशिश की है। प्राचीन काल में भारत की हैसियत विश्व गुरू की थी। भारत एक बार फिर उसी दिशा में आगे बढ़ने की ओर है। दुनियाभर में फैला भारतीय डायस्पोरा भी भारत को सालाना सौ अरब डॉलर से ज्यादा की रकम घर भेज रहा है। साल 2023 में यह रकम सवा सौ अरब डॉलर थी। जाहिर है कि सब मिलकर भारत को समृद्ध कर रहे हैं और भारतीय जीडीपी को बढ़ावा दे रहे हैं। दस साल से देश संभाल रही मोदी सरकार इसे और तेज करना चाहती है। यही वजह है कि पहले सौ दिन का एजेंडा तैयार कर लिया गया है। आने वाली सरकार पर संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमानों से कहीं अधिक तेज प्रदर्शन का दबाव रहेगा। क्योंकि मौजूदा चुनावों में बेरोजगारी भी बड़ा मुद्दा रही है। मौजूदा आर्थिकी के मुताबिक, अगर जीडीपी बढ़ेगी तो रोजगार भी बढ़ेगा। जाहिर है कि नई सरकार नहीं चाहेगी कि इस मुद्दे पर वह कठघरे में खड़ा हो।  

-उमेश चतुर्वेदी

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़