अनिवार्य है, कृतघ्न तुर्किए को कठोर संदेश देना

मोदी सरकार ने भी तुर्की को सबक सिखाने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिये हैं। लेकिन जिस तरह देशवासियों ने स्वत: तुर्की और अजरबैजान का बॉयकॉट करने की मुहिम छेड़ी है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए, वो कम है।
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को 26 निर्दोष हिन्दू पर्यटकों की नृशंस हत्या के उत्तर में शुरू ऑपरेशन सिंदूर पाक समर्थित आतंकवाद पर निर्णायक प्रहार बन गया। चार दिल चले ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान की सारी हेकड़ी निकल गई, और वो सीजफायर की भिक्षा मांगने लगा। भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर अवश्य हो गया है, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के बीच तुर्की खासा सुर्खियों में रहा और उसका पाकिस्तान प्रेम खुलकर सामने आ गया।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन, तुर्किए और अजरबैजान का वास्तविक चेहरा अखिल विश्व के समक्ष अनावृत हो गया। पाकिस्तान ने इस दौरान भारत पर जो ड्रोन और मिसाइल दागे वो ‘मेड इन’ चाइना और तुर्किए में बने थे। पाकिस्तान ने जो चीन की निकृष्ट मिसाइल और तुर्किए के ड्रोन भारत पर हमले में प्रयोग किये, उनके अवशेष सैन्य बलों के पास हैं। चीन और तुर्किए अब इन प्रमाणों को नकार नहीं सकता है।
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सीजफायर के बाद पाकिस्तान के मित्र तुर्किए के विरुद्ध भारत में विरोध शुरू हो गया है और सोशल प्लेटफार्म पर बॉयकाट तुर्की मुहिम जोर पकड़ने लगी है। भारतीय टूरिस्ट तुर्किये और अजरबैजान का बॉयकॉट कर रहे हैं। मोदी सरकार ने भी तुर्की को सबक सिखाने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिये हैं। लेकिन जिस तरह देशवासियों ने स्वत: तुर्की और अजरबैजान का बॉयकॉट करने की मुहिम छेड़ी है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए, वो कम है। भारतीय नागरिकों के इस भाव का प्रभाव तुर्किए के अरबों डॉलर के व्यापार पर पड़ने वाला है।
तुर्किये ‘एहसान फरामोशी’ का सबसे कलंकित उदाहरण हो सकता है। जब फरवरी, 2023 में तुर्किए में 7.8 तीव्रता का भूकंप आया था, लगभग चालीस हजार लोग मारे गए थे, इमारतें ‘मिट्टी-मलबा’ हो गई थीं, तब भारत ने मदद का पहला हाथ बढ़ाया था। भारत ने भूकंप के अलावा भी तुर्किये की कई बार सहायता की है, लेकिन जब मौका आया तो उसने कृतघ्नता ही दिखाई और भारत के शत्रु के पक्ष में खड़ा हो गया। 2009 में तुर्किये ने पहली नैनो सैटेलाइट आईटीयूपीसेट-1 बनाई, जिसे स्पेस में नई टेक्नोलॉजी पर रिसर्च करना, पृथ्वी की तस्वीरें लेना और आंकड़ा एकत्र करने के लिए भेजा जाना था। इस लॉन्च में भारत ने तुर्किये की मदद की थी। इस सबके उपरांत तुर्किये सदैव पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है।
तुर्किये ने 2019 में भारत के धारा 370 हटाने का भी विरोध किया था। इसके बाद से लगातार तुर्किये यूनाइटेड नेशन जनरल असेंबली यानी यूएनजीए में कश्मीर का मुद्दा उठाता आया है। पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में 6-7 मई की रात भारत ने ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च किया, तो तुर्किये खुलकर पाकिस्तान के साथ दिखा। कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि तुर्किये ने पाकिस्तान को करीब 350 ड्रोन और उन्हें चलाने के लिए ऑपरेटर भेजे। 4 मई को तुर्किये ने नौसेना का युद्धपोत टीसीजी बुयुकडा (एफ-512) पूरे बेड़े के साथ पाकिस्तान के कराची पोर्ट पर भेज दिया। तुर्किए ने पाकिस्तान के पहलगाम हमले की अंतरराष्ट्रीय जांच की अनुशंसा का भी समर्थन किया। 10 मई को सीजफायर के बाद शहबाज शरीफ ने एर्दोगन को मदद करने के लिए शुक्रिया अदा किया।
तुर्किए के पाकिस्तान का साथ देने के बाद भारतीय पर्यटकों ने धड़ाधड़ तुर्की की यात्राएं कैंसिल करवानी शुरू कर दी है। भारतीय पर्यटकों को आज की तारीख में सिर्फ एक आम ट्रैवलर मानना बहुत बड़ी गलती है। क्योंकि ग्लोबल टूरिज्म इंडस्ट्री के लिए भारतीय पर्यटक एक आर्थिक स्तंभ बन चुके हैं। साल 2023 में भारतीय पर्यटकों ने दुनिया के अलग अलग हिस्सों में घूमने में 18 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए। ऐसे में अगर भारतीय पर्यटक किसी देश का बहिष्कार करते हैं तो वो सिर्फ एक सोशल मीडिया पर चलाया गया ट्रेंड नहीं होता है, बल्कि एक भूकंप होता है।
पिछले साल जनवरी में मालदीव के कुछ मंत्रियों ने प्रधानमंत्री मोदी के लक्षद्वीप दौरे के दौरान अभद्र भाषा का प्रयोग किया था। जिसके बाद भारत और मालदीव के बीच विवाद काफी बढ़ गया। भारतीय पर्यटकों ने मालदीव का बहिष्कार शुरू कर दिया, जिसने कुछ ही समय में मालदीव के नेताओं को घुटने टेकने के लिए विवश कर दिया। मालदीव की अर्थव्यवस्था, जिसमें टूरिज्म सेक्टर का 28 प्रतिशत योगदान है, उसे गहरा धक्का लगा था, लिहाजा अब बारी तुर्की की है।
पिछले कुछ सालों में भारी संख्या में भारतीय पर्यटकों ने घुमने के लिए तुर्की को चुना है। साल 2023 में करीब 2.74 लाख भारतीय नागरिक घूमने के लिए तुर्की गये थे। जबकि 2024 में तुर्की जाने वाले भारतीय पर्यटकों का ये आंकड़ा बढ़कर करीब 3.5 लाख पहुंच गया। भारतीय लोगों के बीच शादी करने, हनीमून मनाने और फैमिली ट्रिप्स के लिए तुर्की तेजी से लोकप्रिय हो रहा था। लेकिन 2025 में तुर्की ने पाकिस्तान का समर्थन करके भारतीयों को अपने विरूद्ध कर लिया है। इसके अलावा भारत जैसे देशों के पर्यटकों का बहिष्कार सिर्फ आर्थिक नहीं, राजनीतिक संदेश भी होता है।
पर्यटन के अलावा भारतीय बाजारों में तुर्की से आयातित सेब की बिक्री पर भी प्रभाव पड़ा है। भारतीय कारोबारियों ने अब ईरान, अमेरिका और न्यूजीलैंड से सेब खरीदना शुरू कर दिया है। सेब उत्पादन करने वाला संघ, जो पहले से ही विदेशों से मंगाए जाने वाले सेब की वजह से नाराज रहता था और तुर्की के सेब पर प्रतिबंध लगाने की मांग करता रहता था, वो अब प्रसन्न है। इस वित्त वर्ष में तुर्की से 1 लाख 60 हजार टन सेब खरीदे गये थे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत तुर्की के साथ व्यापारिक संबंध समाप्त करने की तैयारी मे। भारत तुर्की से दाल, तिलहन और स्टील जैसी चीजें खरीदता है। दोनों देशों के बीच व्यापार को 20 अरब डॉलर तक ले जाने की योजना थी। लेकिन अब बदले वातावरण में यह संबंध पूर्णत समाप्त हो सकते हैं। 15 मई केंद्र सरकार ने तुर्किये की कंपनी सेलेबी एविएशन की सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी। यह दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु सहित प्रमुख भारतीय हवाई अड्डों पर हाई सिक्योरिटी ऑपरेशन संभालती है। भारत के प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों ने भी तुर्की से एकेडमिक समझौते रद्द कर दिये हैं। इनमें जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी यानी जेएनयू, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, आईआईटी रुड़की, शारदा विश्वविद्यालय और लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी शामिल हैं।
भारत सरकार ने व्यापार के अलावा कूटनीति के मोर्चे पर भी तुर्किये को बड़ा सबक सिखाने का मन बना लिया है। तुर्किये को सबक सिखाने के लिए भारत उसके अंदर के मुद्दों को बाहर लाएगा। तुर्किये में लगातार बढ़ रही मानवाधिकार हनन की घटनाओं को भारत यूनाइटेड नेशन्स के समक्ष रख सकता है। इसके अलावा ‘साइप्रस का मुद्दा' तुर्किये की सबसे बड़ी कमजोरी बन चुका है। तुर्किए और साइप्रस के बीच की जंग दशकों पुरानी है, इसके बावजूद तुर्किये इसे समाप्त नहीं कर पा रहा। भारत इस मुद्दे के सहारे तुर्किये को सबक सिखा सकता है। येन-केन-प्रकारेण, तुर्किये ने इस्लामी देशों का ‘खलीफा’ बनने की भ्रांति पाल रखी है, इसलिए उसकी हेकड़ी तोड़ना अत्यावश्यक है।
तुर्किए को सबक सिखाना इसलिए भी अहम है क्योंकि अखिल विश्व को यह संदेश देना चाहिए कि भारत के शत्रु का जो भी साथ देगा, उसे भारत शत्रु की श्रेणी में ही रखेगा। व्यापार, हानि—लाभ और कूटनीति अपने स्थान पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में कहा जाए तो हमारे दिल में 'नेशन फर्स्ट' का भाव सर्वोच्च होना चाहिए। केवल तुर्किए ही नहीं, हमें हर उस देश और व्यक्ति का बॉयकॉट करना चाहिए या हमारे भीतर शत्रु बोध होना चाहिए, जो हमारे देश के प्रति शत्रुता रखता हो, शत्रुता का भाव और विचार रखता हो और जो हमारे शत्रु से मित्रता निभाता हो।
- डॉ. आशीष वशिष्ठ
(राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार)
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