यह मोदी की लहर नहीं, मुलायम के अपमान की लहर थी

इन पांच राज्यों के चुनाव ने मोदी की पगड़ी में कई मोरपंख टांक दिए हैं। अब देखना यही है कि इस मुकद्दर के सिकंदर, मोदी के अगले ढाई साल, पिछले ढाई साल के मुकाबले कितने बेहतर होंगे।

उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जितनी जर्बदस्त जीत हुई है और अखिलेश व मायावती की जितनी जबर्दस्त हार हुई है, इसकी कल्पना इन तीनों को भी नहीं थी। किसी एक्जिट पोल वाले को भी नहीं। मायावती ने अपनी हार से यह कहकर पिंड छुड़ा लिया कि यह ईवीएम मशीनों (इलेक्ट्रिक वोटिंग मशीनों) का चमत्कार है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने भी इन्हीं मशीनों की आड़ ले ली। अखिलेश ने कह दिया कि आरोप लगा है तो जांच होनी चाहिए। लेकिन अगर इस आरोप में ज़रा भी दम हो तो इसके प्रमाण पेश किए जाने चाहिए वरना बेहतर यही होगा कि बसपा और सपा के नेता विनम्रतापूर्वक अपनी हार स्वीकार करें।

यदि मोदी ने चुनाव आयोग के जरिए मशीनों में धांधली करवा कर अपने वोट बढ़वा लिये तो पंजाब में क्यों नहीं बढ़वाए? पंजाब में भाजपा इतनी बुरी तरह क्यों हार गई? कुछ नेताओं ने मुझसे कहा कि उप्र और उत्तराखंड की वोटिंग मशीनों का स्क्रू जरा ज्यादा जोर से कस दिया गया था। इसीलिए इन दोनों राज्यों में भाजपा को आशा से कहीं ज्यादा सीटें मिल गईं लेकिन गोवा और मणिपुर में भाजपा का पेंचकस जरा संयम से घूमा। पंजाब में गल्ती से वह उल्टा घूम गया। वरना, भला भाजपा सरकार राहुल गांधी के नेतृत्व को डूबने से क्यों बचाती?

स्क्रू घुमाने की बात इसलिए भी परवान चढ़ गई कि टीवी चैनलों ने पूछा कि मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में भाजपा को थोक वोट कैसे मिले? इसलिए कि मशीन हिंदू-मुसलमान का भेदभाव करना नहीं जानती! ये तो हुई चुनावी गप-शप लेकिन मोदी की इस प्रचंड विजय का रहस्य क्या है, इस पर किसी भी चैनल ने गहरे में उतरने की कोशिश नहीं की। इस विजय का सबसे बड़ा रहस्य, जो मुझे दिखाई देता है, वह यह है कि जैसे 2014 में सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने अपना ताज अपने आप मोदी के सिर पर रख दिया था, बिल्कुल वैसे ही उत्तर प्रदेश का ताज रामगोपाल यादव और अखिलेश ने मोदी के चरणों में रख दिया है। अखिलेश के रचनात्मक कामों और लोकप्रिय छवि ने विरोधियों के होश उड़ा रखे थे। चुनावों के दौरान मोदी और शाह की घबराहट और बौखलाहट देखने लायक थी। उन्हें भी इसका अंदाज नहीं था कि मुलायम सिंह की पूरी समाजवादी पार्टी ही घर बैठ गई थी। कार्यकर्ता नदारद थे। औसत पिछड़ा मतदाता हतप्रभ था। उसे अखिलेश की बगावत पसंद नहीं आई। पिछड़ी जातियां अभी भी परंपरा और रुढ़ियों में आबद्ध हैं। वे कांग्रेस-विरोधी भी हैं। इसलिए उनका वोट भी भाजपा को मिला। मुलायम तो चुप्पी मार गए लेकिन उनके सम्मान की रक्षा उनके भक्तों ने कर ली।

उधर मायावती ने इतने मुस्लिम उम्मीदवार खड़े कर दिए कि उन क्षेत्रों के हिंदू वोट भी भाजपा को मिल गए। इस चुनाव में जात की दीवारें टूटीं लेकिन मज़हबी दीवारें ऊंची हुईं। मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिए, यह तो कोरी गप्प है। यह मोदी की लहर नहीं, मुलायम के अपमान की लहर थी। यदि यह मोदी की लहर होती तो उसका झपट्टा पंजाब, गोवा और मणिपुर में भी पड़ता। लेकिन कुल मिलाकर इन पांच राज्यों के चुनाव ने मोदी की पगड़ी में कई मोरपंख टांक दिए हैं। अब देखना यही है कि इस मुकद्दर के सिकंदर, मोदी के अगले ढाई साल, पिछले ढाई साल के मुकाबले कितने बेहतर होंगे।

- डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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