आजीवन अमन के पक्षधर रहे और पत्रकारीय उसूलों से नहीं डिगे नैय्यर साहब

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वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर नहीं रहे, यह खबर स्तब्ध कर देने वाली है। नैय्यर साहब भारतीय पत्रकारिता जगत का वह मजबूत स्तंभ थे जो आजीवन अपने उसूलों से नहीं डिगे और सरकार चाहे किसी भी पार्टी की रही हो, उसे आईना दिखाने में कभी कसर नहीं छोड़ी।

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर नहीं रहे, यह खबर स्तब्ध कर देने वाली है। नैय्यर साहब भारतीय पत्रकारिता जगत का वह मजबूत स्तंभ थे जो आजीवन अपने उसूलों से नहीं डिगे और सरकार चाहे किसी भी पार्टी की रही हो, उसे आईना दिखाने में कभी कसर नहीं छोड़ी। शायद वह एकमात्र ऐसे शीर्ष पत्रकार थे जिन्होंने अपने आलेखों में कभी किसी राजनीतिक दल का पक्ष नहीं लिया, प्रधानमंत्री पद पर चाहे कोई भी व्यक्ति रहा हो, यदि सरकार की नीतियां आलोचना के लायक थीं तो नायर साहब ने किसी को बख्शा नहीं। जनता के हित को उन्होंने सर्वोपरि रखा। देश में ही नहीं सीमाओं पर भी अमन चैन के लिए वह आजीवन प्रयासरत रहे। पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी उनका वैसा ही सम्मान होता है जैसा कि भारत में होता है।

जो भी उन्होंने लिखा वो ऐतिहासिक दस्तावेज जैसे हैं 

नैय्यर साहब सामाजिक समरसता और लोकतंत्र कायम रखने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर गये हैं। आजादी की लड़ाई और भारत विभाजन से लेकर अब तक का उनका कोई भी आलेख ले लीजिये वह अपने आप में एक ऐतिहासिक दस्तावेज जैसा लगता है। उनके आलेखों से उनके कद का पता चलता है। नैय्यर साहब के आलेखों में कई जगह उल्लेख मिलता है कि किस तरह खास मौके पर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को क्या सुझाव दिये, इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रही हों या राजीव गांधी, या फिर चंद्रशेखर से लेकर अब नरेंद्र मोदी तक, हर भारतीय प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और सियासत के सभी बड़े नामों तक को वह अपने अनुभव के जरिये सुझाव देते रहे। उनके पुराने आलेखों को देखेंगे तो पाएंगे कि वह भारत पाकिस्तान के बीच विभाजन रेखा खींचने वाले रेडक्लिफ से ब्रिटेन जाकर पूछ कर आये कि दो देशों के बीच विभाजन रेखा खींचने का पैमाना क्या था? नैय्यर साहब के आलेखों को पढ़ेंगे तो पाएंगे कि किस तरह ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री माग्रेट थैचर, किस तरह जुल्फीकार अली भुट्टो से उन्होंने तीखे सवाल किये, कैसे बेनजीर भुट्टो, परवेज मुशर्रफ, नवाज शरीफ ही नहीं पाकिस्तानी और बांग्लादेशी सियासत के सभी बड़े नामों को उन्होंने अपने साक्षात्कारों के माध्यम से बेनकाब भी किया और मिल कर रहने की सीख भी दी। पाकिस्तान और बांग्लादेश के बारे में तो उनके आलेख एक तरह से भविष्यवाणी हुआ करते थे।

अपने एक हालिया आलेख में उन्होंने कहा था, 'जब मैंने लार्ड माउंटबेटन से पूछा कि बंटवारे को जून 1948 के पहले क्यों लागू कर दिया गया तो उन्होंने कहा कि मैं देश को इकट्ठा नहीं रख पाया। हालांकि उन्होंने यह कह कर इसे उचित ठहराया कि दूसरा कोई चारा नहीं था। मैंने जब लार्ड माउंटबेटन से कहा कि बंटवारे के दौरान हुई मौतों के लिए वह जिम्मेदार हैं तो उनका कहना था कि उन्होंने बीस लाख लोगों की जान बचाई जब उन्होंने दक्षिण एशिया में अपने सैनिकों के लिए जा रहे अनाज के जहाजों को मोड़ दिया। उन्होंने कहा कि वह भगवान के सामने कसम खाएंगे कि उन्होंने लोगों को भूख से मरने से बचाया।' ऐसे कई वाकये आपको उनके आलेखों में मिलेंगे जो दर्शाते हैं कि उनका कितना लंबा और गहन पत्रकारीय सफर रहा।

शांति के लिए सदैव प्रयासरत रहे

नैय्यर साहब आजीवन कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक में शांति लाने, सामाजिक समरसता कायम रखने के लिए प्रयासरत रहे। कश्मीर में तो जब भी कभी उग्रता हावी हुई, सरकारों ने भी नैय्यर साहब की मदद ली और कुलदीप नैय्यर ही ऐसी शख्सियत थे जिनसे सरकार ही नहीं अलगाववादी और कश्मीरी युवा भी अपने मन की बात कहने में कभी हिचकते नहीं थे। उन्होंने हाल ही में लिखा था, 'ज्यादा समय नहीं हुआ है जब मैं कश्मीरी छात्रों से संवाद के लिए श्रीनगर गया हुआ था तो यह देखकर मुझे हैरान हो गया कि वे अब पाकिस्तान−समर्थक नहीं रह गए हैं। उनकी नजर में, अपना शासन थोपने में नई दिल्ली और इस्लामाबाद एक समान हैं।' उन्होंने लिखा था- यासीन मलिक और शब्बीर शाह जैसे लोग भी अब अप्रासंगिक हो गए हैं। 

देश में चाहे 1984 के दंगे रहे हों या फिर गुजरात के दंगे, कुलदीप नैय्यर साहब ने समाज में शांति लाने के लिए कई पहलें कीं और सरकारों की कमियों और गलतियों को उजागर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। नैय्यर साहब सदैव अपने आलेखों में महात्मा गांधी की शिक्षाओं की सीख देते रहे। दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों के उत्थान पर हमेशा उनका जोर रहा।

मॉब लिंचिंग की घटनाओं से दुखी थे

हाल के उनके आलेखों को पढ़ें तो पाएंगे की मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं से वह बेहद दुखी थे। साथ ही धर्म के आधार पर खींची गयी रेखा उन्हें सदैव सालती थी। नैय्यर साहब का आजीवन यह मानना रहा कि, 'मेरी भावना यह है कि हम पहले भारतीय हैं, फिर हिंदू, मुसलमान, सिख या ईसाई। देश के चरित्र को व्यक्त करने के लिए संविधान की प्रस्तावना में 'सेकुलर' शब्द है। इस शब्द को जोड़ने वाली उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। जनता पार्टी ने उस सब को बदल दिया जो उन्होंने जोड़ा था, लेकिन प्रस्तावना को ज्यों का त्यों, रहने दिया, बिना संशोधन के।'

आरएसएस को नहीं बख्शते थे

आरएसएस और संघ परिवार के घटक अकसर उनके निशाने पर रहते थे क्योंकि नायर साहब का मानना था कि यह सबको साथ लेकर नहीं चलना चाहते। नैय्यर साहब ने अपने एक हालिया आलेख में कहा था, 'संविधान अभी भी एक पवित्र ग्रंथ है। लेकिन मुझे डर है कि 2019 के चुनावों में भाजपा तिहाई बहुमत पाने का प्रयास करेगी और अगर उसे यह बहुमत मिल जाता है तो वह संविधान को बदल देगी। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 तथा अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करने वाली विविधता की भावना उसके निशाने पर होगी। भाजपा जो आरएसएस की राजनीतिक शाखा है, सेकुलरिज्म की सोच को कमजोर करने की कोशिश करेगी।' 

आपातकाल का घोर विरोध किया

लेकिन ऐसा नहीं है कि उन्होंने सदैव भगवा परिवार पर ही हमला किया, वह कांग्रेस पर भी हमलावर रहे क्योंकि उसने आपातकाल लगाकर देश के लोकतंत्र को खत्म करने का प्रयास किया था। नैय्यर साहब ने अपने आलेखों में कई बार कहा है, 'तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र की बत्ती बुझा दी थी। चुनाव में अवैध तरीके अपनाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने पर उन्होंने संविधान स्थगित कर दिया था और बेहद ज्यादतियां की थीं। एक लाख लोगों को बिना सुनवाई के हिरासत में रखा गया और कई लोग मार दिए गए या गायब कर दिए गए, क्योंकि वे इंदिरा गांधी के कट्टर विरोधी थे।'

पार्टियों को लेकर उनकी राय

नैय्यर साहब का मानना था, 'सभी के विकास की राजनीति करने वाले जब सत्ता में आते हैं तो कुछ समूहों की बेहतरी को लेकर बंट जाते हैं। राज्य के स्तर पर तो इसे समझा जा सकता है। लेकिन वे केंद्र में सत्ता में आने पर भी विभाजन की राजनीति पर काबू नहीं रख पाते। सत्ताधारी भाजपा इसका उदाहरण है। उनके शासन में 21 राज्य हैं और पार्टी ने अलग−अलग राज्यों में सत्ता पाने के लिए अलग−अलग रणनीति तथा तरीके अपनाए हैं। यहां तक कि कांग्रेस भी जो सेकुलर विचारों वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी है, अब वैसा संगठन नहीं रह गई है जैसा वह कभी हुआ करती थी।'

मानवतावादी थे नैय्यर साहब

नैय्यर साहब को सिर्फ पत्रकार कहना ठीक नहीं होगा वह तो मानवतावाद की एक मिसाल थे। उन्होंने स्वतंत्रता दिवस पर वाघा सीमा पर मोमबत्ती जलाना शुरू किया। यह कार्यक्रम करीब 20 साल पहले शुरू हुआ था। यह एक छोटा आंदोलन था जो 15−20 लोगों को लेकर शुरू हुआ था। अब इस पार एक लाख लोग और पाकिस्तान से, सीमित संख्या में ही सही, इस मुहिम में शामिल होते हैं। लोगों के उत्साह की सीमा नहीं होती। नैय्यर साहब की आखिरी तमन्ना थी कि सरहद को नरम बनाया जाए और अमन के हालात हों ताकि दुश्मनी दूर की जा सके।

राजदूत और राज्यसभा सदस्य भी रहे

नैय्यर साहब ब्रिटेन में भारतीय राजूदत भी रहे और 90 के दशक में उन्हें राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया गया था। कुलदीप नैय्यर साहब ने राजनयिक और राज्यसभा सदस्य के तौर पर भी अपनी अमिट छाप छोड़ी। राज्यसभा में तो उनके सवालों से परेशान होकर वरिष्ठ मंत्री तक सदन छोड़कर चले जाने पर मजबूर हो जाते थे।

नैय्यर साहब का जाना मेरे लिए निजी क्षति इसलिए भी है क्योंकि मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक था और आपातकाल पर जब उनका एक साक्षात्कार किया था तब उनसे बेहद प्रभावित हुआ था। प्रभासाक्षी परिवार की ओर से नैय्यर साहब को सच्चे हृदय से श्रद्धांजलि।

-नीरज कुमार दुबे

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