देश के असली हीरो व अजेय योद्धा हैं 'नेताजी सुभाष बोस'

subhash chandra bose

21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में बनाई गयी आज़ाद हिंद सरकार के सुभाष बोस प्रथम प्रधानमंत्री थे। यह भारत की अपनी सरकार थी, जिसे अन्य देशों जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन मानचुको, आयरलैंड आदि देशों का भी समर्थन प्राप्त था।

'बिना कीमत चुकाए कुछ हासिल नहीं होता और आज़ादी की कीमत है शहादत' आज़ाद हिंद फौज के सैनिकों को इस आह्वान के साथ 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा' नारे के द्वारा प्रेरित करने वाले व्यक्तित्व का नाम है सुभाष बोस। जय हिंद तथा दिल्ली चलो की प्रेरणा थे सुभाष। महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' का सर्वप्रथम संबोधन देने वाले व्यक्ति का नाम है सुभाष। बहादुरी-साहस-संकल्प- राष्ट्र भक्ति के जीते जागते आदर्श पुरुष थे नेताजी। राजनीति, कूटनीति व सैन्य शक्ति तीनों आज़ादी के लिए जरुरी है इस संकल्पना के प्रणेता थे बोस. अपने देश की आज़ादी के लिए पहली बार देश के बाहर जाकर फौज तैयार करने वाले शख्स थे सुभाष। भारत बोध की भावना को लाखों-लाखों युवाओं के दिलों की धड़कन बनाने वाले व आज़ादी के सबसे बड़े नायक का नाम है नेताजी सुभाष चंद्रबोस।

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अखंड व अविभाजित भारत के पहले प्रधानमंत्री: 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में बनाई गयी आज़ाद हिंद सरकार के सुभाष बोस प्रथम प्रधानमंत्री थे। यह भारत की अपनी सरकार थी, जिसे अन्य देशों जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन मानचुको, आयरलैंड आदि देशों का भी समर्थन प्राप्त था। इस आज़ाद हिंद सरकार का अपना बैंक 'आज़ाद हिंद बैंक', अपना डाक टिकट, अपनी मुद्रा, अपना गुप्तचर तंत्र था। तिरंगा भारत का राष्ट्रीय झंडा, जन-गण-मन भारत का राष्ट्रीय गान होगा यह निर्णय भी सर्वप्रथम आज़ाद हिंद सरकार का ही था। इस सरकार का बर्मा की राजधानी रंगून में अपना मुख्यालय भी स्थापित था। यह वही आज़ाद हिन्द फौज थी जिसके सैनिकों ने भारत व भारत से बाहर भी अंग्रेजों की जड़ों को हिला कर रख दिया था। जिसके नाम से गोरे थरथर कांपते थे।

रेड फोर्ट ट्रायल: 1945 के बाद आज़ाद हिंद फौज के तीन ऑफिसर प्रेम सहगल, शाहनाज़ खान व गुरबक्श सिंह ढिल्लो पर अंग्रेजी हकूमत की बगावत व विद्रोह करने के खिलाफ लाल किले में नवंबर 1945 से जनवरी 1946 तक मुकदमा चला। आईएनए पर चलाए गए दस मुकदमों में से यह पहला मुकदमा था। यह मुकदमा पूरे देश में कौमी एकता की मिसाल बना। तीनों अफसरों की रिहाई के लिए देश भर में दुआएं की जाने लगी, धरने प्रदर्शन हुए, प्रार्थना सभाएं आयोजित हुई। मुकदमे के ट्रायल के दौरान देश के प्रत्येक व्यक्ति तक आज़ाद हिन्द फौज के संघर्ष की कहानियों ने देशभक्ति का माहौल निर्माण कर दिया। इस ट्रायल ने अपनी आज़ादी के लिए लड़ने वालों को अपने अधिकारों के प्रति जागरुक कर दिया था। आखिरकार इस ट्रायल से निर्मित वातावरण से अंग्रेज हवा का रुख पहचान गए थे और उन्होंने तीनों अफसरों को रिहा कर दिया। 

सैनिक- सा जुझारूपन और राजनेता-सी व्यापक दृष्टि: भारत में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन को एक आर या पार के युद्ध का रूप देने वाले थे नेताजी। अहिंसा आंदोलन में भाग लेकर सुभाष को इस बात का स्पष्ट संकेत मिल गया था कि अंग्रेजों को आर-पार की भाषा ही समझ आएगी। इसलिए उन्होंने गांधी जी का साथ छोड़ दिया। मुसोलिनी और हिटलर से मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होकर युद्ध करने का पक्ष रखना और जापान में 'आज़ाद हिंद फौज' की स्थापना कर दिल्ली कूच करना नेताजी के व्यक्तित्व के वे पहलू हैं, जो सिर्फ सुभाष में ही थे, उस समय के किसी अन्य राजनेता में नहीं थे। उस समय नेताजी द्वारा रेडियो पर दिया गया संदेश आज भी सार्थक है- 'किसी अंग्रेज के सामने हमारे देशवासियों को सर झुकाने की जरुरत नहीं। यदि किसी का सर झुकेगा, तो फिरंगी हमारे देश के स्वाभिमान पर हंसेंगे। इसलिए आप लोग उन्हें हंसने का मौका न दें। हम कल भी सिर उठाकर जी रहे थे, आज भी सिर उठाकर जी रहे हैं और मरते डैम तक सिर उठाकर ही जीते रहेंगे'।

नेताजी और आज़ाद हिंद फौज के खौफ से मिली आज़ादी: सन 1956 में ब्रिटेन के तात्कालिक प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली भारत आए। ये वही एटली थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के ड्राफ्ट पर 1947 में हस्ताक्षर किये थे. जब इनसे पूछा गया की 1942 भारत छोड़ो आंदोलन की विफलता एवं 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध जीतने के बावजूद भी आप भारत को इतनी जल्दी छोड़ने के लिए क्यों तैयार हो गए? एटली का उत्तर था, इसके पीछे का कारण थे सुभाष बोस व उनकी आज़ाद हिन्द फौज। जिसके कारण पूरे देश भर में भारत की आज़ादी को लेकर इस प्रकार का माहौल पैदा हो गया था कि हमें समझ आ गया था कि अब हम भारत में ज्यादा समय तक टिक नहीं सकते। इसी कारण हमें भारत को आज़ाद करने पर विवश होना पड़ा।

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वास्तव में बोस अद्भुत नेतृत्व क्षमता व आज़ादी के संघर्ष में आउट ऑफ़ बॉक्स थिंकिंग रखने वाले दूरदृष्टा थे, जो युग से आगे की सोच रखते थे। कूटनीति चालें चलने व परिस्थिति अनुसार कूटनीति पूर्ण योजनाएं बनाने में उनका कोई सानी नहीं था। आज़ाद हिंद फौज, आज़ाद हिंद सरकार, आज़ाद हिंद रेडियो स्टेशन एवं रानी झांसी रेजीमेंट उनके जीवन की विशेष उपलब्धियां थी, जो उनकी दूरदर्शिता का परिचायक बनी। उनका मानना था कि भारत की आज़ादी की इच्छा अगर हर भारतीय के मन में उठे, तो भारत को आज़ाद होने से कोई नहीं रोक सकता। स्वतंत्र भारत की अमरता का जयघोष करने वाली राष्ट्रप्रेम की दिव्य ज्योति जलाकर सुभाष बोस अमर हो गए। लेकिन उनके विचार, उनका जीवन आज भी प्रत्येक भारतीय के लिए पथ प्रदर्शक है। आज भी नौजवानों में सुभाष बाबू न केवल लोकप्रिय है बल्कि उनके प्रेरणा पुरुष व आदर्श भी है। तो आइये, बोस की 125 वीं जयंती के अवसर पर उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए, उनको व उनके जीवन को जन-जन तक पहुंचा कर इस राष्ट्र निर्माण के पुनीत कार्य में हम भी अपनी भूमिका को सुनिश्चित करें। 

जय हिंद, जय भारत।।      

डॉ. पवन सिंह

(लेखक मीडिया विभाग, जे. सी. बोस विश्वविद्यालय, फरीदाबाद में एसोसिएट प्रोफेसर है)

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