फील्ड मार्शल या फेल्ड मार्शल? असीम मुनीर का अगला प्रमोशन राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री पद पर?

Asim Munir
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अपनी सेना के विफल होने के बावजूद जिस तरह प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष की हर मंच से जमकर तारीफ की और फिर उन्हें फील्ड मार्शल बनाना पड़ा वह दर्शाता है कि वह नहीं चाहते कि जैसा उनके भाई ने भुगता वैसा ही वह भी भुगतें।

फील्ड में हारने वाले को वैसे तो फेल्ड कहते हैं लेकिन पाकिस्तान ऐसे लोगों को फील्ड मार्शल कहता है। देखा जाये तो भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य संघर्ष के दौरान बुरी तरह पिटने वाले पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष मौलाना असीम मुनीर को पाकिस्तान सरकार की ओर से प्रमोशन देकर उन्हें फील्ड मार्शल बनाना उसी पुरानी कड़ी का दोहराव है जिसके तहत हर हार के बाद पाकिस्तानी सेना को वहां का शासन 'हार' पहनाता है।

इसके अलावा, अपनी सेना के विफल होने के बावजूद जिस तरह प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष की हर मंच से जमकर तारीफ की और फिर उन्हें फील्ड मार्शल बनाना पड़ा वह दर्शाता है कि वह नहीं चाहते कि जैसा उनके भाई ने भुगता वैसा ही वह भी भुगतें। उल्लेखनीय है कि शहबाज शरीफ के भाई नवाज शरीफ की सत्ता को पलट कर तत्कालीन पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान की सत्ता संभाल ली थी। असीम मुनीर भी पाकिस्तान पर राज करना चाहते हैं यह बात वहां के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भलीभांति जानते हैं इसलिए वह पर्दे के पीछे से सारा नियंत्रण असीम मुनीर को चलाने दे रहे हैं ताकि उनकी खुद की गाड़ी भी चलती रहे। जरदारी और शहबाज अच्छी तरह जानते हैं कि उनका अपने पद पर बने रहना लोकतंत्र पर नहीं, बल्कि मुनीर की कृपा पर निर्भर करता है। 

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फील्ड मार्शल बनने के बाद असीम मुनीर अगली पदोन्नति के रूप में कौन-सा पद चाहेंगे यह देखने वाली बात होगी, वैसे यह तो है कि पाकिस्तान के इतिहास में इस पद पर पदोन्नत होने वाले वह दूसरे शीर्ष सैन्य अधिकारी बन गये हैं। उनसे पहले जनरल अयूब खान को 1959 में फील्ड मार्शल का पद दिया गया था। मुनीर ने पाकिस्तान की दोनों शक्तिशाली जासूसी एजेंसियों- आईएसआई और मिलिट्री इंटेलिजेंस (एमआई) का नेतृत्व किया है। वह पाकिस्तान के इतिहास में MI और ISI दोनों का नेतृत्व करने वाले एकमात्र अधिकारी हैं और पहले ऐसे सेनाध्यक्ष भी हैं जिन्हें प्रतिष्ठित “स्वॉर्ड ऑफ ऑनर” से सम्मानित किया गया है। असीम मुनीर ने नवंबर 2022 में सेना प्रमुख के रूप में पदभार ग्रहण किया था। उन्होंने जनरल कमर जावेद बाजवा का स्थान लिया था जो लगातार तीन वर्षीय दो कार्यकाल के बाद सेवानिवृत्त हुए थे।

वैसे असीम मुनीर ने अब तक कोई लड़ाई जीती नहीं है और सिर्फ कट्टरपंथ को ही आगे बढ़ाया है। लेकिन फिर भी उनकी पदोन्नति को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए यह याद करना ज़रूरी है कि पाकिस्तान के पहले फील्ड मार्शल अय्यूब ख़ान अपने देश के पहले सफल सैन्य तख्तापलट के सूत्रधार भी थे। 1958 में तत्कालीन राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्ज़ा के समर्थन से अय्यूब ख़ान ने मार्शल लॉ लागू किया और जल्द ही राष्ट्रपति पद से मिर्ज़ा को हटाकर स्वयं सत्ता संभाल ली थी। यही वह उदाहरण था जिसने पाकिस्तान में सैन्य शासन की परंपरा को जन्म दिया और सेना के नागरिक शासन में दखल को सामान्य बना दिया।

हम आपको बता दें कि पाकिस्तान में फील्ड मार्शल के प्रभाव की कोई संवैधानिक सीमा नहीं है, खासकर उस व्यवस्था में जो बार-बार अपने ही संविधान की अनदेखी करती है। इतिहास भी यही दर्शाता है कि पाकिस्तान में सत्ता मतपेटियों में नहीं, सेना की छावनियों में रहती है। पाकिस्तान का इतिहास यही बताता है कि सरकार के नेतृत्व के लिए यही बेहतर होता है कि वे अपने पासपोर्ट हमेशा तैयार रखें। दरअसल पाकिस्तान में नाममात्र का लोकतंत्र है, वास्तव में वह शुरू से ही सेना-प्रधान राष्ट्र बना हुआ है।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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