प्रियंका और राहुल के वैचारिक स्तर में ज्यादा फर्क नहीं

लग रहा था कि बहुत लोग मानते भी हैं कि उनमें अपनी दादी इन्दिरा गांधी की झलक है, लेकिन इस बार प्रियंका जो बोलीं उससे साबित हुआ कि वैचारिक स्तर पर उनके व राहुल के बीच ज्यादा फर्क नहीं है।

उत्तर प्रदेश में सपा कांग्रेस गठबंधन प्रियंका गांधी की बड़ी भूमिका को लेकर बहुत उत्साहित था। राहुल गांधी के चुनावी रिकार्ड को देखते हुये ऐसा सोचना स्वाभाविक भी था। कई बार कांग्रेस कार्यकर्ता राहुल गांधी के सामने प्रियंका को पार्टी कमान सौंपने के नारे भी लगा चुके हैं। इस बार तो गठबंधन के कारण सपा ने भी उम्मीद पाल रखी थी। डिंपल यादव और प्रियंका गांधी के साझा चुनाव प्रचार की योजना भी बन चुकी थी। गनीमत थी कि चौथे चरण के चुनाव तक प्रियंका ने उत्तर प्रदेश की सुध ली। कांग्रेस को लगता था कि उनके रूप में तुरूप का पत्ता चला जायेगा। लग रहा था कि बहुत लोग मानते भी हैं कि उनमें अपनी दादी इन्दिरा गांधी की झलक है, लेकिन इस बार प्रियंका जो बोलीं उससे साबित हुआ कि वैचारिक स्तर पर उनके व राहुल के बीच ज्यादा फर्क नहीं है।

प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में बाहरी का मुद्दा उठाया। उनके भाषण के इसी अंश को सर्वाधिक चर्चा मिली। उनका निशाना नरेन्द्र मोदी थे। मोदी ने एक दिन पहले कहा था कि उत्तर प्रदेश ने उन्हें गोद ले लिया है। प्रियंका ने इसी बात पर उन्हें बाहरी करार दिया। मोदी के विरोध की उनसे उम्मीद थी, लेकिन प्रियंका ने यह अनुमान नहीं लगाया कि प्रधानमंत्री या राष्ट्रीय स्तर के किसी नेता को बाहरी बताने की गूंज दूर तक जायेगी। प्रियंका ने एक ही बयान से अपने पूर्वज व पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी के दायरे का सीमित कर दिया। प्रियंका के बयान से जाहिर हुआ कि ये तीनों पूर्व प्रधानमंत्री केवल उत्तर प्रदेश के ही नेता थे। देश के अन्य सभी प्रदेशों के लिये इनको भी बाहरी मानना चाहिये। जिस प्रकार नेहरू, इन्दिरा, राजीव संवैधानिक प्रक्रिया के तहत प्रधानमंत्री बने थे, उसी प्रकार नरेन्द्र मोदी आज उस जगह पर हैं।

ऐसा भी नहीं कि मोदी मनमोहन सिंह की तरह किसी हाईकमान की कृपा से प्रधानमंत्री बने हों। ऐसा भी नहीं कि वह देवगौड़ा, इन्द्रकुमार गुजराल की भांति जोड़तोड़ से प्रधानमंत्री बने हों। मोदी इस पद पर अपनी लोकप्रियता व उनके पक्ष में मिले भारी जनादेश के चलते प्रधानमंत्री पद पर हैं। ऐसे में पहली बात यह कि क्या प्रियंका गांधी पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू, इन्दिरा, राजीव को उत्तर प्रदेश तक सीमित मानती हैं, क्या उनकी नजर में ये लोग अन्य प्रदेशों में बतौर बाहरी रूप में प्रचार करते थे। यदि प्रियंका ऐसा सोचती हैं तो मोदी पर दिये गये उनके बयान पर आपत्ति नहीं हो सकती लेकिन इसके पहले प्रियंका को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। विचार का विषय यह भी है कि मोदी ने गोद लेने वाला बयान किस आधार पर दिया? क्या पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश के मतदाताओं ने मोदी को गोद नहीं लिया था? क्या उनके प्रति दिखाया गया विश्वास अभूतपूर्व नहीं था? इसके पहले बिलकुल असामान्य परिस्थितियों में किसी पार्टी को उत्तर प्रदेश से ऐसा समर्थन मिला था? 1977 व 1984 के चुनाव विशेष परिस्थितियों से प्रभावित थे। लेकिन 2014 के चुनाव मोदी के प्रति विश्वास से प्रभावित थे। किसी नेता को गोद लेने का ऐसा दूसरा कोई उदाहरण नहीं है। इसके अलावा मोदी को वाराणसी संसदीय क्षेत्र का विशेष आशीर्वाद मिला।

प्रियंका को एक अन्य बात पर भी आत्मचिंतन करना चाहिये। वह उत्तर प्रदेश की हैं। लेकिन उनका दायरा अमेठी व रायबरेली तक ही सीमित है। यहां तक कि राबर्ट बाड्रा के गृह जनपद उनके आने जाने की खबर नहीं आती, इस प्रकार अमेठी व रायबरेली के अलावा प्रियंका ने शेष उत्तर प्रदेश से सदैव दूरी बनाई रखी है। जबकि गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से पहले मोदी ने उत्तर प्रदेश में वर्षों तक पार्टी संगठन का कार्य किया है। उत्तर प्रदेश के बारे में उनकी जानकारी प्रियंका के मुकाबले बहुत ज्यादा है। केवल उत्तर प्रदेश में जन्म लेने से कुछ नहीं होता। प्रियंका यदि जन्म के कारण उत्तर प्रदेश को अपना मानती हैं, तो सोनिया गांधी के विदेशी मूल संबंधी मुद्दे पर भी उनको आपत्ति नहीं होनी चाहिये। यह मुद्दा दब गया था लेकिन प्रियंका ने बयान से यह पुनः उभरे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये क्योंकि इसका अवसर प्रियंका ने ही उपलब्ध कराया है।

प्रियंका ने अपने बयान से खुद अपने सामने भी समस्या उत्पन्न कर ली है। चर्चा थी कि अगले लोकसभा चुनाव में वह राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का चेहरा होंगी लेकिन ऐसा हुआ तो उनका बयान ही सामने आ जायेगा। प्रियंका को बताना होगा कि उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य प्रान्तों में उनको बाहरी क्यों ना माना जाये क्योंकि प्रियंका अमेठी व रायबरेली तक सीमित रहीं। उन्होंने सोनिया व राहुल के सामने समस्या खड़ी कर दी है, क्या सोनिया व राहुल को उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों में बाहरी माना जायेगा। प्रियंका को यह भी बताना चाहिये कि मुरादाबाद के मूल निवासी राबर्ट वाड्रा हरियाणा व राजस्थान के लिये बाहरी थे।

यह क्यों ना माना जाये कि प्रियंका का बयान राज ठाकरे के विचारों जैसा है। केवल तरीके में अन्तर है लेकिन बड़े नेता जब ऐसे बयान देते हैं तो वह सामाजिक स्तर पर खतरा बढ़ा रहे होते हैं। एक दूसरे के प्रदेशों में कोई बाहरी नहीं होता। बताया जाता है कि बिहार चुनाव में नरेन्द्र मोदी व अमित शाह को बाहरी बताने की स्क्रिप्ट पी.के. ने लिखी थी। प्रियंका ने इसी को जीत का फार्मूला मानकर दोहराया है जबकि बिहार की जीत जाति−मजहब के समीकरण बैठने से हुई थी। इसके अलावा भाजपा के साथ सरकार चलाने के दौरान नीतिश कुमार की जो छवि बनी थी, उसका फायदा भी गठबंधन को मिला था। ऐसी परिस्थिति उत्तर प्रदेश में नहीं है। प्रियंका ने वहां से घिसा−पिटा बयान निकाला और दोहरा दिया। इससे प्रियंका ने अपना ही कद कम किया है।

- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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