चिदम्बरम से जेल में मिलकर सोनिया ने भ्रष्टाचारियों को शह का संकेत दे दिया

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कांग्रेस राजीव गांधी का वह बयान भी भूल गई, जिसमें उन्होंने कहा था कि केंद्र से एक रूपया चलता है तो दस पैसे ही जमीन तक पहुंचते हैं। क्या कांग्रेस यह दावा कर सकती है कि जिन राज्यों में उसकी सत्ता है, वहां योजनाओं का सौ प्रतिशत लाभ आम लोगों को मिल रहा है।

देश को दीमक की तरह खा रहे भ्रष्ट और नाकारा नौकरशाहों के साथ केंद्र सरकार सही सलूक कर रही है। केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार की सफाई अभियान में 15 वरिष्ठ दागियों को घर का रास्ता दिखाया है। इनमें आयकर विभाग के आयुक्त और प्रधान आयुक्त जैसे वरिष्ठ अफसर शामिल हैं। भ्रष्टाचार की गंदगी के तहत अभी तक चार बार सफाई अभियान चलाया जा चुका है। इसकी गाज अब 49 अफसरों पर गिरी है। सवाल यही है कि आखिर केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ इतने सख्त रवैये के बावजूद नौकरशाही में डर क्यों नहीं हैं। देश में उंगलियों पर गिने जाने लायक नौकरशाह ही भ्रष्टाचार की गंगा से बचे हुए हैं। बड़ी संख्या में किसी न किसी रूप में लिप्त अफसरों तक सरकार की पहुंच नहीं हो पा रही है। इनमें बड़ी संख्या उन नौकरशाहों की है, जो राज्यों में तैनात हैं। केंद्र के साथ जब तक राज्य भी ऐसा ही कदम नहीं उठाएंगे, तब तक भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूबी बेलगाम नौकरशाही की नकेल नहीं कसी जा सकेगी।

राज्यों में भाजपा और अन्य दलों की सरकारें हैं। इनमें कांग्रेस की सरकारें भी शामिल हैं। आश्चर्य तो यह है कि जो कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते केंद्र से सत्ता से हाथ धो बैठी, उसे भी अभी तक यह बड़ा मुद्दा नजर नहीं आता। लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस की तगड़ी घेराबंदी की। कांग्रेस से सफाई तक देते हुए नहीं बना। कांग्रेस ने राफेल की खरीद में भ्रष्टाचार का मुद्दा बनाया किन्तु इसमें सफल नहीं हो सकी। कांग्रेस को अपने राज्यों में भ्रष्टाचार ना तो पहले दिखाई देता था और ना ही अब दिखाई दे रहा है। कांग्रेस ने एक बार भी भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टोलरेंस की नीति नहीं अपनाई। कांग्रेस शासित राज्यों में ऐसे नौकरशाहों के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई। लगता यही है कि कांग्रेस की इस गंदगी की सफाई में कोई रूचि नहीं है। यह स्थिति तो तब है जब कांग्रेस आलाकमान सहित उनका कुटुम्ब भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहा है। इसके बावजूद कांग्रेस सबक सीखने को तैयार नहीं है।

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कांग्रेस पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का वह बयान भी भूल गई, जिसमें उन्होंने कहा था कि केंद्र से एक रूपया चलता है तो दस पैसे ही जमीन तक पहुंचते हैं। क्या कांग्रेस यह दावा कर सकती है कि जिन राज्यों में उसकी सत्ता है, वहां योजनाओं का सौ प्रतिशत लाभ आम लोगों को मिल रहा है। इन योजनाओं में सरकारी धन की एक−एक पाई सही जगह लग रही है। कांग्रेस की इसी चुप्पी की वजह से भाजपा अभी तक कांग्रेस के भ्रष्टाचार की कब्र खोद रही है। कांग्रेस ने पार्टी और राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार को लेकर एक लाइन तक नहीं कही है। कांग्रेस की यह चुप्पी ही साबित करती है कि पार्टी के लिए यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। कांग्रेस में नेताओं की छवि का पैमाना भ्रष्टाचार नहीं रह गया है। बेशक उसके वरिष्ठ नेता ऐसे आरोपों में जेल की हवा ही क्यों ना खाएं।

कांग्रेस का भ्रष्टाचार के प्रति नजरिया इससे भी जाहिर होता है कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद वरिष्ठ नेता पी चिदम्बरम से मिलने जा पहुंचीं। इससे जाहिर है कि पार्टी न सिर्फ चिदम्बरम का समर्थन कर रही है, बल्कि परोक्ष रूप से भ्रष्टाचार को लेकर बेपरवाह है। चिदम्बरम ही नहीं कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता भी इसी तरह के आरोपों का सामना कर रहे हैं। भ्रष्टाचार को लेकर गर्त में जा रही छवि को लेकर कांग्रेस बेफिक्र नजर आती है। जबकि होना तो यह चाहिए था कि कांग्रेस देश भर में पार्टी नेताओं को यह संदेश देती कि ऐसे एक भी आरोपी को किसी तरह का पद नहीं दिया जाएगा। कांग्रेस किसी भी सूरत में भ्रष्टाचारियों का बचाव नहीं करेगी। जिसे बचाव करना है वह अदालत में जाकर करे। अदालत से पाक साफ होने के बाद ही पार्टी में पुनः प्रवेश मिलेगा। इस तरह के पक्के इरादों के बाद कांग्रेस की छवि कुछ बेहतर हो सकती थी। इसे अपनाने की बजाए कांग्रेस आरोपी नेताओं का बचाव करके अपनी बची हुई छवि को ओर धूमिल कर रही है।

कांग्रेस की तरह ही दूसरे सत्ताधारी क्षेत्रीय दल भी भ्रष्टाचार पर लचीले रूख अपनाए हुए हैं। कांग्रेस की तरह ही अन्य क्षेत्रीय दल भी भ्रष्टाचारियों को घर बिठाने या जेल का रास्ता दिखाने के बजाए ऐसी कार्रवाइयों के लिए केंद्र सरकार को कोस रहे हैं। इन दलों ने कभी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ न्यूनतम साझा कार्यक्रम तक तय नहीं किया। लगता यही है कि भ्रष्टाचारियों का बचाव ही एकमात्र मुद्दा है जिस पर कांग्रेस सहित अन्य क्षेत्रीय दलों की परोक्ष रूप से सहमति बन चुकी है। यही वजह रही कि बंगाल में पूर्व आईपीएस राजीव कुमार के मामले में कांग्रेस सहित अन्य क्षेत्रीय दलों ने ममता बनर्जी का बेशर्मी से समर्थन किया। तृणमूल के कई नेता इस मामले में आरोपी हैं। राजीव कुमार सारदा चिटफंड मामले के आरोपी हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो सभी हदें पार करते हुए राजीव के खिलाफ सीबीआई कार्रवाई को केंद्र सरकार की साजिश तक करार दिया और आरोपी अधिकारी के समर्थन में धरने−प्रदर्शन पर उतर आईं।

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सीबीआई के क्षेत्रीय कार्यालय को राज्य पुलिस से डराने−धमकाने का प्रयास तक किया गया। इस पूरे तमाशे में गैरभाजपा दलों ने ममता का साथ दिया। अब जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने शिकंजा कसा तब ममता बेबस हो गई हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे शरद पवार की भी यही हालत है। अब पवार भी कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों की तरह केंद्र सरकार पर बदले की भावना से कार्रवाई का आरोप लगा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी भी अपने गिरेबां में झांकने की बजाय केंद्र सरकार पर ऐसे ही आरोप लगा रही है। कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के नेताओं को शायद यह भ्रम हो गया है कि चुनाव जीतने कर बड़ा नेता बन जाने से भ्रष्टाचार की कालिख धुल जाती है। जबकि अदालत की निगाहों में वह आरोपी ही क्यों न हो।

अदालत और कानून में ऐसे नेताओं को यकीन नहीं है। कानून के जरिए अदालत से सफाई हासिल करना इनका उद्देश्य नहीं है। इसके विपरीत जनसमर्थन के जरिए भ्रष्टाचार के कुकर्म पर पर्दा डालने की कोशिश की जाती है। कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि जनसमर्थन और कानून अलग−अलग हैं। अदालत कार्रवाई के दौरान यह नहीं देखती है कि किस नेता को कितना बड़ा समर्थन हासिल है। अदालतें कानून के हिसाब से ही र्कारवाई करती हैं। जिस गति से भाजपा आगे बढ़ रही है, यह जाहिर है कि यदि कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों ने भ्रष्टाचार को लेकर लचीला रूख ही अपनाए रखा तो बचा हुआ जनसमर्थन भी गंवा बैठेंगे।

-योगेन्द्र योगी

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