कालेधन और काले मन वाले नेताओं की बोलती हुई बंद

तरुण विजय । Nov 24, 2016 12:50PM
नोटबंदी के फैसले के बाद जनता ने काले धन की अगुवाई करने वाले काले मन के विपक्षी नेताओं की बोलती बंद कर दी जो चार करोड़ की गाड़ी में चार हजार निकालने का नाटक कर रहे थे।

यह केवल काले धन के विरुद्ध युद्ध नहीं, बल्कि भारत की सुषुप्त चेतना के जागरण का पर्व है। तालाब पर जमी काई को साफ करने के लिए कठोर प्रहार आवश्यक होता है लेकिन यह प्रहार उन्हीं हाथों से फलता है जिन हाथों में धर्म और राष्ट्रभक्ति की शक्ति होती है। संभवतः आने वाला इतिहास इस बात का सही विश्लेषण कर सकेगा कि किन शब्दों के प्रभाव से देश के सवा अरब लोग आर्थिक योद्धा बन गए। तकलीफें हैं, व्यापार धंधे में तात्कालिक कमी आयी, दफ्तर, स्कूल छोड़कर घंटों पंक्तियों में खड़े रहना पड़ा, अस्पताल, रेल, खेल और खेत दोनों का असर हुआ- लेकिन फिर भी अधरों पर एक ही वाक्य उभरा- मोदी जी ने ठीक किया, हम कुछ पीड़ा सह लेंगे पर इस मुहिम को कामयाब करेंगे।

कुछ लोग 1857 के गदर की याद करते हुए बताते होंगे कि उनके पड़दादा के पड़दादा उस वक्त लखनऊ, कानपुर, मेरठ या पालम की लड़ाई में थे। कुछ को 1947 की याद करते हुए अपने बुजुर्गों का स्मरण हो आता होगा और वे बताते होंगे कि जब साण्डर्स पर गोलियां चलाकर भगतसिंह लाहौर के डीएवी कॉलेज से बाहर निकले तो कैसा रोमांच पैदा हुआ था। आने वाले वर्षों में लोग 2016 की मोदी-अर्थ-क्रांति के रोमांचक खट्टे-मीठे क्षणों की यादें दोहराते हुए अपने पुत्रों-पौत्रों-प्रपौत्रों को बताएंगे कि वे कैसे एटीएम के आगे पांच-छह घंटा खड़े रहे, कैश की गाड़ी आते ही सब कैसे उतावले हुए और किस तरह जनता ने काले धन की अगुवाई करने वाले काले मन के विपक्षी नेताओं की बोलती बंद कर दी जो चार करोड़ की गाड़ी में चार हजार निकालने का नाटक कर रहे थे।

पर बात इससे बड़ी है।

यह कौन सा देश है जिसे बदला जा रहा है? यह कौन सी जनता है जो पुनः प्रतिरोधी शक्ति का पर्याय बन यूं एक हो खड़ी हो गयी मानो कारगिल दोहराया जा रहा हो? और इतनी गुप्तता के साथ प्रधानमंत्री ने महीनों की तैयारी को सबकी नजरों से ढक आठ नवम्बर की वह घोषणा कर दी मानो अटल जी पोकरण तीन कर रहे हों। इसका असर केवल अर्थव्यवस्था या ढांचागत निर्माण में अधिक पूंजीनिवेश तक ही सीमित नहीं रहेगा।

यह भारत का मन बदलने का अनुष्ठान हो गया- वह मन जो पहले माने बैठा था कि सामान्तर अर्थव्यवस्था और काला धन हमारे जीवन का अपरिहार्य अंग बन गया है, जो मान बैठा था कि इस देश में अगर कायदे और फायदे में से किसी एक को चुनना हो तो फायदा चुनो, कायदा छोड़ो-- क्योंकि ऊपर से नीचे तक सब कायदे का धता बताते हुए सिर्फ फायदा चुन रहे हैं। वह जन बदल गया-- भारत का आत्मविश्वास लौटने लगा कि यह वह देश है जहां कायदे या फायदे की बात नहीं बल्कि कायदे के साथ फायदे की बात फलती-फूलती है। जो पीड़ा आज हो रही है वह नए भारत के जन्म की प्रसव पीड़ा है। यह नवो-मेष का वह काल है जब वेदना अधरों पर अनागत के स्वागत की मुस्कान बिखेर रही है, दुख और क्लेश का काला बदल नहीं।

अभी सरस्वती शिशु मंदिर, सतना की स्वर्ण जयंती में भाग लेकर लौटा तो रेलगाड़ी में एक सरकारी कर्मचारी से चर्चा होने लगी। जावेद अहमद रेल कर्मचारी हैं-- बोले हमारे घर में, जब मोदी का राष्ट्र के नाम संबोधन शुरू हुआ तो हमें अदेशा था कि शायद अब लड़ाई की घोषणा होने वाली है। पर नोटबंदी की घोषणा से मेरी पत्नी सकते में आ गयी। मुझसे छुपाकर घर के किसी वक्त जरूरत आपदा काल के लिए उसने कुछ पैसे इकट्ठा किए हुए थे-- होंगे लगभग सवा लाख। मैं भी चौंका गया- उसने अपनी साड़ी के पैसे खर्च न करके घर के लिए कितनी मेहनत से एकत्र किए होंगे वे पैसे। पर फिर मैंने कहा- अरे हमें क्यों डरना? सीधे तुम्हारे खाते में जमा करांएगे-- डर उसे हो जिसने कालाधन रखा हो। साहब कुछ परेशानी तो होगी ही, पर मोदी जी ने हिन्दुस्तान के हर आदमी का दिल जीत लिया।

जैसा हमारे सीने में दिल धड़कता है, हमारा मन होता है, वैसे ही देश का दिल और मन होता है- जिसे दीनदयाल जी ने कहा था। नरेंद्र मोदी ने देश के उस मन को छू लिया। इससे हमारी अर्थव्यवस्था के साथ-साथ अन्य सभी क्षेत्रों में नए तेवर, नए कलेवर लाने में मदद मिलेगी। वह आत्मविश्वास आएगा कि शिक्षा पद्धति, चिकित्सा योजनाएं, न्यायपालिका, पुलिस व्यवस्था और प्रशासनिक सेवाओं में बरसों से लम्बित पड़े सुधार लाए जा सकें।

यह देश कराहता रहा है एक लचर, जनता से दूर और असल देरी के लिए जानी गयी न्याय व्यवस्था से। पुलिस और प्रशासन की पारदर्शिता पर भरोसा नहीं। हर बड़ा नेता और अफसर जरूरत पड़ने पर (एम्स के अपवाद के अलावा) निजी अस्पतालों में जाते हैं। ये सभी व्यवस्थाएं कठोर निर्णय तथा गहरे आत्मविश्वास की मांग करती हैं। वह देश जहां न कोई गरीब हो, न अशिक्षित और न ही अस्वस्थ-कमजोर तभी बन सकता है जब सीने में ईमानदारी की दिल और भुजाओं में भीतरी व बाहरी शत्रुओं का दलन करने का दम हो।

नरेंद्र मोदी ने नरेंद्र विक्रमादित्य बन यह काम शुरू कर दिया है। आगे-आगे देखिए और क्या होगा? यह मेरी दृष्टि में भारत के उस नए पर्व का श्रीगणेश है जब शक, हूण, बर्बर, तातार नष्ट होने की ओर जा रहे हैं। शुभम् करोति कल्याणम्।

- तरुण विजय

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