चंद्रयान-3 की सफलता 140 करोड़ भारतीयों के जीवन का स्वर्णिम पल बन गयी है

Chandrayaan 3
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लगभग 615 करोड़ रुपये की लागत से बने और 14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से यात्रा शुरू करने वाले चंद्रयान-3 के पूरे सफर ने पहले दिन से प्रत्येक भारतीय को अपने से जोड़े रखा और दुनियाभर से करोड़ों लोग टकटकी लगाए इस यात्रा से लगातार जुड़े रहे।

लगभग 41 दिनों की अद्भुत व अविस्मरणीय यात्रा के बाद, 23 अगस्त 2023 का दिन, 140 करोड़ दिलों की धड़कने और दुनियाभर की नजरें जिस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने के लिए बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। आखिरकार वो पल आ ही गया और जब हमारे चंद्रयान-3 ने चाँद के साउथ पोल पर सफल लैंडिंग कर विश्वपटल पर एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया। इस शुभ लैंडिंग से पूरा देश उत्साह व ऊर्जा से सराबोर है। हमारे वैज्ञानिकों ने पूरे देश को गौरवान्वित करने का एक ओर मौका दिया है, इस सफलता के लिए इसरो के सभी वैज्ञानिकों, कर्मचारियों के अथक परिश्रम को कोटि-कोटि साधुवाद एवं बधाई। अब से चाँद पर भी अशोक स्तंभ के रूप में भारत की छाप स्थापित हो गयी है।

चंद्रयान-3 मिशन के उद्देश्य

इसरो ने चंद्रयान-3 मिशन के लिए तीन मुख्य उद्देश्य निर्धारित किए थे। पहला लैंडर की चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग कराना। दूसरा चंद्रमा पर रोवर की विचरण क्षमताओं का अवलोकन और प्रदर्शन और तीसरा चंद्रमा की संरचना को बेहतर ढंग से समझने और उसके विज्ञान को अभ्यास में लाने के लिए चंद्रमा की सतह पर उपलब्ध रासायनिक और प्राकृतिक तत्वों, मिट्टी, पानी आदि पर वैज्ञानिक प्रयोग करना। इस पूरी यात्रा में चंद्रयान-3 ने अपने इन तीनों उद्देश्यों को बखूबी पूरा किया है। आगे आने वाले समय में शायद चंद्रयान-3 से हमें ऐसी अनेकों जानकारियां मिल सकती हैं, जिसके बारे में अभी सोच पाना मुश्किल है।

चंद्रयान-3 की यात्रा आसान नहीं थी

लगभग 615 करोड़ रुपये की लागत से बने और 14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से यात्रा शुरू करने वाले चंद्रयान-3 के पूरे सफर ने पहले दिन से प्रत्येक भारतीय को अपने से जोड़े रखा और दुनियाभर से करोड़ों लोग टकटकी लगाए इस यात्रा से लगातार जुड़े रहे। इसरो ने पृथ्वी से दूर कई बार चंद्रयान-3 की कक्षाएं बदली थीं। पृथ्वी की अलग-अलग कक्षाओं में परिक्रमा करते हुए एक अगस्त को स्लिंगशाट के बाद पृथ्वी की कक्षा छोड़कर यान चंद्रमा की कक्षा की ओर बढ़ा था। पांच अगस्त को इसने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया। छह अगस्त को पहली बार कक्षा बदली। इसके बाद नौ, चौदह और सोलह अगस्त को कक्षाओं में बदलाव कर यह चंद्रमा के और नजदीक पहुंचा। सत्रह अगस्त को चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल अलग-अलग हो गए और लैंडर मॉड्यूल चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ा। 18 और 19 अगस्त को दो बार डीबूस्टिंग (धीमा करने की प्रक्रिया) के बाद लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) से युक्त लैंडर मॉड्यूल चाँद की सबसे करीबी कक्षा में पंहुचा और इस असंभव लगने वाली चंद्रयान-3 की यात्रा को आख़िरकार हमने चुनौतियों के बावजूद भी पूरा कर लिया। बीच-बीच में कई बार दिलों की धड़कनें तेज भी हुईं और डर भी लगा, लेकिन अंत भला तो सब भला।

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साउथ पोल पर होने के मायने

भारत साउथ पोल पर पहुँचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। साउथ पोल से भारत को ऐसी सब जानकारियां मिल सकती हैं, जो वहां पर जीवन की संभावनाओं और अन्य संबंधित क्षेत्रों से जुड़ी संभावनाओं को ओर अधिक गति प्रदान करेगा। साउथ पोल पर पानी की सम्भावना की तलाश का मतलब होगा एक नई जिंदगी। इससे मंगल पर जाने के लिए चंद्रमा पर उतरकर फ्यूल ले सकेंगे। हाइड्रोजन-ऑक्सीजन मिलकर स्वच्छ राकेट फ्यूल बना सकते हैं, इससे पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ा जा सकता है। साउथ पोल पर कीमती धातुओं के रूप में सोना, प्लेटिनमम, टाइटेनियम और यूरेनियम होने की संभावना है। वहां पर बड़ी मात्रा में नॉन रेडिओएक्टिव हीलियम गैस और इलेक्ट्रॉनिक्स बनाने में काम आने वाली धातुएं भी मिल सकती हैं। चंद्रमा पर बर्फ के अणुओं का अध्ययन, चंद्रमा की सतह से अंतरिक्ष के अध्ययन की संभावना तलाशना, मिट्टी व प्राकृतिक संसाधनों का अध्ययन ऐसी अनेक संभावनाओं का भविष्य में पता चल सकता है।

          

स्पेस में बढ़ता भारत का वर्चस्व

स्पेस मार्किट में भारत के लिए संभावनाएं पहले से अधिक बढ़ गई है। अंतरिक्ष में भी पूरी दुनिया आज भारत का लोहा मानने लगी है। अब भारत ने स्पेस में अमेरिका सहित कई बड़े देशों का एकाधिकार तोड़ा है। पूरी दुनिया में सैटेलाइट के माध्यम से टेलीविज़न प्रसारण, मौसम की भविष्यवाणी और दूरसंचार का क्षेत्र बहुत तेज गति से बढ़ रहा है और चूंकि ये सभी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से संचालित होती हैं, इसलिए संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग में बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि इस क्षेत्र में चीन, रूस, जापान आदि देश प्रतिस्पर्धा में हैं, लेकिन यह बाजार इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि यह मांग उनके सहारे पूरी नहीं की जा सकती। ऐसे में चंद्रयान-3 की कम बजट में सफल लैंडिंग के बाद व्यवसायिक तौर पर भारत के लिए संभावनाएं पहले से अधिक बढ़ गयी है। आज कम लागत और सफलता की गारंटी इसरो की सबसे बड़ी ताकत बन गयी है। अंतरिक्ष बाजार में भारत की धमक का यह स्पष्ट संकेत है। इसके साथ ही भारत अब 200 अरब डालर के अंतरिक्ष बाजार में एक महत्वपूर्ण देश बनकर उभरा है। चांद और मंगल अभियान सहित इसरो अपने 100 से ज्यादा अंतरिक्ष अभियान पूरे करके पहले ही इतिहास रच चुका है। भविष्य में अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी क्योंकि यह अरबों डालर की मार्किट है। कुछ साल पहले तक फ्रांस की एरियन स्पेस कंपनी की मदद से भारत अपने उपग्रह छोड़ता था पर अब वह ग्राहक के बजाय साझीदार की भूमिका में पहुंच गया है। यदि इसी तरह भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे यान अंतरिक्ष यात्रियों को चांद, मंगल या अन्य ग्रहों की सैर करा सकेंगे। इसरो के मून मिशन, मंगल अभियान, स्वदेशी स्पेस शटल की कामयाबी और अब चंद्रयान-3 की सफलता के बाद इसरो के लिए संभावनाओं के नये दरवाजे खुल जाएंगे, जिससे भारत का निश्चित रूप से स्पेस में वर्चस्व पहले से अधिक बढ़ जाएगा।

जिसका इंतजार था, जिसके लिए करोड़ों-करोड़ों लोगों का दिल बेकरार था, वो पल हम सबने देखा और हम सब उसके साक्षी भी बने। यह अनुभव व सफलता 140 करोड़ भारतीयों के जीवन का स्वर्णिम पल रहेगा।  सच में चंद्रयान-3 की सफलता ने 2047 के अमृतकाल की शुरुआत बहुत बेहतरीन तरीके से की है और अब प्रत्येक भारतीय का विश्वास पहले से कई गुणा बढ़ गया है, कि भारत अब किसी भी क्षेत्र में रुकने वाला नहीं है। अब सभी दिलों की केवल एक ही धुन है "जय भारत, जय-जय भारत"। एक बार पुनः इसरो के सभी वैज्ञानिकों, कर्मचारियों की अथक मेहनत को सलाम व सभी भारतीयों को बधाई, क्योंकि चांद से मैं भारत बोल रहा हूँ।

-डॉ. पवन सिंह मलिक

(लेखक मीडिया विभाग, जे.सी. बोस विश्वविद्यालय, फरीदाबाद में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)

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