हुर्रियत नेताओं का उद्देश्य अराजकता की ठेकेदारी करना है
हुर्रियत नेताओं का उद्देश्य अराजकता की ठेकेदारी करना है। यह इनकी कमाई का जरिया है। ये इसे ही चलाते रहेंगे। ऐसे में इनके साथ वार्ता ना करने का फैसला उचित है। संप्रग शासन में इनका मनोबल बढ़ा था।
जम्मू−कश्मीर से संबंधित तीन घटनाएं इधर चर्चा में रहीं। पहली हुर्रियत के कुछ नेताओं ने पाकिस्तान से धन लेने की बात स्वीकार की। यह रकम उनको कश्मीर में गड़बड़ी फैलाने के लिये दी जाती थी। इसमें पत्थरबाजी भी शामिल है। दूसरी यह कि आर्मी−चीफ जनरल विपिन रावत ने मेजर लीथल गोगोई को सम्मानित किया। तीसरी घटना यह कि सेना ने पाकिस्तान ने ताजे सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो जारी किया। ये तीनों घटनाएं परोक्ष−अपरोक्ष रूप से जम्मू−कश्मीर के हालात को बयान करती हैं। अलगाववादी हुर्रियत नेताओं के साथ−साथ पाकिस्तान के साथ हमदर्दी रखने वाले कई नेताओं की हकीकत इस बार भी सामने आ गयी।
हुर्रियत नेताओं के पाकिस्तान से रिश्ते पहले भी चर्चा में रहे हैं। इसके दिग्गज की शान−शौकत वाली जिंदगी से भी बहुत बातें सामने आ जाती थीं। इन पर पाकिस्तान से दौलत लेने के आरोप लगते थे। यह एक प्रकार की ठेकेदारी थी। ये जम्मू−कश्मीर में अराजकता फैलाते थे। इसके लिये बच्चों, विद्यार्थियों, युवकों को दिहाड़ी दी जाती थी। वह सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकते थे। यह सब उन्हें उकसाने के लिये किया जाता था। इसके लिये आतंकी तत्वों को भी पनाह देने का आरोप लगता था। बताया जाता है कि कांग्रेस−नेशनल कांफ्रेंस के शासन में यहां अनेक संदिग्ध ठिकाने पनपे। आरोप लगता रहा है कि सरकार ने इस ओर जानबूझ कर ध्यान नहीं दिया। कुछ समय के लिये यहां शांति रही। लेकिन यह संदिग्धों के लिये तैयारी का मौका साबित हुआ। पत्थरबाजी की शुरुआत ठिकानों के निर्माण के बाद हो गयी थी। विडंबना यह है कि भारी सुरक्षा में घिरे हुर्रियत नेता व उनके बच्चे सामने नहीं आते इनमें कई नेता तो विदेशों में आबाद हैं। दिहाड़ी देकर सामान्य परिवार के बच्चों को आगे किया जाता है। हुर्रियत नेताओं की यह सच्चाई जनता को समझनी चाहिये।
पाकिस्तान से धन लेने की बात नेशनल फ्रंट के चेयरमैन नईम अहमद सहित कई अन्य नेताओं ने स्वीकार की है। अलगाववादी गिलानी ने इसे अपने हुर्रियत गुट का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। इससे साबित हुआ कि हुर्रियत नेता कभी भी पाकिस्तान में कश्मीर का विलय नहीं चाहेंगे। इनका उद्देश्य अराजकता की ठेकेदारी करना है। यह इनकी कमाई का जरिया है। ये इसे ही चलाते रहेंगे। ऐसे में इनके साथ वार्ता ना करने का फैसला उचित है। संप्रग शासन में इनका मनोबल बढ़ा था। दूसरी बात यह है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने इनको जांच के दायरे में ले लिया है। इनके साथ कठोर कार्रवाई होनी चाहिये। तीन जिलों में हिंसा फैलाकर ये जम्मू−कश्मीर को विवादित बताने का प्रयास करते हैं। यह पाकिस्तान की रणनीति है। घाटी में शांति हेतु इन अलगाववादियों की कमर तोड़नी होगी।
दूसरी महत्वपूर्ण घटना सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत द्वारा मेजर लीतुल गोगोई का सम्मान है। गोगोई ने पिछले दिनों एक पत्थरबाज को जीप में आगे बैठाकर अनेक लोगों को सुरक्षित निकालने का प्रयास किया था। यह प्रयोग सफल रहा था। इसमें पोलिंग बूथ की टीम व मेजर का अपनी सैन्य टुकड़ी थी। पत्थरबाज देखते रहे। अपने गैंग के सदस्य को जीप में आगे बैठे देखा तो किसी ने पत्थर नहीं चलाये।
मेजर गोगोई ने दूरदर्शिता दिखाई थी। देश को उनके साथ देना चाहिये था। जनरल रावत ने इसको समझा। उन्होंने बुद्धिमत्तापूर्ण फैसले के लिये मेजर गोगोई का सम्मान किया। इससे अन्य युवा अधिकारियों को प्रेरणा मिलेगी। वह अलगाववादियों, आतंकियों व पत्थरबाजों की हरकतों को नाकाम बनाने हेतु ऐसे ही प्रयोग करने को प्रेरित होंगे। इस प्रकरण से देश की सियासी विडंबना भी सामने आ गयी। जीप पर बंधे पत्थरबाज की फोटो सोशल मीडिया पर सबसे पहले जम्मू−कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और विवादित बयान के लिये मशहूर अरुंधती राय ने जारी की थी। दोनों ही पत्थरबाज के मानवाधिकार के लिये बेचैन थे। पत्थरबाज जिन्हें निशाना बनाते हैं, उनके मानवाधिकार के लिये इन्हें कभी ऐसे सिर पटकते नहीं देखा गया। जबकि पोलिंग पार्टी व सैनिकों को सुरक्षित निकालने के बाद मेजर गोगोई ने उस पत्थरबाज को पुलिस के हवाले कर दिया था। गोगोई मानवाधिकार के प्रति सजग थे।
यह अच्छी बात है कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने इस पर सियासत नहीं की। उन्होंने मेजर गोगोई के फैसले को बहुत अच्छा बताया। यह भी कहा कि पंजाब सरकार गोगोई को उचित सम्मान देगी। जनरल रावत ने जिस प्रकार मेजर लीथल गोगोई को सम्मानित किया, उसकी सराहना होनी चाहिये। जनरल रावत ने कुछ दिन पहले पत्थरबाजों से आतंकियों जैसे सलूक की बात कही थी। यदि ऐसा होने लगे तो घाटी के इस क्षेत्र में हुर्रियत व सीमा पार की गतिविधियों को रोकना आसान हो जाएगा। वैसे भी समस्या पुलमाना, अनंतनाग तक ही सीमित है। इसे जम्मू−कश्मीर की समस्या बताना गलत है।
तीसरी महत्वपूर्ण घटना यह है कि सेना ने पाकिस्तानी बंकरों को ध्वस्त कर एक और सर्जिकल स्ट्राइक की। भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कई बंकर तबाह कर दिये। इसमें पाकिस्तान के कई सैनिक व आतंकवादी मारे गये। भारतीय सैनिकों के साथ बेरहमी करने वाला भी मौत के घात उतार दिया गया। बताया जाता है कि इतने बड़े अस्त्रों के साथ ऐसी कार्रवाई पहले कभी नहीं हुई थी। अच्छा हुआ कि सेना ने इसका वीडियो बनाया। हमारे देश में ऐसे कई नेता हैं जो इन मसलों पर पाकिस्तान को अच्छी लगने वाली बात बोलते हैं। पिछली सर्जिकल स्ट्राइक की यादें अभी ताजा हैं। तब अरविन्द केजरीवाल, संजय निरूपम, मणिशंकर अय्यर, कपिल सिब्बल, पी. चिदंबरम आदि अनेक नेता सबूत मांग रहे थे। राहुल गांधी ने तो खून की दलाली की बात कह दी। ऐसी बातें शत्रु पक्ष करता तो समझ में आ सकती थी। लेकिन अपने ही जिम्मेदार नेताओं के बयान शर्मशार करने वाले थे। पत्थरबाज को जीप में बांधने या सर्जिकल स्ट्राइक करने पर ना जाने क्यों इनकी पीड़ा जाग जाती है। इनकी बातें पाकिस्तान को ही अच्छी लगती हैं। इस प्रकार के नेता अपने देश की भावनाओं को समझने में विफल हैं। इसलिए ये सभी आज विश्वास के संकट से गुजर रहे हैं। राष्ट्रहित से जुड़े विषयों को वोट बैंक के नजरिए से देखना इन्हीं पर भारी पड़ रहा है। लेकिन ये सचेत होने को तैयार नहीं हैं।
- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
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