भाजपा के पास कुछ कर दिखाने के लिए अब बहुत कम समय बचा है

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ललित गर्ग । Dec 24 2018 6:52PM

भारत में अमीर देशों की पॉलिसी लागू करने से भारत की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई है। शेष बची स्वअल्प अवधि में ही सरकार को कुछ ऐसे मौलिक कदम उठाने होंगे जिनसे अर्थव्यवस्था को दीर्घ स्तर पर नई दिशा मिले।

वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल के साढ़े चार साल बीत गए हैं। आम चुनाव को कुल 5 माह का समय बाकी है। भाजपा सरकार के लिये यही वह समय है जिसका आह्वान है अभी और इसी क्षण शेष रहे कामों को पूर्णता दी जाये, यही वह समय है जो थोड़ा ठहर कर अपने बीते दिनों के आकलन और आने वाले दिनों की तैयारी करने का अवसर दे रहा है। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम एवं लोकसभा चुनाव की दस्तक जहां केन्द्र एवं विभिन्न राज्यों में भाजपा को समीक्षा के लिए तत्पर कर रही है, वहीं एक नया धरातल तैयार करने का सन्देश भी दे रही है। इस नये धरातल की आवश्यकता क्यों है ? क्योंकि पिछले चार वर्षों में भाजपा सरकार ने यद्यपि बहुत कुछ उपलब्ध किया है, कितने ही नये रास्ते बने हैं। फिर भी किन्हीं दृष्टियों से हम भटके भी हैं। गाय और राममंदिर के मुद्दों पर हिंदू वोट का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की है। तलाक के नाम पर मुस्लिम महिलाओं के वोटों की दिशा को बदला है। अर्थव्यवस्था को विकसित देशों की तर्ज पर बढ़ाने की कोशिशें की गयीं। स्टार्टअप, मेक इन इंडिया और बुलेट ट्रेन की नवीन परियोजनाओं को प्रस्तुति का अवसर मिला।

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नोटबंदी और जीएसटी को लागू किया गया, भारत में भी डिजिटल इकॉनमी स्थापित करने के प्रयास हुए। भारत की विदेशों में साख बढ़ी। लेकिन घर-घर एवं गांव-गांव में रोशनी पहुंचाने के बावजूद आम आदमी अन्य तरह के अंधेरों में डूबा है। भौतिक समृद्धि बटोर कर भी न जाने कितनी तरह की रिक्तताओं की पीड़ा भोग रहा है। गरीब अभाव से तड़पा है तो अमीर अतृप्ति से। कहीं अतिभाव, कहीं अभाव। बस्तियां बस रही हैं मगर आदमी उजड़ता जा रहा है। भाजपा सरकार जिनको विकास के कदम मान रही है, वे ही उसके लिए विशेष तौर पर हानिकारक सिद्ध हुए हैं। इस पर गंभीर आत्म-मंथन करके ही भाजपा भविष्य का नया धरातल तैयार कर सकेगी।

भाजपा के लिये यह अवसर जहां अतीत को खंगालने का अवसर है, वहीं भविष्य के लिए नये संकल्प बुनने का भी अवसर है। उसे यह देखना है कि बीता हुआ दौर उसे क्या संदेश देकर जा रहा है और उस संदेश का क्या सबब है। जो अच्छी घटनाएं बीते साढ़े चार साल के नरेन्द्र मोदी शासन में हुई हैं उनमें एक महत्वपूर्ण बात यह कही जा सकती है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जनजागृति का माहौल बना- एक विकास क्रांति का सूत्रपात हुआ, विदेशों में भारत की स्थिति मजबूत बनी। लेकिन जाते हुए वक्त ने अनेक घाव भी दिये हैं, जहां नोटबंदी ने व्यापार की कमर तोड़ दी और महंगाई एक ऐसी ऊंचाई पर पहुंची, जहां आम आदमी का जीना दुश्वार हो गया है। नोटबंदी और जीएसटी ने छोटे उद्योगों को पस्त कर दिया। ये छोटे उद्योग ही रोजगार उत्पन्न करते थे, फलस्वरूप रोजगारों का संकुचन हुआ। रोजगार के संकुचन से आम आदमी की क्रय शक्ति में गिरावट आयी है और बाजार में माल की मांग में ठहराव आ गया है।


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आदिवासी-दलित समाज की नाराजगी भी एक अवरोध है। हर बार चुनाव के समय आदिवासी समुदाय को बहला-फुसलाकर उन्हें अपने पक्ष में करने की तथाकथित राजनीति इस बार असरकारक नहीं होने वाली है। क्योंकि आदिवासी-दलित समाज बार-बार ठगे जाने के लिए तैयार नहीं है। देश में कुल आबादी का 11 प्रतिशत आदिवासी है, जिनका वोट प्रतिशत लगभग 23 है क्योंकि यह समुदाय बढ़-चढ़ कर वोट देता है। बावजूद देश के आदिवासी-दलित के लिये सरकार कोई ठोस कार्यक्रम नहीं दे पायी। ये समुदाय दोयम दर्जे के नागरिक जैसा जीवन-यापन करने को विवश हैं। यह तो नींव के बिना महल बनाने वाली बात हो गई। भाजपा सरकार को आदिवासी-दलित हित और उनकी समस्याओं को हल करने की बात पहले करनी होगी।

भारत में अमीर देशों की पॉलिसी लागू करने से भारत की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई है। शेष बची स्वअल्प अवधि में ही सरकार को कुछ ऐसे मौलिक कदम उठाने होंगे जिनसे अर्थव्यवस्था को दीर्घ स्तर पर नई दिशा मिले, जनता को संतुष्ट किया जा सके और आम आदमी का खोया विश्वास पुनः हासिल किया जा सके। जीएसटी से जुड़ी जटिलताओं को दूर करना होगा, क्योंकि इसी से जुड़ा रोजगार का मुद्दा है। रोजगार सृजन में ठहराव का यह प्रमुख कारण है। किसानों से जुड़ी समस्याओं पर भी केन्द्र सरकार को गंभीर होना होगा। धर्म से जुड़े मुद्दे भी सरकार के लिये घातक सिद्ध हुए हैं, उनके प्रति व्यावहारिक एवं उदार दृष्टिकोण अपनाना होगा। गंगा पर जहाज चलाने की योजनाओं पर भी पुनर्विचार अपेक्षित है। क्योंकि भारत में गंगा को मां माना जाता है। समय कम है, लेकिन इन नीतियों से देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिलेगी। इनसे वर्तमान सरकार को ही लाभ नहीं पहुंचेगा बल्कि भावी सरकारें भी लाभान्वित होंगी। 2019 के चुनाव में जो भी पार्टी सरकार बनाएगी उसे भी अंततः यही नीति लागू करनी होगी और वही उसकी सफलता का आधार भी बनेगी।

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विभिन्न राजनीतिक दलों ने मोदी सरकार की तीव्र आलोचना की है। उनका कहना है कि मोदी सरकार ने साढ़े चार साल में आम जनता के लिए कुछ नहीं किया। यह सरकार हर मामले में विफल रही है। चाहे वो महंगाई का मुद्दा हो या गरीबी और बेरोजगारी हो-सब इस सरकार में लगातार बढ़ती जा रही है। पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी ऐतिहासिक स्तर पर इतनी ज्यादा बढ़ी हैं, जो कि पहले कभी नहीं बढ़ी। इससे जनता बहुत परेशान है। विपक्षी पार्टियों का यह भी आरोप है कि मोदी सरकार झूठे वादों और झूठ के सहारे से जनता को गुमराह कर रही है। देश में अराजकता और अव्यवस्था का माहौल है। मोदी सरकार के आने के बाद महिलाओं का शोषण और अत्याचार बढ़ा है। विपक्ष की मानें तो भाजपा की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। भाजपा के सहयोगी दल भी भाजपा की नीतियों के कारण और उनके व्यवहार के कारण एक-एक करके अलग होते जा रहे हैं। जनता का विश्वास भी मोदी और उनकी सरकार में बहुत कम हुआ है। तस्वीर का यह एक पहलू है। दूसरा पहलू यह भी है कि आर्थिक मोर्चे पर हम न सिर्फ तेजी से आगे बढ़ रहे हैं बल्कि किसी भी तरह का झटका झेलने में सक्षम हैं। इस साल सेंसेक्स ने लगातार ज्वारभाटा की स्थिति बनाए रखी हालांकि पेट्रोल की कीमतों ने काफी परेशान किया। जब दुनिया की बड़ी आर्थिक एवं राजनीतिक सत्ताएं धराशायी होती दिख रही हैं तब भी भारत ने स्वयं को संभाल रखा है। इसका श्रेय नरेन्द्र मोदी सरकार को जाता है। एक सफल एवं सक्षम लोकतंत्र के लिये जैसी नैतिक प्रतिबद्धताएं अपेक्षित होती हैं, उन प्रतिबद्धताओं को लेकर चलने का साहस भी भाजपा ने दिखाया है और उसी के कारण भाजपा को कठिनाई का सामना भी करना पड़ा है। जब राजनीति में नैतिकता एवं शुचिता के साथ आगे बढ़ने का संकल्प होता है तो चुनावी संग्राम में हार का मुंह भी देखना पड़ता है। लेकिन इसकी परवाह न करते हुए नरेन्द्र मोदी ने नैतिक प्रतिबद्धताओं को प्राथमिकता दी है।

आवश्यकता है कि राष्ट्रीय अस्मिता के चारों ओर लिपटे अंधकार के विषधर पर भाजपा अपनी पूरी ऊर्जा और संकल्पशक्ति के साथ प्रहार करे तथा वर्तमान की हताशा में से नये विहान और आस्था के उजालों का आविष्कार करे। सदियों की गुलामी और स्वयं की विस्मृति का काला पानी हमारी नसों में अब भी बह रहा है। इन हालातों में भारत ने कितनी सदियों बाद खुद को आगे बढ़ता देखा है। इसलिए आम जनता को गुमराह करने वाली राजनीति को समझना होगा। अगर आमदनी बढ़ रही है, तो उसमें जरूर कोई दमघोंटू फंदा छिपा होगा, तरक्की जरूर बर्बादी की आहट है, विकास में गुलामी के बीज जरूर मौजूद हैं- विपक्षी दलों द्वारा रोपी गयी इन मानसिकताओं से उबरे बिना हम वास्तविक तरक्की की ओर अग्रसर नहीं हो सकते।

-ललित गर्ग

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