कश्मीर में पत्थरबाजी और आतंकवाद पर नोटबंदी का असर नहीं

सुरेश डुग्गर । Nov 25 2016 12:12PM

आंकड़ों पर एक नजर दौड़ाएं तो यह साफ होता है कि कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद आरंभ हुआ पत्थरबाजी का क्रम नोटबंदी से पहले ही ढलान पर था।

सरकार लाख दावा करती रहे पर सच्चाई यह है कि कश्मीर में पत्थरबाजी पर नोटबंदी का कोई असर नहीं पड़ा है। इसे आंकड़े खुद बयां करते हैं कि नोटबंदी के बाद भी कश्मीर में पत्थबराजी रूकी नहीं है। अगर आंकड़ों पर एक नजर दौड़ाएं तो यह साफ होता है कि कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद आरंभ हुआ पत्थरबाजी का क्रम नोटबंदी से पहले ही ढलान पर था। यही नहीं केंद्र सरकार के दावों के बावजूद यह एक कड़वी सच्चाई है कि नोटबंदी के कारण कश्मीर के आतंकवाद पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। कारण पूरी तरह से स्पष्ट है कि पिछले कुछ सालों से कश्मीर के आतंकवाद को होने वाली फंडिंग असली भारतीय करंसी से हो रही है न कि नकली नोटों से। हालांकि नोटबंदी के बाद यह उम्मीद की गई थी कि कश्मीर में आतंकवादियों की कमर टूटेगी और पत्थरबाजों पर नकेल कसेगी। पर ऐसा हुआ नहीं। जो हुआ वह बहुत दर्दभरा है। राज्य की अर्थव्यवस्था कश्मीर के टूरिज्म और वैष्णो देवी की यात्रा पर आने वालों पर टिकी थी। 

आंकड़ों के मुताबिक, 8 नवम्बर की रात को नोटबंदी की घोषणा के बाद कश्मीर में समाचार भिजवाए जाने तक 15 घटनाएं पत्थरबाजी की हो चुकी थीं। इनमें से अकेले 10 घटनाएं कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में सिर्फ रविवार को ही हुई थीं। यह सच है कि कश्मीर में 1 नवम्बर से लेकर 14 नवम्बर तक पत्थरबाजी की कुल 49 घटनाएं हुई थीं। और इनमें से अगर नोटबंदी के बाद वाली 15 घटनाएं निकाल दी जाएं तो इस माह के पहले 8 दिनों में पत्थरबाजी की 34 घटनाएं रिकार्ड की गई थीं।

पत्थरबाजी की घटनाओं में आने वाली कमी को सरकारी तौर पर नोटबंदी से जोड़ा जा रहा ह। पर यह सच्चाई नहीं है। अगर पत्थरबाजी की घटनाओं के आंकड़ों पर एक नजर डालें तो यह साफ होता है कि 8 जुलाई को बुरहान वानी की मौत के बाद पत्थरबाजी की घटनाओं में अचानक आया उछाल अगले दिनों में कम होता गया था। इसके लिए आपको आंकड़ों को जानना जरूरी है। जुलाई 2016 में मात्र 21 दिनों में ही पूरी वादी में पत्थरबाजी की 820 घटनाएं हुईं। तो अगले माह भी पत्थरबाजी का माहौल कुछ ऐसा ही रहा पर थोड़ी कमी जरूर आई। रिकार्ड के अनुसाार, अगस्त में यह आकंड़ा 747 था पर अगले दो महीनों में इनकी संख्या और ज्यादा नीचे आ गई थी। यह इतनी नीचे आ गई थी कि कोई सोच भी नहीं सकता था। 

रिकार्ड के मुताबिक सितम्बर में पत्थरबाजी की मात्र 157 घटनाएं हुईं और अक्तूबर में पत्थरबाजी की 119 घटनाएं हुईं। दरअसल राज्य सरकार तथा केंद्र सरकार के प्रयासों और सुरक्षा बलों की सख्ती के बाद इन घटनाओं में कमी आनी आरंभ हो गई थी जो 83 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। और इसमें नोटबंदी से पहले ही दिनों दिन और कमी आने लगी थी। यह इसी से स्पष्ट होता था कि नवम्बर में पहले 14 दिनों में पत्थरबाजी का आंकड़ा सिमट कर 49 रह गया था। और इसी कमी को अब नोटबंदी के साथ जोड़ कर सबको गुमराह करने की कोशिश की जा रही है जिस पर अब पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी एतराज जताया है। उन्होंने ट्विटर पर अपना एतराज प्रकट करते हुए इस पर आक्रोश प्रकट किया है कि जम्मू कश्मीर के युवकों पर यह आरोप लगाना गलत है कि वे 500-1000 रूपयों के नोटों के लिए पत्थर मारते रहे हैं।

अधिकारी भी यह बात स्वीकार करते हैं जो पिछले कई सालों से कश्मीर में फैले आतंकवाद के नाश के लिए जुटे हुए हैं और आतंकवाद को होने वाली फंडिंग पर कई सालों से नजर भी रखे हुए हैं। फिलहाल कई सालों से ऐसी फंडिंग का रैकेट तोड़ने में ये अधिकारी नाकाम रहे हैं। ऐसे एक अधिकारी के बकौल, जबसे हवाला चैनलों की नकेल कसी गई है अलगाववादियों को मिलने वाला धन असली भारतीय करंसी में लीगल तरीके से छोटी छोटी रकमों के रूप में ऐसे तरीकों से मुहैया करवाया जा रहा है जिन्हें तलाश कर पाना आसान नहीं है। अधिकारियों के बकौल, कभी कभार ऐसी धनराशि ऐसे आम नागरिकों के खातों के माध्यम से भी ट्रांसफर होती रही है जो कश्मीर में आतंकवाद फैला रहे युवकों से सहानुभूति रखते हैं।

कश्मीर में आतंकवाद पर नजर रखने वाले एक पुलिस अधिकारी का कहना था कि ऐसे में जबकि कश्मीर के आतंकवाद में अब स्थानीय युवकों की भूमिका सीमित होती जा रही है तो आतंकवाद की फंडिंग के लिए नगदी का प्रवाह उतना नहीं रह गया है जो एक दशक पहले हुआ करता था। हालांकि कुछेक अलगाववादी नेताओं के पास नगदी कुछ चैनलों से पहुंचाई जाती रही है वे नोटबंदी के कारण थोड़ा परेशान जरूर हैं। पर वे जानते हैं कि उनके पास जो नगदी है वह असली नोटों के रूप में है जिस कारण वे उसे बदलवाने की जुगत में जुट गए हैं।

एक दशक पहले तक कश्मीर के आतंकवाद की फंडिंग नकली नोटों से हुआ करती थी लेकिन कुछ साल पहले सईद अली शाह गिलानी के खास गुलाम मुहम्मद बट को नकली नोटों की बहुत बड़ी खेप के साथ पकड़े जाने के बाद अलगाववादियों को मिलने वाली नगदी का प्रारूप और रास्ता पूरी तरह बदल गया था। उसके बाद उन्हें लीगल चैनल से असली भारतीय नोट मुहैया करवाए जाने लगे थे। उन्हें छोटी छोटी रकम के रूप में फंडिंग आरंभ हुई और यही सुरक्षा एजेंसियों के लिए सिरदर्द इसलिए बन गया क्योंकि वे आज तक इस रैकेट को तोड़ पाने में नाकाम रहे हैं।

हालांकि जम्मू कश्मीर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी उम्मीद करते हैं कि नोटबंदी के बाद कश्मीर में आतंकवाद को होने वाली फंडिंग में कमी आएगी पर वे भी आशंकित इसलिए थे क्योंकि वे भी जानते थे कि अलगाववादियों और आतंकियों को मिलने वाली नगदी का प्रवाह कानूनी तरीकों से होने के कारण उन्हें अलगाववादियों पर कानूनी शिकंजा कसने में दिक्कत होती है।

नोटबंदी का नतीजा यह हुआ कि कश्मीर की ओर रूख करने वाले टूरिस्टों ने मुख मोड़ लिया और वैष्णाो देवी आने वालों की संख्या में 40 फीसदी की कमी आ गई। यही नहीं वैष्णो देवी में चढ़ावे में 50 प्रतिशत की कमी आ गई और कटड़ा व जम्मू में खरीददारी न के बराबर ही पहुंच चुकी है। नोटबंदी के बाद माता वैष्णो देवी के दरबार में प्रतिदिन चढ़ावे में 50 फीसद तक कमी दर्ज की गई है। इसका बड़ा कारण बोर्ड द्वारा चढ़ावे के रूप में 500-1000 रुपये के पुराने नोट लेना बंद करना और पिछले एक सप्ताह में यात्रा में करीब 40 फीसद गिरावट भी है। नवंबर माह में रोजाना औसतन यात्रा 25-26 हजार के करीब रहती थी, लेकिन पिछले एक सप्ताह से 10 से 15 हजार श्रद्धालु ही रोज कटड़ा पहुंच रहे हैं। यात्रा जब 20-25 हजार के बीच रहती है तो मां के दरबार में प्रतिदिन औसतन 40 लाख रुपये नकद चढ़ावा आता है, लेकिन नोटबंदी के बाद से रोजाना यह चढ़ावा 20 लाख यानी आधा तक सिमट गया है।

श्राइन बोर्ड ने अपने तमाम काउंटरों पर 500-1000 रुपये के पुराने नोट के रूप में चढ़ावा लेना बंद कर दिया है। चढ़ावे के लिए बोर्ड की ओर से कटड़ा से लेकर भवन तक कई काउंटर भी स्थापित किए गए हैं, जिन पर बकायदा रसीद देकर चढ़ावा लिया जाता है। इन सभी काउंटर पर अब ये नोट स्वीकार नहीं किए जा रहे। ऐसे में यह 20-22 लाख वही हैं जो लोग दानपात्रों में डाल रहे हैं, हालांकि इनमें अधिकतर नोट 500-1000 ही हैं। श्राइन बोर्ड के चीफ एग्जीक्यूटिव आफिसर (सीईओ) अजीत कुमार साहू ने भी चढ़ावे में कमी स्वीकार करते हुए कहा है कि नोटबंदी के बाद यात्रा में अचानक गिरावट आई है, जो एक कारण हो सकता है। चढ़ावे के रूप में जो 500-1000 रुपये के नोट दानपात्र में आ रहे हैं, उन्हें नियमानुसार बोर्ड के बैंक खाते में जमा करवाया जा रहा है।

बोर्ड के सीईओ अजीत कुमार साहू के मुताबिक श्रद्धालुओं को हेलीकाप्टर सेवा उपलब्ध करवा रहे आपरेटरों को भी स्वाइप मशीनें इस्तेमाल करने के निर्देश दिए गए हैं। श्रद्धालुओं को किसी तरह की कोई असुविधा न हो, इसके लिए मौके पर नोट बदलने की भी व्यवस्था की जा रही है। बोर्ड के सीईओ अजीत कुमार साहू के अनुसार, नोटबंदी के कारण श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो, इसके लिए यात्रा मार्ग पर 70 अतिरिक्त स्वाइप मशीनें लगाई गई हैं। बोर्ड के सभी भोजनालय, प्रसाद की दुकानों व काफी काउंटर तक स्वाइप मशीन से भुगतान की व्यवस्था की गई है। नोट बदलने के लिए बोर्ड ने बैंक के सहयोग से निहारिका भवन व दरबार में काउंटर स्थापित किए हैं। बैंक के पास पर्याप्त नोट न होने पर बोर्ड अपने चढ़ावे से 100-100 के नोट बैंकों को जारी कर रहा है। गत दिनों दरबार में श्रद्धालुओं में सिक्के तक बांटे गए।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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