दूरगामी सोच का परिणाम है वंदे गंगा जल संरक्षण-जन अभियान

ऐसा नहीं है कि इन हालातों से सरकार अनजान हो यहीं कारण है कि राजस्थान की भजन लाल सरकार ने मानसून के ठीक पहले पर्यावरण दिवस के अवसर पर 5 जून से 20 जून तक समूचे प्रदेश में वंदे गंगा जल संरक्षण-जन अभियान संचालित कर रही है।
जल है तो कल है कि चुनौती के बीच राजस्थान की भजन लाल सरकार द्वारा समूचे प्रदेश में मानसून से पूर्व 5 जून से 20 जून तक वंदे गंगा जल संरक्षण- जन अभियान इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाता है कि राजस्थान सहित पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, दादरा-नगर हवेली और दमन दीव देष के ऐसे राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश है जहां भूजल की निकासी भूजल के पुनर्भरण से कहीं अधिक हो रही है। अगर राजस्थान ही की बात करें और वह भी शुद्ध पेयजल की बात की जाए तो पीने योग्य पानी और उसकी उपलब्धता में 30 फीसदी का अंतर है। 30 प्रतिशत का अंतर कोई छोटा मोटा अंतर नहीं है ऐसे में इसे भलीभांति समझा जा सकता है कि राज्य सरकार को नागरिकों के लिए पीने के शुद्ध पानी की उपलब्धता बनाये रखने की चुनौती से कैसे दो-चार होना पड़ता होगा। वास्तव में यह गंभीर समस्या है। समूचे विश्व में पानी की उपलब्धता का संकट है। यदि हम भारत की ही बात करें तो 1950 में जहां प्रतिव्यक्ति सालाना 5200 घनमीटर पानी की उपलब्धता थी वह 2024 आते आते 1401 घनमीटर रह गई है और यदि विशेषज्ञों की माने तो 2050 तक यह उपलब्धता 1191 घनमीटर ही रह जाने की संभावना हो गई है। यही कारण है प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों कहा कि हमें पानी के उपयोग के संदर्भ में कम करें, पुनः उपयोग करें और पुनः चक्रित करने की नीति पर चलना होगा। देश में जल के पुनर्भरण में लगातार कमी आ रही है। प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता में आज भारत 182 वें स्थान पर आ गया है। भूजल की उपलब्धता को देखा जाए तो 1950 से 2024 के दौरान 73 प्रतिशत की कमी आ गई है। दिल्ली, चैन्नई, पुणे, हैदराबाद, मुंबई सहित देश के अनेक छोटे बड़े शहर पेयजल की गंभीर समस्या से जुझ रहे हैं।
विश्वव्यापी जल संकट को देखते हुए राजस्थान की भजन लाल सरकार की इस पहल को महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए। दरअसल देश में उपलब्ध भूजल का 87 प्रतिशत उपयोग खेती किसानी में होता है तो 11.7 प्रतिशत उपयोग घरेलू कार्यों और लगभग 2 प्रतिशत उपयोग ही औद्योगिक क्षेत्र में होता है। संकट का बड़ा कारण परंपरागत जल संग्रहण स्रोतों का नष्ट होना, उनमें अवरोध होना, बढ़ती आबादी और शहरी क्षेत्र में आबादी का घनत्व बढ़ने के साथ ही अत्यधिक पानी की आवश्यकता वाली उपज को बढ़ावा देने से जल दोहन अधिक होने लगा है। सीवेज के कारण पानी का अत्यधिक उपयोग, बरसाती जल का प्रोपर संग्रहण नहीं होना, जंगलों का कक्रिट के जंगलों में बदलना और पानी के अन्य कार्यों में भी अत्यधिक उपयोग से पानी का संकट दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। अनियमित बरसात और बरसाती चक्र में बदलाव को भी एक कारण माना जा सकता है। आज जितने पानी के पीने के लिए आवश्यकता होती है उससे कई गुणा अधिक पानी फ्लस करने, वाहनों की धुलाई, पौधों के रखरखाव व अन्य कार्यों में होने लगा है। सीमेंट, लोहा, जस्ता और अब एमसेंड आदि उद्योगों के लिए भी अधिक पानी की आवश्यकता होने लगी है।
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एक समय था जब सावन भादों में बरसात की झड़ी लगती थी और कई दिनों तक सूर्य देवता के दर्शन नहीं होते थे तो उस झड़ी का पानी सीधे जमीन में जाता था और वह प्राकृतिक वाटर हार्वेस्टिंग का सिस्टम होता था। सड़कों के साथ साथ ढ़लान क्षेत्र होता था और वहां एकत्रित पानी क्षेत्र में जल स्तर बढ़ाने के साथ ही पशुओं के पीने के काम भी आ जाता था। राजस्थान में रेगिस्तानी इलाकों में टांके आदि परंपरागत जल संग्रहण के साधन होते थे आज हम इन्हें भूलते जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि गिरते भूजल स्तर और जल संग्रहण को लेकर सरकार गंभीर ना हो। बल्कि कहना तो यह होगा कि सरकार अत्यधिक गंभीर होने के बावजूद जो परिणाम आने चाहिए वह प्राप्त नहीं हो सके हैं। इसका एक प्रमुख कारण दूरगामी सोच के साथ नीति और क्रियान्वयन का ना होना भी है। सरकार द्वारा वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम सरकार स्तर पर बड़े स्तर पर बनाने और निजी मल्टी स्टोरिज व सरकार गैरसरकारी संस्थानों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाने पर जोर और बनाये जाने के बावजूद उनकी गुणवत्ता को लेकर सवाल इसलिए उठते रहते हैं कि ना तो रखरखाव पर ध्यान दिया जाता है और ना ही पानी के बहाव का पूरा ध्यान देने के कारण यह अपने उद्देश्यों पर खरे नहीं उतरे हैं।
ऐसा नहीं है कि इन हालातों से सरकार अनजान हो यहीं कारण है कि राजस्थान की भजन लाल सरकार ने मानसून के ठीक पहले पर्यावरण दिवस के अवसर पर 5 जून से 20 जून तक समूचे प्रदेश में वंदे गंगा जल संरक्षण-जन अभियान संचालित कर रही है। सबसे अच्छी बात यह है कि इस अभियान में जनभागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया है और स्वयं मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने एक प्रमुख समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका की मुहिम पर रामगढ़ में श्रमदान में हिस्सा लेकर आमजन को संदेश दिया है। राज्य सरकार द्वारा समूचे प्रदेश में इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। अभियान के दौरान जल संरचनाओं का जीर्णोद्धार, जल प्रदूषण में कमी, पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुकता, भूजल पुनर्भरण, व्यवहार परिवर्तन से बेहतर जल उपयोग और व्यापक स्तर पर पौधारोपण के हरियालो राजस्थान की तैयारी आरंभ की है। रामगढ़ राजस्थान की राजधानी जयपुर की किसी जमाने में पेयजल की उपलब्धता के लिए जीवन रेखा माना जाता था और 1982 के एशियाड़ की नौकायन प्रतियोगिता के बाद इसके बहाव क्षेत्र में अतिक्रमणों का जो ग्रहण लगा वह इसे सूखे मैदान में बदल कर रख दिया है। पिछले लंबे समय से रामगढ़ को पुनर्जीवित करने की मुहिम चल रही है लगता है सरकार ने यहां वैकल्पिक स्रोत से पानी लाने की जो योजना बनाई है और समग्र प्रयासों से परंपरागत पानी के अवरुद्ध रास्ते चलने लगते हैं तो रामगढ़ को नया जीवन मिल सकेगा। रामगढ़ तो एक उदाहरण मात्र है देश व प्रदेश में ऐसे हजारों की संख्या में जल संग्रहण स्रोत है जो अतिक्रमणों व शहरीकरण की भेंट चढ़ रहे हैं।
शहरीकरण के विस्तार के समय यदि परंपरागत जल बहाव क्षेत्रों से छेड़छाड़ नहीं की जाए तो हालात इतने अधिक नहीं बिगड़े पर पैसा कमाने का लालच हमारें आने वाली पीढ़ी के लिए संकट लाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने पाणी रो मान राखो-जीवण रो ध्यान राखो समयानुकूल संदेश दिया है। सरकार की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि सभी मंत्रियों और प्रभारी सचिवों को इस कार्य की जिम्मेदारी सौंपी गई है। स्वयं मुख्यमंत्री श्रमदान कर रहे हैं। निश्चित रुप से इससे अवेयरनेस तो आयेगी ही जनभागीदारी भी बढे़गी। देश के सभी राज्यों में इस तरह के अभियान चलाये जाने चाहिए। भले ही आज कुछ राज्यों में पानी का संकट दिखाई नहीं दे रहा हो पर पानी की बचत और भूजल के संग्रहण के प्रति हमें गंभीर होना ही होगा। पानी के पुनः उपयोग और पेयजल के अतिरिक्त अन्य कार्यों के लिए पुनःचक्रिकृत पानी के उपयोग को आदत बनाना होगा। हांलाकि पानी के पुनःचक्रिकरण के लिए अभी व्यापक स्तर पर काम करने की आवश्यकता है। सरकार को प्राथमिकता से एसटीपी बनाने होंगे और इस तरह के पानी का उपयोग बढ़ाना ही होगा। भूजल के संग्रहण और भूजल के दोहन के बीच समन्वय बनाना होगा नहीं तो आने वाला समय बहुत अधिक चिंतनीय और गंभीर होगा, इसमें किसी तरह का संदेह नहीं होना चाहिए। सही मायने में कहा जाए तो वंदे गंगा जल संरक्षण-जन अभियान सरकार की दूरगामी सोच का जनहितेषी कार्यक्रम माना जाना चाहिए क्योंकि सरकार की समझ और गंभीरता को इसीसे से समझा जा सकता है कि कार्यक्रम को आमजन से जोड़ने के लिए ही जनअभियान नाम दिया गया है।
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
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