क्या Asim Munir ने ही America को दी थी Iran के परमाणु ठिकानों की जानकारी?

Trump Munir
ANI

यह पहली बार नहीं है कि जब पाकिस्तान ने अपने किसी सहयोगी की पीठ में ही छुरा घोंपा हो। 2022 में काबुल में जब 9/11 हमले का षड्यंत्रकारी अयमान अल जवाहिरी मारा गया था तब भी यह बात सामने आई थी कि पाकिस्तान ने ही उसकी गुप्त लोकेशन के बारे में अमेरिका को बताया था।

पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल असीम मुनीर की अमेरिका यात्रा से जुड़े तथ्य धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं जोकि काफी चौंकाने वाले हैं। हम आपको बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मुनीर के लंच से जुड़ी जो खबर पहले सामने आई थी उसमें कहा गया था कि अमेरिका ने ईरान पर हमले की स्थिति में पाकिस्तानी एअरबेस का उपयोग करने के मुद्दे पर बात की थी लेकिन अब जो बात सामने आ रही है वह काफी आश्चर्यजनक है। हम आपको बता दें कि कहा जा रहा है कि लंच कराने से पहले अमेरिका की ओर से ईरान के परमाणु संयंत्रों का नक्शा मुनीर को दिखाया गया और उनसे इस बात की पुष्टि करवाई गयी कि ईरान कहां पर परमाणु बम बना रहा है। इस मुलाकात के ठीक बाद ही अमेरिकी बमवर्षक विमानों ने बंकर बलास्टर बम ईरान के परमाणु संयंत्रों पर गिराकर उसे तहस-नहस कर दिया था। इसलिए सवाल उठ रहा है कि अगर पाकिस्तान ने ही अमेरिका को ईरान के परमाणु ठिकानों के बारे में जानकारी लीक की थी तो इस्लामाबाद ने डबल गेम क्यों खेला? एक ओर वह अमेरिका को ईरान की खुफिया जानकारी मुहैया करा रहा था तो दूसरी ओर अमेरिकी हमले की निंदा करते हुए ईरान के साथ खड़ा होने की नौटंकी भी कर रहा था। हम आपको बता दें कि यह पहली बार नहीं है कि जब पाकिस्तान ने अपने किसी सहयोगी की पीठ में ही छुरा घोंपा हो। 2022 में काबुल में जब 9/11 हमले का षड्यंत्रकारी और अल कायदा का प्रमुख अयमान अल जवाहिरी मारा गया था तब भी यह बात सामने आई थी कि पाकिस्तान ने ही उसकी गुप्त लोकेशन के बारे में अमेरिका को बताया था।

अमेरिका जानता है कि ईरान ही नहीं बल्कि कई और देश जो अपना परमाणु कार्यक्रम चला रहे हैं उन्हें किसी ना किसी तरह पाकिस्तान का सहयोग मिलता है। अमेरिका जानता है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम में भी पाकिस्तान मदद कर रहा है इसलिए वही एक ऐसा देश था जोकि ईरानी परमाणु ठिकानों के बारे में सही जानकारी दे सकता था। इसके लिए ट्रंप ने मुनीर के आगे एक नॉन वेज थाली क्या रखी वो सब कुछ उगलते चले गये। हम आपको बता दें कि पाकिस्तान ने ही परमाणु तकनीक ईरान, लीबिया और उत्तर कोरिया तक पहुंचाई है। जिस तरह पाकिस्तान अपने परमाणु संपन्न देश होने का फायदा उठाते हुए "परमाणु ब्लैकमेलिंग" करता है और वित्तीय सहायता और राजनीतिक रियायतें लेता रहता है वैसा ही ईरान भी ना करने लगे इसके लिए अमेरिका और इजराइल उसे रोकना चाहते हैं।

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हम आपको यह भी बता दें कि ईरान और पाकिस्तान में एक बड़ी समानता भी है। पाकिस्तान और ईरान ने चरमपंथ और आतंकवाद को विदेश नीति का उपकरण बना लिया है। ईरान ने हूती विद्रोहियों, हिजबुल्ला, बशर अल-असद की सेना और इराकी मिलिशियाओं के माध्यम से पूरे क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाया है तो वहीं पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों को कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के लिए समर्थन दिया। इसके अलावा, पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में वर्षों तक गृहयुद्ध को भड़काने वाले गुटों को पाल-पोस कर तैयार किया। देखा जाये तो यह सभी गतिविधियाँ अलग-अलग नहीं हैं बल्कि यह राज्य-प्रायोजित चरमपंथ और आतंकवाद की सुनियोजित रणनीति है। साथ ही इन देशों ने स्थानीय समुदायों जैसे- बलूच, पश्तून, कुर्द, अहवाज़ी अरब और अज़ेरी तुर्कों पर जमकर अत्याचार भी किए हैं। 

हम आपको यह भी बता दें कि जैसे ही 13 जून से इज़राइल ने ईरान पर सैन्य हमले शुरू किए वैसे ही पाकिस्तान की रणनीतिक बेचैनी और कूटनीतिक संतुलन की परीक्षा शुरू हो गई थी क्योंकि इस्लामाबाद वर्षों से ईरान के परमाणु कार्यक्रम और मिसाइल क्षमता को आगे बढ़ाने में मदद करता आया है और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत ईरान के "आत्मरक्षा के अधिकार" का समर्थन भी करता रहा है। हालांकि, जब अमेरिका स्वयं इज़राइली कार्रवाइयों में भागीदार बन गया और खाड़ी क्षेत्र अस्थिर हो गया तो पाकिस्तान गंभीर कूटनीतिक दबाव में आ गया। पाकिस्तान के लिए दिक्कत की बात यह है कि उसके दो बड़े आर्थिक साझेदार— सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, ईरान के कट्टर विरोधी हैं। वहीं अमेरिका के साथ पाकिस्तान अपने संबंध सुधारने की कोशिश कर रहा है। इस परिस्थिति में पाकिस्तान के लिए ईरान को समर्थन देने से इन तीन शक्तिशाली साझेदारों के नाराज़ होने का खतरा है। हालांकि अब युद्धविराम हो चुका है इसलिए जरूर पाकिस्तान ने कुछ राहत महसूस की होगी।

हम आपको यह भी बता दें कि पाकिस्तान के शीर्ष सुरक्षा निकाय राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (एनएससी) ने ईरान में अमेरिकी हवाई हमले के बाद क्षेत्रीय स्थिति पर चर्चा करने के लिए बैठक की और इस्लामी राष्ट्र के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अध्यक्षता में हुई बैठक में सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर सहित शीर्ष असैन्य और सैन्य नेतृत्व ने शिरकत की। पाकिस्तान ने सभी संबंधित पक्षों से संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप बातचीत और कूटनीति के माध्यम से संघर्ष को हल करने का आह्वान किया, तथा अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों और मानवीय कानूनों का पालन करने की जरूरत पर जोर दिया। बताया जा रहा है कि इस बैठक में मुनीर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ अपनी बैठक के विवरण से सबको अवगत भी कराया।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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