संविधान की दुहाई देने वालों के सुर समान नागरिक संहिता पर बदल क्यों गए?

Uniform Civil Code
Prabhasakshi
स्वदेश कुमार । Jun 22 2023 12:40PM

बंटवारे के समय लोकतंत्र की दुहाई देकर जो मुसलमान यहां रुक गए थे, उनको यह जान और समझ लेना जरूरी है कि समान नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी पंथ के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है।

देश के बंटवारे के समय जिन दो-तीन प्रतिशत मुसलमानों ने पाकिस्तान जाने से यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि वे लोकतांत्रिक देश हिंदुस्तान में रहना ज्यादा पसंद करेंगे। उन्हें हिंदुस्तान की गंगा जमुनी संस्कृति से प्यार है। यह उनका मादरे वतन है। उन्हीं मुसलमानों की जब देश में आबादी बढ़ी तो उनकी सोच भी बदल गई। अब यह दबाव की राजनीति करने लगे हैं। लोकतंत्र की जगह शरीयत की बात करते हैं। अब लोकतंत्र और भारत का संविधान इनके लिए कोई मायने नहीं रखता है। सरकार को किसी भी फैसले से रोकने के लिए यह लोग देश का सांप्रदायिक माहौल खराब हो जाने की बात करने लगते हैं। सीएए, एनआरसी जैसे कानून बनाने की सरकार की मंशा के खिलाफ जगह-जगह आंदोलन करते हैं, जबकि इन कानूनों का भारत में रहने वाले किसी वर्ग या कौम से कोई संबंध नहीं होता है। यह कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने के संबंध में बनाया जा रहा है।

इसी दबाव की राजनीति के अगले चरण में समान नागरिक संहिता का भी मुस्लिम संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया है। इन लोगों को उन राजनीतिक दलों का भी समर्थन मिल रहा है जो इनके वोट बैंक के सहारे अपनी राजनीति चमकाते हैं। इसमें कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे दल भी शामिल हैं। इसी क्रम में सपा के दिग्गज नेता आजम खान, समाजवादी पार्टी के सांसद शफीक उर रहमान वर्क और डॉ. एसटी हसन समान नागरिक संहिता के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। यह लोग एक सुर में चिल्ला रहे हैं कि समान नागरिक संहिता कानून भाजपा का चुनावी हथकंडा है। भाजपा समाज में दूरियां बढ़ाने के लिए यह कानून लाना चाहती है लेकिन हम मुसलमान शरीयत को ही मानेंगे। इस प्रकार के कानून को स्वीकार नहीं करेंगे। सपा सांसदों ने अपने बयान में कहा कि आखिर समान नागरिक संहिता कानून लाने की जरूरत क्यों पड़ी। इसका मुख्य कारण 2024 का चुनाव है। भाजपा हिंदू मुसलमान के बीच दूरियां बढ़ाने के लिए यह सब कर रही है। 1400 से अधिक साल पहले मुसलमानों में शरीयत के अनुसार पैतृक संपत्ति में लड़कियों को उनका हक दिया जाता है।

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कुराने पाक के हुक्म पर मुसलमान शरीयत के अनुसार काम करता है। इससे कोई मुसलमान समझौता नहीं करेगा। सवाल उठाया कि आखिर दूसरे लोगों को शरीयत से क्या परेशानी है। दूसरी शादी भी मजबूरी में लोग करते हैं। किसी की पत्नी बीमार हो गई या बच्चे नहीं हो रहे हैं। इस मामले में पहली पत्नी की इजाजत ली जाती है। इसमें एक संस्कार छिपा होता है। सरकार पर आरोप लगाया जा रहा है कि आजकल लिव इन रिलेशनशिप को सरकार ने मान्यता दे दी है। क्या यही हिंदुस्तानी संस्कृति है। कुरान ने जो हुक्म दिया है। उसी को मुसलमान मानेंगे। इस मामले में किसी मौलाना की भी नहीं चलेगी। इसी प्रकार वक्फ की संपत्ति का मामला है। कानून बनने पर संविधान की धारा 29 और 30 को भी देखना पड़ेगा।

बहरहाल, बंटवारे के समय लोकतंत्र की दुहाई देकर जो मुसलमान यहां रुक गए थे, उनको यह जान और समझ लेना जरूरी है कि समान नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी पंथ के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में, अलग-अलग पंथों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही 'समान नागरिक संहिता' की मूल भावना है। समान नागरिक कानून से अभिप्राय कानूनों के वैसे समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों (चाहे वह किसी पंथ, क्षेत्र से संबंधित हों) पर लागू होता है। यह किसी भी पंथ, जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। इस कानून के बनने से केवल मुसलमानों को ही नहीं अन्य धर्म के लोगों को भी देश हित में कुछ समझौते करने पड़ेंगे जो बदलते समय के हिसाब से जरूरी भी है। जब अन्य धर्मों के लोग समान नागरिक संहिता पर हो हल्ला नहीं कर रहे तो मुसलमानों को भी समझना होगा कि यह देश की बात है। देश से बड़ा कोई मजहब नहीं होता। विश्व के अधिकतर देशों में ऐसे कानून हैं। समान नागरिक संहिता से संचालित पन्थनिरपेक्ष देशों की संख्या बहुत अधिक है। अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान, इजिप्ट जैसे कई देश हैं जिन्होंने समान नागरिक संहिता को लागू किया है।

-स्वदेश कुमार

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