विभिन्न देश अपना-अपना नववर्ष मनाते हैं, पर हम भारतीय नववर्ष मनाने में संकोच क्यों करते हैं?

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इस उत्सव में नव-संवत के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रसंग भी जुड़े हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की। सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन अपना राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।

भारतीय नववर्ष हमारी संस्कृति व सभ्यता का स्वर्णिम दिन है। यह दिन भारतीय गरिमा में निहित अध्यात्म व विज्ञान पर गर्व करने का अवसर है। जिस भारत भूमि पर हमारा जन्म हुआ, जहां हम रहते हैं, जिससे हम जुड़े हैं उसके प्रति हमारे अंदर अपनत्व व गर्व का भाव होना ही चाहिए। भारतीय नववर्ष, इसे नव संवत्सर भी कह सकते हैं। इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था और सभी देवताओं ने सृष्टि के संचालन का दायित्व संभाला था। यह भारतीय या हिंदू रीति से नववर्ष का शुभारंभ है। यह उत्सव चैत्र शुक्ल प्रथमा को मनाया जाता है। जब पूरा विश्व एक जनवरी को नए वर्ष का आरंभ मानता है और भारत में भी 31 दिसंबर की रात को बारह बजे नए वर्ष का जश्न मनाया जाता है, उस मदहोशी में अपने देश की विस्मृत परंपरा को बनाए रखना अँधेरी रात में दिया जलाने के समान है। लेकिन जागरूक भारतीय समाज के प्रयासों से पिछले कई दशकों से इस परंपरा को कायम रखने में सज्जन शक्ति अपने-अपने स्थान पर लगी हुई है। यदि जापान अपनी परंपरागत तिथि अनुसार अपना नववर्ष 'याबुरी' मना सकता है। म्यांमार अप्रैल माह के मध्य में अपना नववर्ष 'तिजान' मना सकता है। ईरान मार्च माह में अपना नववर्ष 'नौरोज' मना सकता है। चीन चंद्रमा आधारित अपना नववर्ष 'असरीयन' मना सकता है। थाईलैंड व कंबोडिया अप्रैल में अपना नववर्ष मना सकते हैं, तो हम भारतीय चैत्र शुक्ल प्रथमा को अपना नववर्ष मनाने में गुरेज क्यों करते हैं?

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यह नववर्ष हमारा गौरव एवं पहचान

वर्ष प्रतिपदा को विभिन्न प्रान्तों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. प्रायः ये तिथि मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती है। पंजाब में नया साल बैसाखी नाम से 13 अप्रैल को मनाया जाता है। सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार 14  मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। इसी तिथि के आसपास बंगाली तथा तमिल नव वर्ष भी आता है। तेलगु नया साल मार्च-अप्रैल के बीच आता है। आंध्र प्रदेश में इसे उगादि के रूप में मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। तमिल नया साल विशु 13 या 14 अप्रैल को तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल 15 जनवरी को नए साल के रूप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है। कश्मीरी कैलेंडर नवरेह 19 मार्च को होता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है, कन्नड नया वर्ष उगाडी कर्नाटक के लोग चैत्र माह के पहले दिन को मनाते हैं, सिंधी उत्सव चेटी चांद, उगाड़ी और गुड़ी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरूविजा नए साल के रूप में मनाया जाता है। मारवाड़ी नया साल दीपावली के दिन होता है। गुजराती नया साल दीपावली के दूसरे दिन होता है। बंगाली नया साल पोहेला बैसाखी 14 या 15 अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नया साल होता है।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व

इस उत्सव में नव-संवत के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रसंग भी जुड़े हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की। सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन अपना राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है। हम सबके आदर्श एवं प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन भी यही है। शक्ति की आराधना माँ दुर्गा की उपासना में नवरात्रों का प्रारंभ  हमारे भारतीय नववर्ष यानी वर्ष प्रतिपदा से होता है। सिखों के द्वितीय गुरु श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस भी आज के दिन ही होता है। स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं कृणवंतो विश्वमआर्यम का संदेश दिया। सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार भगवान झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए। राजा विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना था। युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ। संघ संस्थापक प.पू. डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिन भी आज के पावन दिन ही होता है। महर्षि गौतम जयंती का दिन भी विक्रमी संवत का प्रथम दिन होता है। इसके साथ-साथ वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। इसी समय में नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।

भारतीय नववर्ष कैसे मनाएँ

जैसे प्रत्येक त्यौहार हमारे अंदर एक नयी स्फूर्ति लेकर आता है और हम उसे पूरे उत्साह व उमंग से मनाकर समाज में समरसता एवं सौहार्द का संदेह देते हैं। उसी प्रकार यह भारतीय नववर्ष भी हमारे लिए ऐसा ही एक अवसर लेकर आता है। इस दिन हम परस्पर एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें। पत्रक बांटें, झंडे, बैनर आदि लगावें। अपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेजें। इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों पर भगवा पताका फहराएँ। अपने घरों के द्वार, आम के पत्तों की वंदनवार से सजाएँ। घरों एवं धार्मिक स्थलों की सफाई कर रंगोली तथा फूलों से सजाएँ। इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लें अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करें। प्रतिष्ठानों की सज्जा एवं प्रतियोगिता करें। झंडी और फरियों से सज्जा करें। वाहन रैली, कलश यात्रा, विशाल शोभा यात्राएं कवि सम्मेलन, भजन संध्या, महाआरती आदि का आयोजन करें। चिकित्सालय, गौशाला में सेवा, रक्तदान जैसे कार्यक्रम कर इस दिन के महत्व को व्यापकता के साथ समाज में लेकर जाएं।

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पिछले कुछ वर्षों से समाज में नववर्ष को लेकर सजगता एवं इसे बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाने का भाव पहले से बहुत बढ़ा है। अब जरूरत केवल इस बात की है कि हम भारतवासी अपने आत्मगौरव को पहचानें तथा अपने इस भारतीय नववर्ष को धूमधाम के साथ पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर पर और अधिक हर्षता एवं व्यापकता के साथ मनाएं, क्योंकि यह भारतीय नववर्ष हमारा गौरव, हमारी पहचान है। इस वर्ष भारतीय नवसंवत्सर 2079 का शुभारम्भ 2 अप्रैल 2022 से हो रहा है। यह दिन वास्तव में हम सबके लिए संकल्प का दिन है। अपने प्रति, अपने समाज व राष्ट्र के प्रति संकल्प लेकर उस पर चलने का दिन है। तो आईये, हम सब इस भारतीय नव वर्ष के दिन कुछ संकल्पों के साथ आगे बढ़ते हैं।

-डॉ. पवन सिंह

(लेखक मीडिया विभाग, जे.सी. बोस विश्वविद्यालय, फरीदाबाद में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)

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