Ukraine Peace Conference क्यों बेनतीजा रही? Russia-Ukraine War को बंद करवाने का रास्ता कैसे निकलेगा?

Ukraine Peace Conference
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हम आपको यह भी बता दें कि भारत समेत कुछ देशों ने यूक्रेन में शांति के लिए स्विट्जरलैंड द्वारा आयोजित शिखर सम्मेलन में संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर नहीं किए और किसी भी विज्ञप्ति या दस्तावेज से खुद को अलग कर लिया।

यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने का रास्ता तलाशने के लिए स्विट्जरलैंड में आयोजित दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में 90 से अधिक देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन में हालांकि कोई ठोस हल नहीं निकल सका और आगे भी शांति के प्रयास जारी रखने पर सहमति व्यक्त की गयी। इस सम्मेलन में रूस को आमंत्रित नहीं किया गया था इसलिए इसके सफल होने की संभावना पहले से ही कम थी। रूस ने भी इस सम्मेलन को समय की बर्बादी बताया था। हालांकि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के समक्ष एक सशर्त शांति प्रस्ताव रखा था जिस पर भी इस सम्मेलन में चर्चा की गयी और उसे लगभग खारिज कर दिया गया। इस सम्मेलन से चीन भी नदारद रहा।

हम आपको यह भी बता दें कि भारत समेत कुछ देशों ने यूक्रेन में शांति के लिए स्विट्जरलैंड द्वारा आयोजित शिखर सम्मेलन में संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर नहीं किए और किसी भी विज्ञप्ति या दस्तावेज से खुद को अलग कर लिया। भारत के अलावा सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मैक्सिको और संयुक्त अरब अमीरात ने विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर नहीं किए। गौरतलब है कि भारत, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात ब्रिक्स आर्थिक समूह के सदस्य हैं और इन सभी का रूस के साथ महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध है।

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शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाले स्विट्जरलैंड ने कहा है कि 90 से अधिक देशों ने वार्ता में भाग लिया और उनमें से अधिकांश ने विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर किए। इसके अलावा ब्राज़ील, जिसने "पर्यवेक्षक" देश के रूप में शिखर सम्मेलन में भाग लिया, उसने भी हस्ताक्षर नहीं किये। तुर्की के बारे में माना जा रहा था कि वह भी हस्ताक्षर नहीं करेगा लेकिन चूंकि वह रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाना चाहता है इसलिए उसने दस्तखत कर दिये।

बताया जा रहा है कि शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले 90 देशों में से लगभग 83 ने संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए। बयान में दोहराया गया कि युद्ध समाप्त करने के लिए किसी भी शांति समझौते में यूक्रेन की "क्षेत्रीय अखंडता" का सम्मान किया जाना चाहिए। संयुक्त बयान में आह्वान किया गया है कि युद्ध के सभी कैदियों को रिहा किया जाये और "निर्वासित तथा अवैध रूप से विस्थापित" किए गए सभी यूक्रेनी बच्चों को यूक्रेन वापस भेजा जाये। शिखर सम्मेलन में कार्य समूहों ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा और परमाणु सुरक्षा के मुद्दों पर भी चर्चा की। बैठक में शामिल देशों ने यूक्रेन से ज़ापोरीज़िया परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर "पूर्ण संप्रभु नियंत्रण" रखने का भी आह्वान किया।

इस बैठक के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने कहा है कि शांति शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिभागियों ने सहमति जताई है कि वह शांति कायम करने के लिए विभिन्न समूहों में रहते हुए काम करते रहेंगे और एक बार "शांति के लिए कार्य योजना" तैयार हो जाने पर, दूसरे शिखर सम्मेलन के आयोजन का रास्ता खुला रहेगा। जेलेंस्की ने चीन से भी अपील की है कि वह रूस को शांति के लिए मनाने में मदद करे।

जहां तक इस बैठक के दौरान अमेरिका के रुख की बात है तो आपको बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा प्रस्तुत शांति प्रस्ताव को अनुचित बताते हुए खारिज कर दिया। सुलिवन ने शांति शिखर सम्मेलन में कहा, "अगर रूस का प्रस्ताव माना जाता है तो यूक्रेन को न केवल वह क्षेत्र छोड़ना होगा जिस पर रूस ने वर्तमान में कब्जा कर रखा है, बल्कि यूक्रेन को अतिरिक्त क्षेत्र भी छोड़ना पड़ सकता है।" इस बैठक में अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भी उपस्थित थीं। उन्होंने इस अवसर का उपयोग यूक्रेन के लिए 1.5 बिलियन डॉलर के सहायता पैकेज की घोषणा करने के लिए किया। यह पैसा यूक्रेन में मानवीय कार्यों में मदद और वहां युद्ध से जर्जर बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण में उपयोग होगा। वहीं कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि उनका देश यूक्रेन की मदद के लिए आने वाले महीनों में यहां मौजूद देशों के विदेश मंत्रियों की एक बैठक की मेजबानी करने की योजना बना रहा है।

दूसरी ओर, भारत ने संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान के लिए रूस और यूक्रेन के बीच ‘‘ईमानदारी और व्यावहारिक भागीदारी’’ का आह्वान किया। हम आपको बता दें कि विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) पवन कपूर ने स्विस रिसॉर्ट बर्गेनस्टॉक में आयोजित शिखर सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया, जिसमें कई राष्ट्राध्यक्षों सहित 90 से अधिक देशों और संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। अपने संक्षिप्त संबोधन में भारत के वरिष्ठ राजनयिक ने कहा कि शांति शिखर सम्मेलन में भारत भागीदारी और यूक्रेन के शांति फार्मूले पर आधारित वरिष्ठ अधिकारियों की कई पूर्व बैठकें ‘‘हमारे स्पष्ट और सुसंगत दृष्टिकोण के अनुरूप हैं कि स्थायी शांति केवल बातचीत और कूटनीति के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है।’’ भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने शिखर सम्मेलन के उद्घाटन और समापन पूर्ण सत्र में भाग लिया। 

विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘‘भारत ने इस शिखर सम्मेलन से जारी होने वाले किसी भी विज्ञप्ति या दस्तावेज से खुद को संबद्ध नहीं किया है।’’ मंत्रालय ने बयान में कहा, ‘‘सम्मेलन में भारत की भागीदारी, साथ ही यूक्रेन के शांति फार्मूले पर आधारित पूर्ववर्ती एनएसए या राजनीतिक निदेशक स्तर की बैठकों में भागीदारी, संवाद और कूटनीति के माध्यम से संघर्ष के स्थायी और शांतिपूर्ण समाधान को सुगम बनाने के हमारे सतत दृष्टिकोण के अनुरूप है।’’ विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत का मानना है कि इस तरह के समाधान के लिए संघर्ष में शामिल दोनों पक्षों के बीच ईमानदारी और व्यावहारिक भागीदारी की आवश्यकता है। मंत्रालय ने कहा, ‘‘इस संबंध में, भारत सभी हितधारकों के साथ-साथ दोनों पक्षों के साथ बातचीत जारी रखेगा, ताकि शीघ्र और स्थायी शांति लाने के लिए सभी गंभीर प्रयासों में योगदान दिया जा सके।’’ 

दूसरी ओर, स्विट्जरलैंड के विदेश मंत्रालय के एक बयान में कहा गया कि 83 देशों और संगठनों ने ‘‘यूक्रेन में शांति पर उच्च स्तरीय सम्मेलन’’ के अंत में संयुक्त बयान को मंजूरी दी। हम आपको बता दें कि रविवार को संपन्न हुए शिखर सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भविष्य की शांति प्रक्रिया को प्रेरित करना था। रूस को शिखर सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया था, जबकि चीन ने इसमें शामिल नहीं होने का फैसला किया।

जहां तक पुतिन के प्रस्ताव की बात है तो आपको बता दें कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन में तत्काल 'युद्धविराम' और बातचीत शुरू करने का प्रस्ताव दिया है लेकिन उनकी शर्त है कि इसके लिए कीव को कब्जे वाले क्षेत्रों से अपने सैनिकों को वापस बुलाना होगा और नाटो में शामिल होने की योजना त्यागनी होगी। पुतिन ने पिछले सप्ताह यह प्रस्ताव पेश करते हुए कहा था कि अगर यूक्रेन हमारा प्रस्ताव मानता है तो हम अपने वादे पर तुरंत अमल करेंगे। 

अब सवाल उठता है कि तीसरे साल में प्रवेश कर चुके इस युद्ध को थामने या बंद करवाने का रास्ता कैसे निकलेगा। इस दिशा में यदि भारत के ओर से सुझाये गये फॉर्मूले पर विचार किया जाये तो निश्चित ही समाधान हो सकता है। हम आपको बता दें कि पिछले सप्ताह इटली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से मुलाकात के दौरान कहा था कि भारत, रूस-यूक्रेन संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान के लिए अपने साधनों के भीतर हरसंभव प्रयास करना जारी रखेगा। उन्होंने यह भी कहा था कि शांति का रास्ता ‘‘बातचीत और कूटनीति’’ से होकर गुजरता है।

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