अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से क्यों हट रहा है रूस? क्यों धरती की तरह आकाश में बढ़ गया है तनाव?

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माना जा रहा है कि यदि रूस अंतरिक्ष स्टेशन से बाहर आता है तो इसके संचालन में बड़ी बाधा आयेगी। हम आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में शामिल देशों की जिम्मेदारियां बंटी हुई हैं। जैसे रूस आईएसएस के 17 में से छह मॉड्यूल संचालित करता है।

अमेरिका और रूस के संबंध कैसे हैं यह पूरी दुनिया जानती है। खासकर यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से यह संबंध और खराब हो गये हैं। यही नहीं रूस के संबंध सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि यूरोपीय देशों से भी खराब हो गये हैं। इसी बीच रूस ने घोषणा कर दी है कि वह 2024 के बाद अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से हट जाएगा। रूस की इस घोषणा के बाद से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में भागीदार देशों के बीच खलबली का माहौल है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका, यूरोप, रूस, कनाडा और जापान की भागीदारी से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना हुई थी और जिस तरह से इस स्टेशन का अब तक सफलतापूर्वक संचालन किया गया वह अंतरराष्ट्रीय सहयोग की एक सफल मिसाल थी। लेकिन अब रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जिस तरह के हालात बने हैं उनके बीच रूस की यह घोषणा पश्चिम के साथ एक और रूसी संपर्क के खात्मे के रूप में देखी जा रही है।

आईएसएस के समक्ष क्या-क्या दिक्कतें आएंगी?

माना जा रहा है कि यदि रूस अंतरिक्ष स्टेशन से बाहर आता है तो इसके संचालन में बड़ी बाधा आयेगी। हम आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में शामिल देशों की जिम्मेदारियां बंटी हुई हैं। जैसे रूस आईएसएस के 17 में से छह मॉड्यूल संचालित करता है- जिसमें ज़्वेज़्दा भी शामिल है। ज़्वेज़्दा में ही मुख्य इंजन सिस्टम है। यह इंजन स्टेशन की कक्षा में बने रहने की क्षमता और खतरनाक अंतरिक्ष मलबे के रास्ते से अलग रहने के लिए महत्वपूर्ण है। रूस के आईएसएस से बाहर होने पर इन छह मॉड्यूलों का संचालन कैसे होगा यह सवाल अमेरिकी अधिकारियों के समक्ष खड़ा हो गया है।

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उल्लेखनीय है कि आईएसएस संबंधी समझौतों के तहत, रूस अपने मॉड्यूल पर पूर्ण नियंत्रण और कानूनी अधिकार रखता है। रूस ने आईएसएस से 2024 के बाद वापसी की बात तो कह दी है लेकिन यह नहीं बताया है कि इसकी रूपरेखा क्या होगी। रूस ने अभी यह भी नहीं बताया है कि क्या वह आईएसएस के भागीदारों को रूसी मॉड्यूल का नियंत्रण लेने और स्टेशन का संचालन जारी रखने की अनुमति देगा या क्या वह अपने मॉड्यूल के उपयोग पर पूरी तरह से रोक लगा देगा। हालांकि रूस ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह आश्वासन दिया है कि वह परियोजना छोड़ने से पहले अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में अन्य भागीदारों के लिए अपने दायित्वों को पूरा करेगा।

अंतरिक्ष विज्ञानियों की चिंता बढ़ी

रूस की घोषणा के बाद अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी चिंता दो बातों को लेकर है। पहला- रूसी मॉड्यूल अगर संचालन में नहीं होंगे तो क्या उनके बिना अंतरिक्ष स्टेशन काम कर पायेगा? दूसरा अहम सवाल यह है कि रूसी मॉड्यूल को आईएसएस के बाकी हिस्सों से अलग कैसे किया जायेगा? क्योंकि पूरे स्टेशन को आपस में जोड़ने के लिए जो डिजाइन बनाया गया था उसमें रूसी मॉड्यूल अहम कड़ी थे। अब जब रूसी मॉड्यूल अगर हट जाते हैं तो वैसे ही डिजाइन वाले मॉड्यूल कब तक बन जायेंगे और क्या वह सफलतापूर्वक आईएसएस से जुड़ पायेंगे? आजकल दुनिया के बड़े अंतरिक्ष विज्ञानियों की बैठकें भी हो रही हैं जिनमें इस बात पर चर्चा हो रही है कि रूस के हटने के बाद भागीदार देशों को अंतरिक्ष स्टेशन बचाने के लिए क्या-क्या करना होगा। यह भी विचार चल रहा है कि क्या अंतरिक्ष स्टेशन को पूरी तरह से हटा दिया जाए या इसे आकाश में रखने के लिए कोई रचनात्मक समाधान खोजा जाए।

आकाश में कैसे पनपा तनाव?

दूसरी ओर दुनिया यह भी जानना चाहती है कि रूस ने आखिर इतना बड़ा कदम क्यों उठाया? कई कारणों की चर्चा हो भी रही है। कुछ कारण धरती पर रूस और अमेरिका के बीच दिख रहे तनाव से संबंधित हैं तो कई कारण आकाश में बने तनाव से भी संबंधित हैं। बताया जा रहा है कि हाल के महीनों में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर कुछ छोटी-मोटी घटनाएं भी हुई हैं जिस पर रूस ने कड़ा संज्ञान लिया। पहली घटना मार्च में हुई थी, जब तीन रूसी अंतरिक्ष यात्री पीले और नीले रंग के फ्लाइट सूट में अपने कैप्सूल से निकले थे जोकि यूक्रेनी ध्वज के रंग से मिलते जुलते थे। यह कदम अमेरिका को नहीं भाया। इसके बाद 7 जुलाई 2022 को नासा ने तीन रूसी अंतरिक्ष यात्रियों की जो तस्वीर दिखाई उसकी रूस ने सार्वजनिक रूप से आलोचना कर डाली। यही नहीं, यह भी बताया जा रहा है कि रूस ने अंतरिक्ष स्टेशन पर यूरोपीय देशों के साथ संयुक्त प्रयोगों में भाग लेना भी बंद कर दिया है। हालांकि इससे पहले तक स्टेशन पर अंतरिक्ष यात्री हर दिन साथ में मिलकर दर्जनों प्रयोग करते रहते हैं और साथ ही संयुक्त स्पेसवॉक भी करते हैं। लेकिन धरती पर बढ़ते तनाव का असर आकाश में भी देखा जा रहा है। वैसे अपने 23 साल के जीवनकाल में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन इस बात का एक महत्वपूर्ण उदाहरण रहा है कि विरोधी होने के बावजूद रूस और अमेरिका एक साथ कैसे काम कर सकते हैं।

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अपना-अपना अंतरिक्ष स्टेशन

इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि एक दूसरे से ज्यादा ताकतवर बनने की होड़ अब धरती से आकाश तक पहुँच गयी है इसलिए हर देश अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन बनाना चाहता है। अमेरिका ने रूस के इरादों को शायद पहले ही भांप लिया था तभी नासा ने एक वाणिज्यिक अंतरिक्ष स्टेशन के विकास की दिशा में काम शुरू कर दिया था। रूस भी आईएसएस से हटने के बाद अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन बनाने पर ध्यान केंद्रित करेगा। हम आपको बता दें कि चीन भी इस समय अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन बना रहा है। इसी सप्ताह उसके तीन अंतरिक्ष यात्री पहली बार कक्षा में स्थापित लैब मॉड्यूल में सफलतापूर्वक प्रवेश भी कर गए हैं। तो इस तरह दुनिया के बड़े देश अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के काम पर लग गये हैं।

बहरहाल, जहां तक भारत की बात है तो वह भी इस बात को समझ रहा है कि अगली चुनौती अंतरिक्ष से पैदा की जा सकती है इसलिए धरती की तरह आकाश में भी अपनी मजबूती की दिशा में देश तेजी से कदम बढ़ा रहा है। नरेंद्र मोदी सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया है जिससे भविष्य में इसके सकारात्मक परिणाम दिखेंगे। फिलहाल देश में सरकारी कंपनियों के अलावा अंतरिक्ष क्षेत्र में कम से कम 100 स्टार्टअप सक्रिय हैं जो उपग्रहों, प्रक्षेपण यानों और कक्षा में घूम रहे उपग्रहों के लिए ईंधन भरने वाले यान को डिजाइन कर रहे हैं।

- नीरज कुमार दुबे

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